Wednesday, November 14, 2018

विधानसभा चुनाव 2018 में किस करवट बैठेगा जीत का 'ऊंट', पढ़ें ग्राउंड रियलिटी

मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में किसकी बनेगी सरकार? नवंबर-दिसंबर 2018 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इन विधानसभा चुनावों में सरकार बनाने को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। पिछले 6 सालों में बाइक से 23,500 किमी की देशभर में यात्रा की जिनमें ये 4 राज्य भी शामिल हैं। यात्रा में दूर-दराज के इलाकों में भी जाना हुआ। उन्हीं अनुभवों के आधार पर ये बताने की कोशिश की जा रही है कि मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में किसकी सरकार बन सकती है...

छत्तीसगढ़ में किसकी बन सकती है सरकार?

अगस्त 2018 में छत्तीसगढ़ के कवर्धा, रायपुर, महासमुंद, जशपुर, सरगुजा, कोरबा, बिलासपुर के इलाके से गुजरा। वहां कई लोगों से बात की, वहां की लाइफ स्टाइल को समझा और वहां के लोगों की मूल भावना तक पहुंचने की कोशिश की। चूंकि राजनीति को लेकर मेरा कोई एजेंडा नहीं था इसलिए जो भी समझा, मूल को समझा।
विधानसभा चुनाव 2018: छत्तीसगढ़ की बसना जगह पर बाइक खराब, यहां दिखा राजनीति पर लोकल नजरिया। 
उसके अनुसार, इस बार भी छत्तीसगढ़ में रमन सरकार बन रही है। इसका कारण भी है...बसना में एक जगह बाइक खराब हो गई तो वहां करीब 2 घंटे तक राजनीतिक बातें सुनी। मुस्लिम स्वाभाविक रूप से बदलाव चाह रहे हैं लेकिन बीजेपी और रमन सरकार समर्थक उनकी हर बात को विकास और सोशल इंजीनियरिंग की ग्राउंड रियलिटी बताकर चुप कर देते हैं। ये सच भी है क्योंकि इसका लाभ तो सभी तबकों को मिला है, इसलिए इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता। हां, इतना जरूर है कि कांग्रेस शासन में इनका जो दबदबा रहता था, वह नहीं है।
विधानसभा चुनाव 2018: छत्तीसगढ़ का जशपुरनगर, ये कभी नक्सली इलाका था लेकिन अब कहा जाता है कि यहां शांति है।
वहीं, जशपुर, सरगुजा से जब निकला तो वहां हर जगह रमन सरकार की योजनाओं की आड़ में पोस्टर लगे हैं। ये पोस्टर यहां की जनता को इमोशनली अटैच करते हैं। यहां की जनता को लगता है कि गरीबी के बावजूद यदि वह अपने इलाके में सम्मान के साथ रह रहे हैं तो उसके पीछे रमन सरकार है। इस वजह से वहां बदलाव की बात तो हो रही है लेकिन एंटीइनकंबेंसी इतनी मजबूत नहीं है कि वह सरकार को बदल दे। ग्रामीण इलाकों में जोगी कांग्रेस का फैक्टर भी दिखाई दिया लेकिन वह सब बाहुबली उम्मीदवारों के भरोसे है। उनका अपना प्रभाव लोकल लेवल पर है। वह नतीजों को बदल भी सकते हैं लेकिन इमोशनली अटैचमेंट के लेवल पर रमन सरकार के नजदीक ये नहीं पहुंच पा रहे। इतिहास गवाह रहा है चुनाव में तर्क पर हमेशा भावना भारी रही है और इस बार भी ये रमन सरकार के साथ नजर आती है।

मध्यप्रदेश में किसकी बन सकती है सरकार?

