Wednesday, November 30, 2016

Life on Travel : Solo #Biking: इन्हें कहा जाता है कलयुग के श्रीकृष्...

Life on Travel : Solo #Biking: इन्हें कहा जाता है कलयुग के श्रीकृष्...:                       केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा                     ...

Solo #Biking: इन्हें कहा जाता है कलयुग के श्रीकृष्ण, जब पुलिसकर्मियों ने मुझे ठहरा दिया नशे का सौदागर

                      केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा


                                         PART-16 भिवानी से अजमेर तक का सफर


30 नवंबर, भोपाल। भोपाल से 30 मई को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरी पहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। 1 जून को आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी की दूरी तय कर पहुंचा। 2 जून को 305 किमी की यात्रा कर हस्तिनापुर से रुद्रप्रयाग पहुंचा। 

3 जून को रुद्रप्रयाग से चला और 77 किमी दूर गौरीकुंड पहुंचा। यहां से केदारनाथ मंदिर की 16 किमी की चढ़ाई शुरू की। 3 जून की शाम केदारनाथ धाम पहुंच गया। 4 जून को वापस केदारनाथ से चला। 16 किमी की पैदल यात्रा के बाद 198 किमी बाइक चलाकर उत्तराखंड के शिवपुरी में आया। यहीं नदी के बीचों-बीच कैंप में ठहरा। 5 जून को शिवपुरी में रिवर राफ्टिंग करने के बाद नीलकंठ महादेव, ऋषिकेश, हरिद्वार होते हुए 198 किमी बाइक चलाकर देहरादून पहुंचा। 6 जून को देहरादून से चला। दोपहर में पावंटा साहिब पहुंचा। फिर वहां से चंडीगढ़ होते हुए कुरुक्षेत्र तक का सफर किया। इस दिन कुल 364 किमी बाइक चलाई। 7 जून को कुरुक्षेत्र देखते हुए पानीपत पहुंचा। यहां पानीपत के युद्धस्थलों को देखने के बाद आगे बढ़ा। पानीपत के बाद जींद, राखीगढ़ी, हांसी होते हुए भिवानी पहुंचा। इस तरह इस दिन 283 किमी की दूरी तय की। 8 जून को भिवानी के पास हड़प्पा सभ्यता का स्थल मीतात्थल देखा। अब आगे..

जयपुर का हवा महल। 8 जून 2016।


मीतात्थल से वापस भिवानी आकर अब आगे के सफर की तैयारी शुरु की। सुबह 9 बजे इस शहर को छोड़कर आगे बढ़ गए। सुबह साढ़े 10 बजे लोहारु पहुंचा। यह हरियाणा और राजस्थान का बॉर्डर है। 

भिवानी में देवीलाल की प्रतिमा।

लोहारु।

लोहारु शहर।

इस की वजह से करीब 15 मिनट तक ट्रैफिक रुका रहा।
 लाेहारु शहर पार करते ही राजस्थान की झलक दिखने लगी थी। गर्मी तेज पड़ने लगी थी। हर जगह कंटीली झाड़ियां नजर आने लगी थी। 10 बजकर 50 मिनट पर हरियाणा-राजस्थान बॉर्डर पर था। यहां से अब अागे राजस्थान में सफर शुरु करना था। 

हरियाणा-राजस्थान बार्डर।


अब प्यास भी तेज लगने लगी। एक जगह प्याऊ दिखाई दिया लेकिन ये पानी की अपने आप में अनोखी व्यवस्था थी। 8 मटकों को इस तरह पाइप से जोड़ा गया था कि सभी का पानी एक ही नल से निकल रहा था। इस तरह ताजा पानी पूरे दिन उपलब्ध हो जाता था। गर्मी में ठंडा पानी, इस रेगिस्तान में और क्या चाहिए। 



अब गर्मी तेज पड़ने लगी थी। जून का महीना चल रहा था और राजस्थान में गर्मी को लेकर रेड अलर्ट जारी था। मैं भी गर्मी से परेशान होने लगा तो अपने जूतों में पानी भर लिया। हर तरफ से खुद को ढंक लिया था लेकिन धूप की तेजी का क्या? आधा घंटे में ही जूतों में भरा पानी भाप बनकर उड़ गया। हर 15 मिनट पर गला सूख रहा था और पानी की जरूरत पड़ती थी। रेतीली हवाएं भी चलना शुरू हो गई थीं। 


