Monday, August 5, 2019

Friendship With History: एक शाप से उजड़ गया था यह शानदार किला, तुगलकी फरमान का था गवाह

कहा जाता है कि देश की राजधानी दिल्ली 7 बार उजड़ी और बसी। हालांकि बताने वाले तो कहते हैं कि दिल्ली सात बार नहीं बल्कि 16 बार बसी और उजड़ी लेकिन इस बात के अभी तक प्रमाण नहीं हैं। खैर, कोई बात नहीं, हमने इस बार के फ्रेंडशिप डे को कुछ अलग तरह से मनाने की सोची और इस बार दोस्त बनाया अपने इतिहास को।




फेसबुक पर इवेंट पेज पर जानकारी लगी कि रविवार 4 अगस्त को 'सैर-ए-दिल्ली' पेज पर एक इवेंट की जानकारी है जिसमें तुगलकाबाद हेरिटेज वॉक की जानकारी दी गई थी। तुगलकों  के बारे में इतिहास में पढ़ रखा था कि इसी वंश के एक सुल्तान का नाम सनकी सुल्तान के रूप में इतिहास में  दर्ज है। यही एक चीज थी जिसने वहां जाने के लिए मजबूर कर दिया। 

हेरिटेज वॉक का समय सुबह 8 से 11 का था। खैर, सुबह साढ़े पांच उठे और सुबह 6.30 बजे की 34 ए नंबर की बस नोएडा सेक्टर 19 से पकड़ी। बस का 50 रुपये में पास बनवा लिया तो आराम से अब पूरे दिन दिल्ली में कहीं भी घूमने का इंतजाम हो गया। बस से पहुंचना तो 8 बजे तक था लेकिन सुबह खाली रास्तों को कारण सवा 7 बजे हम स्पॉट पर थे। अब वहां 25 रुपये का टिकट लिया और अन्य साथियों का इंतजार करने लगे। ठीक 8 बजे वहां फरीदाबाद, गुड़गांव और दिल्ली से आए करीब 50 साथी थे जो इस हेरिटेज वॉक का हिस्सा बनने वाले थे। 


किले के अंदर पहुंचकर सबका परिचय हुआ। इस किले के बारे में रोचक जानकारी देने के लिए यूसुफ भाई थे जो दिल्ली में बसे सातों शहरों की कई बार हेरिटेज वॉक करा चुके थे। इस किले और 14वीं शताब्दी में बसी तीसरी दिल्ली के बारे में उन्होंने तारीख ए फिरोजशाही और रिहाला किताब से जानकारी जुटाई थी। 

परिचय के बाद यूसुफ ने ट्रैकर्स को दिल्ली में बसे सातों शहरों के बारे में जमीन पर मैप बनाकर जानकारी देना शुरू की। तब पता चला कि हम जिस किले में खड़े थे, वह तीसरी बार बसी दिल्ली थी जिसे तुगलक वंश के ग्यासुद्दीन तुगलक ने 1320 से 1325 ईसवी के बीच बसाया था। इसने ही खिलजी वंश के बाद तुगलक वंश चलाया था। जब हमें कोई फरमान अजीब लगता है तो कहते हैं कि यह तुगलकी फरमान है। यह शब्द इसी तुगलक वंश की ईजाद है जिसे चरम पर ग्यासदुद्दीन तुगलक के बेटे मोहम्मद बिन तुगलक ने पहुंचाया।



आज के हमारे गाइड ने यहीं बताया कि ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक, सबसे पहली दिल्ली महरौली-लालकोट, दूसरी सीरी, तीसरी तुगलकाबाद, चौथी, जहांपनाह, पांचवी  फिरोजाबाद, छठवीं दीनपनाह और सातवीं शाहजहानांबाद है। जिसे हम पुरानी दिल्ली कहते हैं वह सबसे नई बसी हुई दिल्ली है। 


किले पर देखने लायक कई जगह थी जो इतिहास को हमारे सामने जीवंत कर रही थीं। एक शानदार बावली थी जिसमें सीढ़ियों से नीचे उतरने का रास्ता था। इस बावली के नीचे जो चट्टान नजर आ रही थी, वह अरावली पर्वतमाला का हिस्सा थी।