6 सालों में हर यात्रा भोपाल से शुरू हुई और वहीं खत्म। इस नाते मध्यप्रदेश के चंबल, मालवा, महाकोशल, बघेलखंड, मध्यभारत के क्षेत्रों से गुजरना हुआ। इन सबका चरित्र अलग-अलग और एक दूसरे से विपरीत है। इसलिए यहां के बारे में कोई भी बात करना थोड़ा टेढ़ी खीर है लेकिन फिर भी कोशिश करते हैं...
विधानसभा चुनाव 2018: मध्यप्रदेश में रायसेन जिला, बीजेपी के बारे में यहां के लोग कह रहे हैं कि वह दंभी हो गए हैं।
इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन रही है। इसका कारण है...मध्यप्रदेश में कांग्रेस हमेशा से ही मजबूत स्थिति में रही है। 2003 में जब कांग्रेस की सरकार थी तब कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि वह इतनी बुरी तरह से हारेगी लेकिन वह हारी और उसका कारण बना था दिग्विजय का वह दंभ कि सरकार तो मैनेजमेंट से जीती जाती है। नतीजा भयानक हार और ऐसी हार कि 15 साल बाद भी वह लड़ने की स्थिति में नहीं आ पाई। इस बार फिर से वही सीन है बस पार्टी चेंज है। इस बार बीजेपी को शुरू से ही लग रहा था कि सामने तो कोई विपक्षी दल है ही नहीं। इस वजह से उसने हर स्तर पर मनमानी की। जिसको चाहा उपकृत किया और जिसे चाहा उसे छोड़ दिया। ये ठीक उसी तरह के चिह्न थे जो 2003 में बने थे। कांग्रेस भी इस बार छिपकर अपनी तैयारी करती रही और बीजेपी के सामने ऐसे दिखाया जैसे सामने खाली मैदान हो। अंदर ही अंदर दिग्विजय सिंह नर्मदा यात्रा पूरी कर आए, ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र में राहुल गांधी का भरोसा साथ लाए, कमलनाथ वित्तीय साधन के साथ मध्यप्रदेश के मैदान में उतरे और सुरेश पचौरी और अजय सिंह इनकी छाया में अपने क्षेत्र में ही सीमित कर दिए गए। अब बीजेपी का वास्ता एक ऐसी टीम से पड़ा है जो साम-दाम-दंड-भेद में सक्षम है और उसका असर भी दो महीनों में दिखना शुरू हो गया। वोटिंग के समय अभी कई छिपे हुए शस्त्र निकलेंगे और उन सबका एक ही उद्देश्य होगा कि मध्यप्रदेश में बीजेपी का खात्मा। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी पता है कि यदि वह जीत भी गए तो उनका मुख्यमंत्री पद जाना तय है इसलिए वह भी वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं। उधर, इस चुनाव में यदि शिवराज सरकार हारती है तो केंद्र में वनवास झेल रहे कैलाश विजयवर्गीय को भी ठंडक मिलेगी कि जिसके कारण वह निजी रूप से परेशान हुए, उसका फल उन्हें मिल गया। यहां की जनता का मानस भी बदलाव के पक्ष में है। ये बदलाव और तेज होता यदि शिवराज अहं भरी बातें कर देते लेकिन उनकी छवि समरसता की है इसलिए उतना पतन नहीं होगा, जितना कि 2003 में कांग्रेस का हुआ था।

अगले लेख में आप पढ़ेंगे राजस्थान और तेलंगाना के बारे में...


Friday, September 21, 2018

Life on Travel : भिखारी पॉलिटिक्स का गजबिया ज्ञान #4 #Amazingindia

Life on Travel : भिखारी पॉलिटिक्स का गजबिया ज्ञान #4 #Amazingindia: अभी हाल में बहुजन समाज पार्टी की लीडर मायावती  ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को धता बनाकर पूर्व कांग्रेसी लीडर अजीत ज...

