Friday, September 13, 2019

जब आधी रात को छोड़ना पड़ी रुकने की जगह, अनजान रास्तों पर बिना हैडलाइट के 110 की स्पीड पर बाइकिंग

गुजरात के जामनगर से निकलकर हड़प्पा संस्कृति की भारत में सबसे बड़ी साइट धौलावीरा देखने के लिए  मैँ निकला जो कच्छ के रण के बीच में था। रास्ते में एक जगह पेट्रोल और पैसे खत्म हो गए तो किसी तरह उसकी व्यवस्था की। 

रास्ता ही जिंदगी है, जिंदगी ही रास्ता है
जामनगर से सुबह 7 बजे निकलना हुआ। दोपहर 12 बजे जामनगर से 167 किलोमीटर दूर सामख्याली पहुंचा। यहां से धौलावीरा जाने का रास्ते था लेकिन वह मुझे पता नहीं चल पाया था। मैप में भचाऊ से धौलावीरा जाने का रास्ता दिख रहा था जो शार्टकट था इसलिए मैं यहां से आगे निकल लिया। सामख्याली से 17 किलोमीटर आगे भचाऊ था। यहां दैनिक भास्कर के रिपोर्टर से पहले ही बात हो गई थी तो वह मुझे अपने ऑफिस ले गए। यहां आकर पता लगा कि भचाऊ वाला रास्ता तो अब बंद हो गया है। वापस सामख्याली से जाना पड़ेगा या फिर भुज से जाना होगा। 

भचाऊ में दैनिक भास्कर के मित्र
खैर अब आगे तो बढ़ चुके थे इसलिए पीछे लौटने का सवाल ही नहीं था। यहां पर थोड़ा आराम कर साढ़े 3 बजे निकले और  साढ़े 4 बजे गांधीधाम पहुंचे जो भचाऊ से 35 किलोमीटर दूर था। 

गांधीधाम 

गांधीधाम से 13 किलोमीटर दूर कांडला पोर्ट था तो वहां भी चल दिए। रास्ते में दोनों तरफ समुद्री पानी भरा था जिसमें नमक बन रहा था। साथ ही यहां सैकड़ों की संख्या में साइबेरियन प्रवासी सारस पक्षी दिखे जो गुलाबी कलर के थे और बहुत ही खूबसूरत दिखाई दे रहे थे। 

कांडला सी पोर्ट 

कांडला से वापस गांधीधाम आना पड़ा और फिर गांधीधाम से 55 किलोमीटर दूर मुंद्रा पोर्ट पहुंचा। यहां पर अडानी ग्रुप की ऑयल की रिफायनरी हैं। यहां हर तरफ लाल ही लाल रंग नजर आता है। मुंद्रा तक पहुंचते पहुंचते 7 बज चुके थे और अभी भुज काफी दूर था। मुंद्रा से 52 किलोमीटर की दूरी तय कर सवा 8 बजे मांडवी पहुंचा जो एक खूबसूरत बीच था। बीच के किनारे नारियल के पेड़ों की श्रंखला बनी हुई थी। यहां तेज हवा के कारण बहुत सारी पवन चक्कियां भी लगी हुई थीं। यहां का सनसेट बहुत ही खूबसूरत होता है। उस सनसेट के कई फोटो मैंने वहीं एक लोकल बंदे से लिए। 

मांडवी बीच

यहां ऐसा लग रहा था कि बस यहीं रुक जाएं। बाइक में लाइट भी नहीं थी। बाइक की हैडलाइट दो दिन पहले हुए एक्सीडेंट में खराब हो गई और यहां रास्ते में उसे ठीक कराने के पैसे भी नहीं थे। शरीर भी थक गया था लेकिन यहां रुकने से पूरे एक दिन की बर्बादी होनी थी, सो आगे चलना पड़ा। 

इसके बाद शुरू हुई जिंदगी की सबसे खतरनाक राइड। मांडवी से भुज 65 किलोमीटर दूर था और मांडवी में ही सवा 9 बज चुके थे। यह एक अनजान रास्ता था और बाइक में लाइट भी नहीं थी। रास्ते का भी पता नहीं था कि बीच में कोई कस्बा या गांव पड़ेगा या नहीं। अभी इतना सोच ही रहा था कि वहां से एक बस निकली। मैंने सोच को विराम देते हुए उसी बस की बैकलाइट को आधार बनाते हुए राइड शुरू कर दी। 