झुंझनू।


किसी तरह दोपहर 12 बजे झुंझनू पहुंचा। यहां गन्ने का रस पीकर थोड़ा तरोताजा हुआ। अब यहां से खाटू श्यामजी जाने के लिए दो रास्ते थे। एक सीकर होकर, दूसरा खंडेला होकर। मैं इस दूसरे रास्ते से आगे बढ़ा। रास्ते में गधे से चलने वाली गाडि़यां दिखाई देने लगी थीं। 

झुंझनू।





गधा गाड़ी।



दोपहर 12 बजकर 40 मिनट पर पेट्रोल पंप पर रुका। यहां टंकी को फुल करवाया। इस पंप के चारों तरफ रेत ही रेत नजर आ रही थी। 





यहां से आगे बढ़ा तो अब रेगिस्तान के जहाज ऊंट दिखाई देने लगे थे। 




रास्ते में अरावली पर्वतमाला मिली। ये पर्वत कभी विंध्याचल पर्वतमाला से भी ऊंचे थे लेकिन घिस-घिसकर कम ऊंचे रह गए हैं। 

अरावली पर्वतमाला।
 सवा 2 बजे खंडेला में पहुंचा। ये एक कस्बा लग रहा था। यहीं पर गाड़ी पंक्चर हो गई। किस्मत से पास में ही पंचर की दुकान मिल गई। वहीं पास में बैग सिलने की दुकान भी थी। यहां बैग की डोरी सिलवाई जो केदारनाथ से आते समय टूट गई थी। इस वजह से बैग फटता जा रहा था। 

खंडेला।


थोड़ी-थोड़ी देर में दो पंचर।
पंचर बनवाने के बाद खंडेला से आगे बढ़ा। करीब 5 किमी आगे जाने के बाद वही ट्यूब फिर फट गया। ट्यूब को बनवाने के लिए फिर से उसी दुकान पर वापस आया लेकिन इस बार ट्यूब पूरी तरह नष्ट हो गया था और उसके पास दूसरा ट्यूब भी नहीं था। फिर करीब 2 किमी ऐसे ही गाड़ी चलाकर एक दुकान पर गया। उसके पास भी ट्यूब नहीं था लेकिन उसने कहीं और से व्यवस्था कर दी। हालांकि इसके लिए मुझे 150 रुपए के 350 रुपए देने पड़े। 



इस घटना के बाद मुझे गर्मी में एक घंटे की राहत मिल गई। मैं उसी दुकान पर सो गया। इधर गाड़ी में काम होता रहा, उधर में राजस्थानी गानों को सुनते हुए नींद पूरी करने लगा। 



सवा 4 बजे खंडेला से गाड़ी सही कराके निकला। यहां मुझे रास्ते में कई ढाणियां नजर आई हैं जिनके नाम अजीब से थे। 



पौने 5 बजे मैं खाटूश्याम जी के दरबार में पहुंच गया। यहां मंदिर में खाटूश्याम जी के दर्शन किए। खाटूश्यामजी को तीन बाणधारी कहा जाता है और जिन्हें हार प्राप्त होती है, उन्हें जिताने वाला कहा जाता है। यहां चोर भी चाेरी करने के बाद इनका हिस्सा चढ़ाते हैं। यहां हरियाणा से श्रद्धालु पैदल चलकर आते हैं। 


खाटू श्यामजी।



खाटू श्याम जी को कहा जाता है कलयुग में कृष्ण का अवतार

हिन्दू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम जी कलियुग में कृष्ण के अवतार हैं, जिन्होंने श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलियुग में उनके नाम श्याम से पूजे जाएँगे। श्री कृष्ण बर्बरीक के महान बलिदान से काफ़ी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि जैसे-जैसे कलियुग का अवतरण होगा, तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे। 

खाटूश्याम जी।

तीन बाणधारी के नाम से प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया
श्री श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी माँ तथा श्री कृष्ण से सीखी। भगवान् शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये; इस प्रकार तीन बाणधारी के नाम से प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्निदेव प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे।

कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े
महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुए तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँचे तब माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े।

जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा उसी को अपना साथ देगा
सर्वव्यापी श्री कृष्ण ने ब्राह्मण भेष धारण कर बर्बरीक के बारे में जानने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हँसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है; ऐसा सुनकर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिए पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तूणीर में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा। यह जानकर भगवान् कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ। वे दोनों पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तूणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया। बाण ने क्षणभर में पेड़ के सभी पत्तों को वेध दिया और श्री कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था; बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए अन्यथा ये बाण आपके पैर को भी वेध देगा। तत्पश्चात, श्री कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा; बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन को दोहराया और कहा युद्ध में जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा उसी को अपना साथ देगा। श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है और इस कारण अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा।