भिखारी पॉलिटिक्स का गजबिया ज्ञान #4 #Amazingindia

अभी हाल में बहुजन समाज पार्टी की लीडर मायावती  ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को धता बनाकर पूर्व कांग्रेसी लीडर अजीत जोगी की जनता कांग्रेस से गठबंधन कर लिया है। आखिर ऐसा क्यों हुआ कि एक राष्ट्रीय पार्टी जब बीएसपी के दरवाजे पर दस्तक दे रही हो तब एक अनाम से क्षेत्रीय पार्टी के साथ गठबंधन कुछ हजम नहीं होता, लेकिन ऐसा हुआ।

हाल ही में 6 राज्यों में 4500 किमी बाइक से छत्तीसगढ़ के दूर-दराज के क्षेत्रों में घूमकर जाना कि छत्तीसगढ़, कैसे दूसरे राज्यों से अलग है, वहां जमीनी स्तर पर लोग कैसे रहते हैं, इन सब सवालों के जवाब एक भिखारी के माध्यम से आर्टिकल में देने की कोशिश की गई है...


13 अगस्त 2018 शाम 6 से रात 7 बजे तक...छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाने वाला कवर्धा जिले में भोरमदेव टेंपल का रास्ता

भोपाल से 12 अगस्त को बाइक से निकला और 13 अगस्त की शाम को भोरमदेव टेंपल पहुंचा। भोरमदेव के मंदिर के चारों तरफ खजुराहो जैसी ही कामुक प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गईं हैं। यहां उस समय सावन का मेला चल रहा था। मंदिर को देखने के बाद जब रायपुर के लिए निकला तो अंधा भिखारी लिफ्ट लेने के लिए खड़ा था। मैं तो वैसे भी रास्ते में लिफ्ट देकर ही चलता हूं जिससे की लोकल के लोगों से बातचीत होती रहे। उसके साथ बेटी भी थी जो उसे रास्ता दिखाती थी। वह दोनों बाइक पर बैठ गए और शुरू हुई बातचीत..


इस भिखारी की बातें सुनकर पॉलिटिक्स के धुरंधरों की आखें खुल जाएंगी।
-कहां चलना है?
भिखारी-आगे 15 किमी की दूरी पर मेरा घर है, मुझे वहां तक छोड़ृ दें। मंदिर के प्रसाद के 8 किलो चावल मिले थे, उन्हें मैंने किसी और के हाथों घर भेज दिया है।
-यहां क्या रोज आते हो?
भिखारी-नहीं,बस सावन के महीने में 8 दिन मेला लगता है, उसी समय भीख के लिए आता हूं। यहां चावल चढ़ाया जाता है, उसी से काम चल जाता है?
-बाकी समय?
भिखारी-बाकी समय कुछ नहीं, बस घर पर पड़े रहते हैं।
-फिर घर कैसे चलता है?
भिखारी-रमन सिंह हर महीने चावल, कैरोसीन दे देता है। उससे घर चल जाता है।
-बाकी की जरूरतें कैसे पूरी होती हैं?
भिखारी-जब कुछ जरूरत होती है तो उनके घर चला जाता हूं। उनके बेटे अभिषेक से बात करता हूं तो कुछ मदद मिल जाती है।
-बच्चों की पढ़ाई?
भिखारी-स्कूल से ही कॉपी-किताब, ड्रेस मिलती हैं। स्कॉलरशिप भी मिलती है तो इससे काम चल जाता है। अब तो बस आवास चाहिए, उसका भी वादा किया हुआ है। अभी चुनाव आने वाले हैं, उनके घर जाकर फिर मिलता हूं। उनसे कहूंगा कि आवास दे दो तो इस बार भी तुम ही जीतोगे।
-अगर आवास नहीं दिया तो?
भिखारी-तो फिर कैसे जीतेगा, हमारे आशीर्वाद से ही तो उसे जीत मिलती है, हार नहीं जाएगा।
-वह तुम्हें आवास क्यों देगा?
भिखारी- क्योंकि उसका काम है देना।
-और तुम्हारा?
भिखारी-(इस बार जवाब देने से पहले वह कुछ देर रुका फिर बोला) हमारा काम है लेना....