शुरू में तो बस 70 की स्पीड से चल रही थी तो मैंटेन हो रहा था लेकिन फिर बस ने स्पीड बढ़ानी शुरू कर दी क्योंकि गुजरात की सड़कें और राज्यों की अपेक्षा उस समय बेहतर थीं। बस की स्पीड 80, 90, 100, 110 तक पहुंची और हमें भी उसी स्पीड से अपनी बाइक भगानी पड़ी। क्योंकि यदि ऐसा नहीं करते तो उस अंधेरे में दूसरे वाहन कब निकलते, पता नहीं और रास्ते में रुक भी नहीं सकते थे। एक समय तो ऐसा आया कि 120 की स्पीड से बस को ही ओवरटेक करना पड़ा। उस समय नई बाइक थी और स्पीड पूरी 140 की खुली हुई थी। यह एक खतरनाक कदम था लेकिन रिस्क लिया। इसका असर यह हुआ कि फिर बस 80 की स्पीड से चलने लगी। उसे भी लगा कि बाइक वाला बस के पीछे इसलिए लगा था कि उसकी रोशनी में वह आगे जा सके। 

खैर 50 मिनट में 65 किलोमीटर की दूरी तय कर सवा 10 बजे भुज आ गए। अब यहां रुकने का ठिकाना ढूंढना था। तभी वहां स्वामीनारायण का मंदिर दिखा तो हमने वहां रुकने की जुगाड़ लगाई। 50 रुपये की पर्ची कटी लेकिन रुकने की जगह थोड़ा अलग जगह थी। अब इतनी रात को कर भी क्या सकते थे। 

भुज
मुझे एक ऐसा कमरा मिला जिसमें पहले से ही दो लोग थे। कमरे में पंखा लगा था और मच्छरों की भरमार थी। एक केयरटेकर था जो आराम से खटिया पर सो रहा था। रात में मोबाइल और कैमरा चार्ज करना था इसलिए अब यहां रुकने के अलावा कोई चारा नहीं था। 

रात को 12 बजे किसी तरह सोने की कोशिश की लेकिन मई की गर्मी और वह भी कच्छ के इलाके में, दम निकाल रही थी। किसी तरह डेढ़ घंटे की नींद ली लेकिन बीच में उठ गया। अब गर्मी और मच्छरों की वजह से सोना नहीं हो पा रहा था। मैं फिर से उस केयरटेकर के पास गया और बोला कि भाई कोई कमरा हो तो दे दो, भले ही 500 रुपये ले लेना लेकिन उसने कहा कि सोना है तो सोओ, नहीं तो जाओ। पता नहीं, क्यों मुझे उसकी बात चुभ गई। ऊपर गया और बैग पैक कर लिया। 10 मिनट में बैग पैक किया और नीचे आ गया। 

अब एक अनजान शहर में रात को बाइक से चलना था, वह भी बिना हैडलाइट की बाइक से। दो दिन पहले ही एक्सीडेंट हुआ था जिसमें हाथ और पैरों में चोट थी लेकिन जुनून सब करवा देता है। थोड़ी देर मैं एक दुकान पर बैठा और पोहा खाकर चाय पी। इस रास्ते पर अच्छी बात यह थी कि यह हाइवे था और पूरे रास्ते में स्ट्रीट लाइट लगी थीं इसलिए ज्यादा चिंता की बात नहीं थी। 

यहां से रात 2 बजे चलना शुरू किया लेकिन आधा घंटे बाद ही नींद आने लगी। तभी वहां रास्ते में एक चाय की दुकान दिखी। वहां एक खटिया भी बिछी थी। चाय वाले की दुकान पर एक बच्चा बैठा था। उससे बातों ही बातों में पता लगा कि यह वह जगह थी जहां भूकंप के बाद सोनिया गांधी आईं थी। यह एक मुस्लिम बहुल बस्ती थी। चाय पीकर मैं वहीं खटिया पर सो गया। सुबह 4 बजे वहां लोगों का आना-जाना शुरू हुआ तो मुझे भी वहां से चलना पड़ा। फिर थोड़ा आगे बढ़ा, तब तक सुबह हो चुकी थी।

लगातार 24 घंटे में 500 किलोमीटर के सफर के बाद यह हालत हो गई थी।
फिर एक चाय की दुकान पर रुका और चाय पीकर वहीं एक पटिया पर सो गया। गहरी नींद की वजह से कुछ अहसास ही नहीं हो रहा था। फिर सुबह पौने सात बजे उठे और मुंह-हाथ धोकर आगे के सफर पर चल दिए।

इस चाय की दुकान पर पटिया पर सोकर बिताई रात।
यह रोमांचक और खतरनाक सफर 7 और 8 मई 2013 का है जब भोपाल से गुजरात की 3433 किमी की पहली बाइक यात्रा पर अकेले निकला था। 

अगली सच्ची कहानी में रोमांच महसूस होगा भारत की सबसे बड़ी हड़प्पा साइट धौलावीरा और कच्छ के रण का... 

3 comments:

  1. शानदार अनुभव भैया.. आपके अनुभव बहुत से लोगों के लिए काम आएँगे.

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