Tuesday, January 3, 2023

NE Trip 1: आसान नहीं था पहला कदम उठाना, भोपाल से सागर के बीच ऐसा रहा पहले द‍िन का सफर

 3 January 2023/Delhi: भारत (https://en.wikipedia.org/wiki/India) को एक्‍सप्‍लोर करने का सफर 2013 में गुजरात से शुरू हुआ था। उसके बाद 6 ट्र‍िप में 25 हजार क‍िलोमीटर का सफर तय करके भारत का 70 फीसद ह‍िस्‍सा देख चुका था। अब बारी थी एक बड़े सफर की ज‍िसमें करीब 1 महीना लगना था और पैसे भी खूब खर्च होने थे। अब भारत के उत्‍तर पूर्वी राज्‍य ही बचे थे ज‍िन्‍हें मुझे देखना और समझना था।

भोपाल से नॉर्थ ईस्‍ट के सफर का पहला फोटो, भोपाल

इस सफर पर न‍िकलने के ल‍िए पहले से कोई तैयारी नहीं की थी। अभी तक की यात्राओं से इतना एक्‍सपीर‍ियंस हो चुका था क‍ि अब हर स्‍थ‍ित‍ि का सामना अकेले ही कर सकता था। यही कारण है मुझे क‍ितने बजे न‍िकलना है, कहां न‍िकलना है, कैसे न‍िकलना है...ये मेरे अलावा क‍िसी को पता नहीं था, न ही मैंने क‍िसी से शेयर क‍िया था। 1 अप्रैल को ही ड‍िसाइड हो गया था क‍ि मुझे 7 अप्रैल 2022 को अपने सफर में न‍िकलना है। मैं उस समय भोपाल (https://en.wikipedia.org/wiki/Bhopal) में अपने पर‍िवार के बीच था। एक द‍िन जाकर मैं अपनी बाइक की सर्विस‍िंंग कराकर लेकर आया। उसके अगले द‍िन बैग को सही करवाया।  उसके बाद 7 अप्रैल भी आ गया। अब बड़ी दुव‍िधा में थे क‍ि कैसे न‍िकलें, घर में सब्‍जी बन रही थी और सबकुछ नॉर्मल था। सब्‍जी बनने के दौरान ही मैंने बैग में अपना सामान रखा और मन को कड़ा कर ल‍िया। अब बात ये थी क‍ि घर से कैसे न‍िकलें? 

ठीक 12 बजते ही मैं घर से न‍िकला तो पत्‍नी को कुछ शक हुआ। वह पीछे आई तो फ‍िर मैंने बाहर से दरवाजे की कुंडी लगा दी और तेजी से नीचे आया। मेरे तीन जोड़ी पहनने के कपड़े बैग से बाहर ही थे ज‍िन्‍हें बैग में रखने का समय नहीं म‍िला। जैसे ही बाइक स्‍टार्ट करने की कोश‍िश की तो बाइक ही स्‍टार्ट नहीं हुई। इतने में दूसरे रास्‍ते से पत्‍नी और बच्‍चे आ गए और बाइक में से चाबी न‍िकाल ली। वह समझ तो गए थे क‍ि मैं भारत के सफर में न‍िकल रहा हूं और मुझे कोई रोक भी नहीं सकता। यह बात उनको पता थी। उन्‍होंने कहा क‍ि खाना खाकर न‍िकल जाना। लेकि‍न मुझे पता था क‍ि यद‍ि घर के अंदर घुसे तो फ‍िर इस सपने को हमेशा के ल‍िए भूल जाना। क्‍योंक‍ि ये स्‍थ‍ित‍ि अब जीवन में दोबारा बनने वाली नहीं है। 

यही वजह रही क‍ि जैसे ही वह घर के अंदर जाने के ल‍िए मुड़े तो मैंने बाइक स्‍टार्ट कर ली। इस हड़बड़ी में मेरे पहनने के कपड़े नीचे ही ग‍िर गए और बैग में एक भी जोड़ी कपड़े नहीं थे। लेक‍िन मैंने सोचा क‍ि कपड़े तो बाजार से खरीदे जा सकते हैं, और यह सोचकर आगे न‍िकल गया। 

घर से न‍िकलने के बाद अब मैं एक ऐसे सफर पर था जहां कुछ भी हो सकता था। ये मेरी सबसे कठ‍िन यात्रा होने वाली थी ज‍िसमें यात्रा से पहले और बाद में बहुत कुछ दांव पर लगना था, पर हम भी कम‍िटमेंट के पक्‍के हैं। 'एक बार जो खुद से कम‍िटमेंट कर ल‍िया तो फ‍िर खुद की भी नहीं सुनते।' है तो ये सलमान खान की 'वॉन्‍टेड' फ‍िल्‍म का डायलॉग लेक‍िन आजमाया हमने भी है। हा हा हा...तो ऐसे फ‍िल्‍मी तरीके से इस सफर की शुरूआत हुई और फ‍िल्‍मी तरीके से इस सफर का एंड भी हुआ।  