(6 सालों में 23,500 किमी की दूरी तय कर 20 राज्यों में मोटरसाइकिल से भारत भ्रमण करने के बाद 'Amazingindia' सीरिज के तहत ये ऑरिजनल कंटेंट है। इसका किसी भी तरह से उपयोग करने पर कॉपीराइट एक्ट के तहत कार्रवाई करने का सर्वाधिकार सुरक्षित)  

Saturday, September 15, 2018

आखिर क्यों नहीं पहनतीं यहां महिलाएं ब्लॉउज #3 #Amazingindia

भोपाल. 22 सितंबर को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओडिशा में एयरपोर्ट, रेल लाइन और माइनिंग से रिलेटेड इश्यूज के लिए ओडिशा जाने वाले हैं। ये एक ऐसा राज्य है जहां एक तरफ आधुनिकता के दर्शन होते हैं तो वहीं गरीबी के लिए भी ये दुनिया में बदनाम है। आखिर क्या है ओडिशा का सच? 
 

ओडिशा में चिल्का क्षेत्र की महिला बिना ब्लॉउज के सिर्फ साड़ी में ही। 
हाल ही में 6 राज्यों में 4500 किमी बाइक से ओडिशा के दूर-दराज के क्षेत्रों में घूमकर जाना कि ओडिशा, कैसे दूसरे राज्यों से अलग है, वहां जमीनी स्तर पर लोग कैसे रहते हैं, उनके लिए विदेश क्या है? आखिर वहां कई इलाकों की महिलाएं ब्लॉउज क्यों नहीं पहनतीं? इन सब सवालों के जवाब इस आर्टिकल में देने की कोशिश की गई है...

14 अगस्त 2018 रात 7 बजकर 50 मिनट से 17 अगस्त रात 9 बजे तक...ओडिशा में 1000 किमी की बाइक राइडिंग...यहां असका से हुम्मा के बीच की स्टोरी...हुम्मा से सिर्फ 6 किमी दूर ही पदमपेट में वर्ल्ड फेमस ऑलिव रिडले समुद्री कछुओं का प्रजनन स्थल है

ओडिशा में पदमपुर कस्बे में प्रवेश करने के बाद एक चीज मुझे बार-बार चौंका रही थी। बरसात में यहां धान की खेती में महिलाएं काम कर रही थी लेकिन अपने शरीर को सिर्फ साड़ी से ही ढकें हुई थीं। पहले मैंने सोचा कि शायद ये कोई प्रथा होगी और कुछ विशेष इलाकों और बड़ी उम्र की महिलओं में ही ऐसा होता होगा लेकिन यहां तो ऐसा कुछ नहीं था। सभी उम्र की महिलाएं कई इलाकों में बिना ब्लॉउज के ही दिखीं।
असका से हुम्मा के बीच केे खेत। ओडिशा में मध्यप्रदेश से मेरी बाइक।

इस वजह से नहीं पहन पाती महिलाएं ब्लॉउज
असका से हुम्मा जाने के बीच एक जगह महिलाएं खेतों में काम कर रही थीं तो वहीं सड़क से गुजरते एक शख्स से आखिर पूछ ही लिया कि यहां ऐसा क्यों हैं? तब उसने जवाब दिया कि ये कोई प्रथा के कारण नहीं हैं। यहां गरीबी का बोल-बाला है। ये सभी महिलाएं सुबह 6 बजे से आईं है और दोपहर 12 बजे तक काम करेंगीं तब उन्हें 120 रुपए दिए जाएंगें। यदि पूरे दिन काम करेंगी तो 240 रुपए। साल के सिर्फ 2 महीने ही धान की खेती के समय इन्हें काम मिलता है, बाकी समय यहां कोई फसल नहीं होती। इसी पैसे से गुजारा करना पड़ता है। सदियों से ऐसा ही चल रहा है। अब जब पैसे ही नहीं होंगे तो वह कैसे कपड़ों पर खर्च करेंगी। यही कारण है कि एक साड़ी में ये पूरा जीवन गुजार देती हैं। बाकी के समय इन्हें 'विदेश' जाकर काम करना होता है? जब उनसे पूछा कि विदेश मतलब क्या तो उसने जवाब दिया कि आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र में जाकर काम करने को ही यहां विदेश माना जाता है।
साल में सिर्फ 2 महीने काम, मजदूरी सिर्फ 120 रुपए 
(6 सालों में 23,500 किमी की दूरी तय कर 20 राज्यों में मोटरसाइकिल से भारत भ्रमण करने के बाद 'Amazingindia' सीरिज के तहत ये ऑरिजनल कंटेंट है। इसका किसी भी तरह से उपयोग करने पर कॉपीराइट एक्ट के तहत कार्रवाई करने का सर्वाधिकार सुरक्षित)  