शीश के दानी कहलाये
अत: ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की। बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया और दान माँगने को कहा। ब्राह्मण ने उनसे शीश का दान माँगा। वीर बर्बरीक क्षण भर के लिए अचम्भित हुए, परन्तु अपने वचन से अडिग नहीं हो सकते थे। वीर बर्बरीक बोले एक साधारण ब्राह्मण इस तरह का दान नहीं माँग सकता है, अत: ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की। ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गये। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान माँगने का कारण समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है; इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अन्त तक युद्ध देखना चाहते हैं। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया। उनके शीश को युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया; जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये।

बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी
महाभारत युद्ध की समाप्ति पर पाण्डवों में ही आपसी विवाद होने लगा कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है? श्री कृष्ण ने उनसे कहा बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है? सभी इस बात से सहमत हो गये और पहाड़ी की ओर चल पड़े, वहाँ पहुँचकर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि श्री कृष्ण ही युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं, उनकी शिक्षा, उपस्थिति, युद्धनीति ही निर्णायक थी। उन्हें युद्धभूमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो शत्रु सेना को काट रहा था। महाकाली, कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं।

कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे
श्री कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि उस युग में हारे हुए का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है।

खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ
उनका शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में दफ़नाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सूपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर इस समय अपने वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया गया था। मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बना है। खाटूश्याम परिवारों की एक बड़ी संख्या के परिवार देवता है।





खाटू श्यामजी।
शीश के दानी
जब श्री कृष्ण ने उनसे उनके शीश की मांग की तो उन्होंने अपना शीश बिना किसी झिझक के उनको अर्पित कर दिया और भक्त उन्हें शीश के दानी के नाम से पुकारने लगे। श्री कृष्ण पाण्डवों को युद्ध में विजयी बनाना चाहते थे। बर्बरीक पहले ही अपनी माँ को हारे हुए का साथ देने का वचन दे चुके थे और युद्ध के पहले एक वीर पुरुष के सिर की भेंट युद्धभूमिपूजन के लिए करनी थी इसलिए श्री कृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा।

लखदातार
भक्तों की मान्यता रही है कि बाबा से अगर कोई वस्तु मांगी जाती है तो बाबा लाखों-लाख देते हैं इसीलिए उन्हें लखदातार के नाम से भी जाना जाता है।

हारे का सहारा
जैसा कि इस आलेख मे बताया गया है बाबा ने हारने वाले पक्ष का साथ देने का प्रण लिया था, इसीलिए बाबा को हारे का सहारा भी कहा जाता है।

मोरछड़ी धारक
बाबा हमेशा मयूर के पंखों की बनी हुई छड़ी रखते हैं इसलिए इन्हें मोरछड़ी वाला भी कहते हैं।



खाटूश्यामजी के दर्शन कर शाम 6 बजे आगे की सफर पर चला। अब यहां से जयपुर कुछ ही दूरी पर था। रास्ते में एक तरबूज की दुकान पर रुका और इन्हें खाकर गर्मी शांत की। 





सवा 7 बजे मैं जयपुर शहर के प्रवेश द्वार पर था। यहां एक मन किया कि सीधे अजमेर निकला जाए। जयपुर मैं  2 बार आकर घूम चुका था। यहां के किले और अन्य घूमने की जगह देख चुका था। लेकिन फिर मन किया जब यहां तक आए हैं तो कम से कम हवा महल तो देख ही आएं। 


जयपुर शहर।
यहां तक फोटो और वीडियो से मोबाइल कार्ड भर चुका था। एक मोबाइल की दुकान से 16 जीबी का कार्ड खरीदा। यहीं पर मैंने अपने मामा को फोन लगाया जो यहीं सरकारी हाॅस्पिटल में डॉक्टर हैं और नाना भी यहीं रहते थे जो सीबीआई से रिटायर हाेकर यहीं बस गए। उनसे बात ही नहीं हो सकी और उनका घर भी विपरीत दिशा में था इसलिए वहां न जाकर आगे हवा महल चला गया। 