भोपाल
ज‍िस समय मैं भोपाल से न‍िकला उस समय बाइक के स्पीडोमीटर पर 59162.0 क‍ि‍लोमीटर द‍िख रहा था और समय दोपहर के 12 बजकर 40 म‍िनट हो रहा था। सफर में न‍िकलने से पहले मैं एक डायरी मैंटेन करता था ज‍िसमें ये सब उसी समय ल‍िखता था। उस समय का एक फोटो भी मोबाइल से क्‍ल‍िक करता था। यह सब जब मैं कंबाइंड होकर देखता हूं तो मुझे उस समय की रीयल फील‍िंग और सीन रीक्र‍िएट हो जाता है और ऐसा लगता है क‍ि जैसे फ‍िल्‍म की तरह समय चल रहा हो। एक-एक चीज क्‍लैर‍िटी के साथ द‍िखती है चाहे वह घटना क‍ितनी भी पुरानी क्‍यों न हो। 
भोपाल से ट्र‍िप पर न‍िकलने से पहले रीड‍िंंंग।।

अब घर से न‍िकल गए तो पहले तो गलत रास्‍ते पर चला गया। मुझे भोपाल से रात तक सागर पहुंचना था जो 200 क‍िलोमीटर की दूरी पर था। इसके ल‍िए मुझे व‍िद‍िशा होकर जाना था लेक‍िन मैं स‍िरोंज वाले रास्‍ते पर चला गया। करीब 10 क‍िलोमीटर आगे जाने के बाद अहसास हुआ क‍ि जाएगा तो यह रास्‍ता भी व‍िद‍िशा ही लेक‍िन लंबा पड़ेगा। तब मैं फ‍िर वापस भोपाल लौटा और व‍िद‍िशा जाने वाले रास्‍ते पर आकर खड़ा हो गया। इस सबमें एक घंटा न‍िकल गया और पौने 2 बज चुके थे। 

व‍िद‍िशा के रास्‍ते में जाते समय व‍िश्‍व प्रस‍ि‍द्ध जगह सांची म‍िली। सांची को मैं पहले ही कवर कर चुका था और व‍िद‍िशा को भी। इसल‍िए यहां से आगे न‍िकल गया। रास्‍ते में परी ढाबा म‍िला तो वहां खाने को रुक गए। यह जगह दाल बाफले के ल‍िए फेमस है लेक‍िन उस द‍ि‍न दाल बाफले नहीं थे पुलाव मंगवा ल‍िया। हालांक‍ि ज‍िस ह‍ि‍साब से उस प्‍लेट की कीम‍त 100 रुपये थी, उस तरीके से वह बना नहीं था और बात दुकानदार को कह भी दी। 

100 रुपये के नमकीन चावल।  

इसी ढाबेे पर एक और इंटरेस्‍ट‍िंग घटना घटी। जब मैं फ्राइड राइस का पेमेंट करने के ल‍िए काउंटर पर गया तो वहां मैं अपनी जेब से पैसे न‍िकालकर ग‍िनने लगा क‍ि आज क‍ितने पैसे खर्च करने हैं और उनका ह‍िसाब कैसे करना है। उस समय जेब में करीब 6 हजार रुपये थे। मैंने ऐसे ही ढाबे वाले से पूछ ल‍िया क‍ि इतने पैसे में मैं नॉर्थ ईस्‍ट तक पहुंच जाउंगा तो वह बोला क‍ि हां हां, क्‍यों नहीं! मैंने उनसे पूछा क‍ि आपको मालूम है क‍ि नॉर्थ ईस्‍ट कहां हैं? तो वह बोला क‍ि होगा 2 या 3 सौ क‍िलोमीटर पर। मैंने कहा क‍ि भाई यहां से करीब 6 हजार क‍िलोमीटर की जर्नी है और इसी 100 सीसी की बाइक से, पहुंच जाएंगे। तब भी वह पूरे कॉन्‍फ‍िडेंस से बोला क‍ि हां-हां क्‍यों नहीं! मेरी समझ में आ गया क‍ि उसे आसपास के इलाकों के अलावा देश में क्‍या है, उसकी खबर ही नहीं है। मैं अपना बैग लेने के ल‍िए टेबल पर पहुंचा तो मैंने कनख‍ियों से ढाबे वाले को देखा। वह अपने वेटर सेे इशारों में पूछ रहा था क‍ि ये माजरा क्‍या है, कौन है ये? वेटर ने भी दार्शन‍िक अंदाज में जवाब द‍िया और अपनी अंगुली को द‍िमाग के पास घुमाया और मुंह से एक अजीब से मुद्रा बनाई। इसका देशी भाषा में मतलब है क‍ि बंदा खि‍सका हुआ है। बैग उठाकर मैं ढाबे वाले के पास आया और बोला, आपने सही समझा है, बाइक से अकेले इतना दूर घूमने और वह भी ब‍िना क‍िसी कारण के, कोई आम आदमी तो नहीं कर सकता। तब वह झेंपते हुए बोले क‍ि हमने ऐसा कहां कहा। मैंने उनसे कहा क‍ि आपने ब‍िना बोले ही सबकुछ बोल तो द‍िया है। हा हा हा...यही तो भारत के कण-कण में व्‍याप्‍त सद‍ियों से चली आ रही समझदारी। बस अपने काम से मतलब रखो, बाकी का करना ही क्‍या है...        