Thursday, September 6, 2018

अतीत के बंगाल का कैसा है 'वर्तमान', सियासत का बदलता चेहरा

भोपाल. देश में भीमा-कोरगांव हिंसा मामले में वामपंथी विचारधारा के पांच एक्टिविस्टों की गिरफ्तारी सुर्खियों में है। वामपंथ का उदय और स्वर्णिमकाल पश्चिम बंगाल को माना जाता है। यहीं से फैली वाम विचारधारा इतनी शक्तिशाली थी कि पश्चिम बंगाल में 35 सालों से ज्यादा टिकी रही और केंद्र में कौन प्रधानमंत्री बनेगा, उसका निर्णय भी करती थी। लेकिन क्या आज भी बंगाल ऐसा ही है? क्या वहां वामपंथ आज भी मजबूत स्थिति में है? कैसा है पश्चिम बंगाल का 'वर्तमान'?...


पश्चिम बंगाल में नंदकुमार शहर के पास का कस्बा, जहां ट्रैफिक चाैराहे पर सीएम ममता बनर्जी की तस्वीर नजर आ रही है।
हाल ही में 6 राज्यों में 4500 किमी बाइक से बंगाल के दूर-दराज के क्षेत्रों में घूमकर जाना कि बंगाल, कैसे दूसरे राज्यों से अलग है, वहां जमीनी स्तर पर लोग क्या सोचते हैं, राजनीति के प्रति उनका नजरिया क्या है, ओवरऑल बंगाल के कैसे अनुभव हुए और वहां की राजनीति का हमसे कैसा सरोकार है?

#Amazingindia सीरिज के पहले आर्टिकल में पश्चिम बंगाल की कानून व्यवस्था पर रोशनी डाली थी, इस आर्टिकल में राजनीतिक व्यवस्था को महसूस करने की कोशिश की गई है।

17 अगस्त की रात से 19 अगस्त 2018 सुबह 10 बजे तक...ओडिशा-पश्चिम बंगाल बॉर्डर दीघा से कोलकाता होते हुए सिंगूर, वर्धमान, दुर्गापुर, आसनसोल, चितरंजन झारखंड बॉर्डर तक 430 किमी मोटरसाइकिल से यात्रा...

दीघा में कानून व्यवस्था की सख्ती की बात तो समझ में आ गई थी। अब वहां घूमते हुए एक चलती-फिरती पनवाड़ी की दुकान दिखाई जहां एक अधेड़ शख्स न्यूजपेपर पढ़ रहा था। जब उनसे न्यूजपेपर का नाम पूछा गया तो बताया बंगाली का 'वर्तमान'। एक समय आनंद बाजार पत्रिका की पूरे बंगाल में धूम थी लेकिन उसकी जगह अब 'वर्तमान' और 'प्रतिदिन' जैसे न्यूज पेपर ने ले ली थी।