यहां पर मेट्रो रेल चलने लगी थी। इससे पहले 12 साल पहले जयपुर आया था। तब से काफी बदल चुका था जयपुर शहर। साढ़े 8 बजे शहर पार करने के बाद हवा महल पहुंचा। यहां कुछ कपड़ों की खरीदारी की और आधा घंटा यहां बिताने के बाद 9 बजे जयपुर से चल दिया। अब अगली मंजिल थी यहां से 125 किमी दूर अजमेर। मुझे अजमेर रात में ही पहुंचना था। 

जयपुर मेट्रो ट्रेन।

गुलाबी नगरी, जयपुर।

जयपुर शहर।


हवा महल।

हवा महल, जयपुर।
यहां से जयपुर-अजमेर हाइवे पर पहुंचा। रास्ते में थोड़ी देर के लिए एक होटल पर खाने के लिए रुका। भूख ज्यादा नहीं थी इसलिए सिर्फ चाय पीकर आगे चल दिया। 

राजमंदिर सिनेमा।

जयपुर-अजमेर हाइवे के इस होटल पर किया रेस्ट।

चाय की तलब।

जब हाइवे पर 110 की स्पीड पर चली 100 सीसी की बाइक
इस हाइवे पर मैंने अभी तक की सबसे तेज ड्राइविंग की। 100 से 110 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से टीवीएस बाइक को दौड़ाया। रात होने की वजह से सड़कें सुनसान पड़ी थी। 125 किमी की दूरी मात्र डेढ़ घंटे में तय की। एवरेज स्पीड थी 80 किमी प्रति घंटा। इससे पहले इतनी तेज गाड़ी मैंने भोपाल से गुजरात के सफर पर चलाई थी। गुजरात के मांडवी से भुज के बीच की रात में 65 किमी की दूरी 50 मिनट में तय की थी। कोई ब्रेक नहीं और 90 की स्पीड। 

पुलिसकर्मी बोले-हमें तो बैग में स्मैक नजर आ रही है
साढ़े 11 बजे अजमेर शहर पहुंच गया। शहर में प्रवेश करने से पहले ही कुछ पुलिसकर्मियों ने मेरी गाड़ी रोक ली। उन्होंने पूछा कि कहां से आ रहे हो तो मैंने कहा कि भोपाल से। वह बोले के बावले हो गए हो कि, बाइक से भोपाल से चले आ रहे हो। बैग में क्या है? मैंने कहा कि कपड़े और कुछ जरुरी सामान है। वह बोला कि हमें तो इसमें स्मैक नजर आ रही है। बैग के अंदर नशे का सामान तो नहीं भरा। मैंने कहा कि खोलकर देख लो और अपना परिचय दिया। उसके बाद भी वह थोड़ा ठंडा हुआ। बैग तो उसने खोलकर नहीं देखा। फिर उसने शहर के अंदर जाने दिया और पूछा कि अब कहां जाकर ठहरोगे तो मैंने कहा कि जैसे आपने रोककर शहर के बारे में बताया है, वैसे ही कोई और भी मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचा देगा। पुलिसकर्मी हंस कर रह गया। 

अजमेर। खाना खाने के बाद पौने 1 बजे वापस लॉज लौट कर आया।
थोड़ा सा आगे चला तो एक ऑटो वाला आ गया। उसने मुझे रेलवे स्टेशन के पास एक लॉज में ठहरा दिया। कमरा 500 रुपए में मिल गया। वहीं सामान रखकर फिर खाना खाने के लिए गया। रात को पौने एक बजे वापस आकर सो गया। सुबह जल्दी उठकर पुष्कर जो जाना था।  इस तरह आज 506 किलोमीटर की दूरी बाइक से तय की। 



आगे की यात्रा अगले लेख में....



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-PART-13  कुरुक्षेत्र से पानीपत तक का सफर:यहां चाय वाला रखता है 45 हजार का मोबाइल, पानीपत की युद्ध भूमि का बना साक्षी



-PART-11 देहरादून से कालसी होते हुए पावंटा साहिब तक का सफर: सम्राट अशोक के कालसी शिलालेख में है राजा और प्रजा का रिलेशन, गुरु गोविंद सिंह से जुड़ा हैं पावंटा साहिब

-PART-10 शिवपुरी (उत्तराखंड) से देहरादून का सफर: जंगल कैंप और रिवर राफ्टिंग का रोमांचक अहसास, भगवान शिव ने पिया था यहीं विष का प्याला