करीब एक घंटे खाना खाकर और आराम कर 3 बजे वहां से न‍िकल ल‍िए। अब अगली मंज‍िल सागर थी लेक‍िन उससे पहले एक और ऐत‍िहास‍िक जगह रास्‍ते में पड़ने वाली थी ज‍िसका नाम ग्‍यारसपुर था। सवा 4 बजे के करीब ग्‍यारसपुर ( https://en.wikipedia.org/wiki/Gyaraspur) पहुंचा जहां फेमस मालादेवी (https://en.wikipedia.org/wiki/Maladevi_Temple) को मंद‍िर है और ह‍िलता हुआ दरवाजा है। इस दरवाजे पर भगवान व‍िष्‍णु के दशावतार खुदे हुए हैं।

ऐत‍िहास‍िक नगरी ग्‍यारसपुर, ज‍िला व‍िद‍ि‍शा। 

व‍िष्‍णु भगवान का वराह अवतार, ग्‍यारसपुर

ह‍िंडोला तोरण, ग्‍यारसपुर, व‍िद‍िशा। 

ग्‍यारसपुर से 5 न‍िकला और फ‍िर डेढ़ घंटे बाद सागर शहर (https://en.wikipedia.org/wiki/Sagar,_Madhya_Pradesh) के प्रवेश द्वार पर था। यहां जाकर बस स्‍टैंड के पास सुख सागर होटल में ठ‍िकाना बना ही ल‍िया था, कमरा भी देख ल‍िया था और पैसे भी पेमेंट करने वाला था। तभी मुझे लगा क‍ि यहां मुझे अपने दोस्‍त और डीबी स्‍टार के साथी श्रीकांत त्र‍िपाठी से बात कर लेनी चाह‍िए जो इस समय दैन‍िक भास्‍कर में जर्नल‍िस्‍ट थे। मैंने उन्‍हें फोन लगा द‍िया तो फ‍िर उन्‍होंने 500 रुपये में ही अच्‍छा होटल करवा द‍िया और रात को आने की बात कही। इस तरह गर्मी में एक एसी वाला अच्‍छा रूम 500 रुपये में म‍िल गया।


सागर, मध्‍य प्रदेश।

सुख सागर होटल, सागर। 

होटल हंगरी फॉक्‍स, सागर, मध्‍य प्रदेश।

 जब ठ‍िकाना हो गया तो फ‍िर पैदल ही सागर घूमने न‍िकला। बाजार से कुछ जरूरी सामान ल‍िया। तब तक रात को 9 बजे दोस्‍त भी आ गया और हमने म‍िलकर खाना खाया और पुराने समय की याद ताजा की। उसके जाने के बाद हमें रात में फ‍िर उठना पड़ा जब देखा क‍ि एसी का पानी पूरे बेड पर ग‍िर रहा है। उसके बाद रात में ही दूसरा रूम चेंज क‍िया गया। 

सागर शहर, मध्‍य प्रदेश

सागर शहर, मध्‍य प्रदेश।

सागर में दोस्‍त श्रीकांत त्रि‍पाठी के साथ। 

हंगरी फॉक्‍स में खाना बहुत शानदार म‍िला। सागर, मध्‍य प्रदेश।

इस तरह पहले द‍िन का सफर खत्‍म हुआ। इस द‍िन 196 क‍िलोमीटर का सफर पूरा हुआ ज‍िसमें एक ऐत‍िहास‍िक जगह ग्‍यारसपुर देखने को म‍िली।  


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