पोस्टर वूमेन नजर आईं ममता बनर्जी
दीघा से निकलकर अब ग्रामीण इलाकों से होते हुए कोलकाता पहुंचना था। मुझे ये महसूस करना था कि देश में जिस वामपंथ की धूम है, उसकी अपने राज्य में क्या स्थिति है? पूरे 400 किमी के रास्ते में एक भी वामपंथ या उनकी पार्टी से संबंधित बैनर-पोस्टर या दीवार पर स्लोगन नजर नहीं आया। इन पूरे रास्तों पर एक ही चेहरा नजर आया जो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का था। राज्य की सड़कों पर ट्रैफिक फॉलो करने के स्लोगन थे लेकिन उनपर अनिवार्य रूप से बना था ममता का चेहरा। हाइवे के पुल से झांककर जब नीचे के शहरों को देखा तो वहां सिर्फ एक ही पोस्टर नजर आया जिसमें ममता बनर्जी कुछ कह रही थीं। बीच-बीच में कुछ ग्रामीण जगहों पर भाजपा के पोस्टर तो नजर आ गए थे लेकिन वामपंथ गायब था।
पश्चिम बंगाल में रानीगंज, यहां भी राजनीतिक पोस्टर सिर्फ सीएम ममता बनर्जी के दिखे।
कातर आंखों ने दिया सियासत के हाल का जवाब
इस चीज को नोटिस करते ही मैं एक जगह खाना खाने रूका तो सामने बैठे शख्स से कोलकाता के बारे में जानकारी लेना शुरू की। वह कोलकाता में रहता था। उसने वहां के नियम-कायदे कानून की जानकारी देना शुरू की। बाइक चलाते समय पैरों में जूते होने चाहिए। ड्राइविंग लाइसेंस, इंश्योरेंस, गाड़ी के पेपर, पॉल्यूशन कंट्रोल यूनिट की एनओसी कंपल्सरी है नहीं तो केस बनेगा। यहां की पुलिस तो केस बनाने के बहाने ढूंढ़ती है। मैंने उससे धीरे से पूछ ही लिया कि भाई ये तो वामपंथ का गढ़ है लेकिन यहां तो उसका वजूद तक दिखाई नहीं दे रहा। उसने कातर आंखों से मेरी आंखो में देखा और धीरे से कहा - तभी तो ये हालत है और फिर चुप हो गया।

कोलकाता में घुसने से पहले एक ढाबे पर खाना खाया तो बंगाल की जानकारी स्थानीय लोगों से ली।
चेहरे के पीछे जनता एकजुट
बंगाल घूमने के बाद एक चीज तो तय हो गई कि वहां चेहरा बिकता है, वह चाहें ज्योति बसु का हो, बुद्धदेव भट्टाचार्य का हो या ममता बनर्जी का। जनता चेहरे के पीछे एकजुट होकर खड़ी होती है और विरोधियों का समूल नाश कर देती है जो पहले कभी अपने थे।

इसलिए और ऐसे बदला बंगाल
मुझे लगा कि बंगाल के बारे में जो दिख रहा है और समझ में आ रहा है, ये कहीं भ्रम तो नहीं तो फिर मप्र में वामपंथ का झंडा पीढ़ी दर पीढ़ी उठाने वाले एक शख्स से बात की जिसने पुराना बंगाल और वर्तमान का बंगाल देखा था। उसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बंगाल से वामपंथ का वजूद मिट चुका है। जो कैडर्स कभी पार्टी की जान हुआ करते थे, उनकी हत्याएं हो चुकी हैं। वामपंथी पार्टी का ऑफिस कार्यालय भी जेल जैसा लगता है। टीएमसी और भाजपा के गठबंधन ने वामपंथ को मिटाने में कसर नहीं छोड़ी है। यही कारण है कि बंगाल में बीजेपी के पोस्टर तो कहीं-कहीं नजर आ जाते हैं लेकिन वामपंथ के नहीं। युवा बीजेपी की तरफ आकर्षित है और मुस्लिम और गरीब तबका टीएमसी की तरफ। अब तो वामपंथ दिल्ली और हिंदी बेल्ट की राजधानियों में बैठकर ही सुरक्षित बचा है।
अतीत और वर्तमान का कोलकाता, पश्चिम बंगाल की राजधानी।
(6 सालों में 23,500 किमी की दूरी तय कर 20 राज्यों में मोटरसाइकिल से भारत भ्रमण करने के बाद 'Amazingindia' सीरिज के तहत ये ऑरिजनल कंटेंट है। इसका किसी भी तरह से उपयोग करने पर कॉपीराइट एक्ट के तहत कार्रवाई करने का सर्वाधिकार सुरक्षित)  