इसके बाद थोड़ा सा आगे चले तो एक घुमावदार दरवाजे के सामने सभी रुक गए। इस किले में प्रवेश करने के ऐसे 13 दरवाजे थे। इनका घुमावदार रास्ता इसलिए था कि दुश्मन के आक्रमण के समय सभी सचेत हो जाएं।

इसके आगे भी कुछ जगह थी जहां अन्न का भंडार करके रखा जाता था लेकिन वहां जाने का समय नहीं था। इसके बाद वहां सुल्तान के महल के भी भग्नावेष नजर आए जो एक समय दुनिया का श्रेष्ठ महल था। यह किला साढ़े 6 किलोमीटर में फैला था लेकिन अब 2 किलोमीटर का ही हिस्सा बचा हुआ है। 


किले में ही एक ऐसी जगह थी जो थोड़ा जमीन के नीचे थी और कई कोठरियां बनी थी। गाइड ने बताया कि यह शायद कैदियों को रखने की जगह या मीना बाजार था। इसमें चलना भी एक रोमांच की तरह था। 


किले में दूर तक नजर रखने के लिए चारों दिशाओं में चार वॉच टॉवर भी बनाए गए थे। इसके अलावा यहां एक और गहरी बावली नजर आई जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियां नहीं थीं। गाइड ने बताया कि इसे विजय मा जगह कहा जाता है। इसके बारे में कहा जाता है कि मौत की सजा पाए कैदियों को इसमें फेंक दिया जाता था। बावली में बड़े-बड़े मगरमच्छ थे जो नीचे फेंके गए कैदियों को खा जाते थे। 


इस किले से कुछ शाप भी जुड़े थे इसलिए उस समय का दुनिया का यह भव्यतम किला कुछ ही सालों में वीरान हो गया। इसके बारे में भी एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि ग्यासुद्दीन तुगलक ने किले को बनवाने के लिए दिल्ली की सारी जनता को मजदूर के रूप में लगा दिया। प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया ने उनके फरमान को मानने से इनकार किया तो सुल्तान ने उन्हें सजा देनी चाही। तब औलिया ने शाप दिया कि जिस किले का तुम्हें इतना घमंड है वह वीरान हो जाएगा। यह किला आधा उजड़ा और आधा गूजरों के कब्जे में चला जाएगा। 



निजामुद्दीन औलिया ने एक और शाप ग्यासुद्दीन तुगलक को दिया था। बंगाल विजय से लौटते समय सुल्तान ने अपने बेटे जौना खान को कहा कि मेरे दिल्ली आने से पहले निजामुद्दीन औलिया से कहो कि वह दिल्ली छोड़कर कहीं चले जाएं नहीं तो हम उसे छोड़ेंगे नहीं। तब औलिया साहब ने कहा कि अभी तो दिल्ली दूर है। उनकी बात सच साबित हुई। इलाहाबाद के पास कड़ा नाम की जगह पर जौना खां ने अपने पिता का सम्मान करने के लिए एक बड़ा शामियाना लगाया। जब उस पर हाथी चले तो वह ढह गया जिसमें ग्यासुद्दीन तुगलक की मौत हो गई। उसके बाद दिल्ली के तख्त पर मोहम्मद बिन तुगलक बैठा जिसने 1325 से 1351 ईसवी तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया।



किले के सामने दूसरे हिस्से में ही ग्यासुद्दीन तुगलक, उनकी पत्नी और उनके बेटे मोहम्मद बिन तुगलक की कब्र बनी हुई है। तुगलक वंश के ही फिरोजशाह तुगलक की कब्र हौज खास किले में बनी हुई है। 



यह सब देखने में 11 बजे चुके थे। अब वहां से निकले तो तुगलकाबाद गांव के रास्ते पर पहुंचे। यहीं 20 रुपये की शानदार बिरयानी और 20 रुपये की आलू टिक्की खाकर पेट पूजा की और फिर 34 नंबर की ही बस पकड़कर वापस अपने ठिकाने नोएडा सेक्टर 19 ए में 2 बजे तक लौटकर आए। 


इस तरह 200 रुपये हे्रिटेज वॉक का चार्ज, 25 रुपये का टिकट, 75 रुपये का खाना-पीना, 50 रुपये बस का किराया लगा। इस तरह 350 रुपये में सात में से एक दिल्ली को देखने का अनुभव लिया।  

Shyam Sundar Goyal
Journalist
Delhi

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