Wednesday, September 5, 2018

#Amazingindia अकेले कमरा चाहिए तो लड़की के साथ रात गुजार लो #1

अभी हाल में पश्चिम बंगाल का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वर्धमान जिले के टीएमसी नेता एक मीटिंग में कह रहे हैं कि दूसरी पार्टी की एक महिला लेडी को गांजा, चरस रखने के झूठे आरोप में फंसाकर जेल भिजवा दो। क्या भारत के किसी भी राज्य में ऐसा संभव है कि छाती ठोककर कोई कह सके कि वह जो चाहे, राज्य में कर सकता है? क्या वास्तव में ये संभव है?

ओडिशा-पश्चिम बंगाल बॉर्डर का चेकपोस्ट
हाल ही में 6 राज्यों में 4500 किमी बाइक से बंगाल के दूर-दराज के क्षेत्रों में घूमकर जाना कि बंगाल, कैसे दूसरे राज्यों से अलग है, वहां जमीनी स्तर पर लोग क्या सोचते हैं, राजनीति के प्रति उनका नजरिया क्या है, ओवरऑल बंगाल के कैसे अनुभव हुए और वहां की राजनीति का हमसे कैसा सरोकार है?


17 अगस्त 2018...रात के 9 बजकर 38 मिनट...ओडिशा-पश्चिम बंगाल बॉर्डर...पूर्बा मेदिनीपुर जिले में दीघा टूरिस्ट प्लेस, जो अपनी सुनहरी रेत के बीच के लिए फेमस है...


पश्चिम बंगाल के दीघा बीच पर सुबह को एन्जॉय करने टूरिस्ट
ओडिशा के ग्रामीण जीवन को देखने के बाद बंगाल में घुसते ही ऐसा लगा कि जैसे किसी टूरिस्ट प्लेस पर आ गए हों। वैसे भी दीघा, पश्चिम बंगाल का बीच टूरिस्ट प्लेस है जहां चंपा और स्वर्णरेखा नदी, बंगाल की खाड़ी के समंदर में गिरती हैं।

डिप्रेशन में आकर लगा लेते हैं होटल में फांसी
अब यहां रुकने का ठिकाना तलाशा तो फिर असली बंगाल के दर्शन हुए जहां कानून का सख्ती से पालन होता है। दीघा में नियम है कि यहां अकेले शख्स को रुकने की जगह किसी भी होटल, लॉज, धर्मशाला में नहीं मिलती। पहले होटल में जगह तलाशी तो हर जगह पहला ही सवाल था कि अकेले हो तो कमरा नहीं मिलेगा। रात गहरी होती जा रही थी और सुबह निकलना भी था। ऐसे में अब बंगाल के कानून पर कोफ्त होने लगी थी। कम से कम 8 जगह ट्राई करने के बाद ये पता लगा कि पुलिस स्टेशन जाकर एक फरमान लेना होगा, तब जाकर कुछ निश्चित जगह पर आपको महंगे दामों पर रुकने की जगह मिलेगी। एक जगह ये भी ऑफर हुआ कि यहीं एक लड़की ले लो और उसे साथ लेकर रात गुजार लो। कम से कम रहने का ठिकाना तो मिल जाएगा लेकिन इस ऑप्शन पर ध्यान नहीं दिया। बातों ही बातों में ये पता लगा कि बंगाल में गरीबी होने की वजह से जब ग्रामीण क्षेत्र के लोग दीघा में आते हैं तो वह यहां की लाइफ देखकर डिप्रेशन में चले जाते हैं। अकेले होने की वजह से वह फंदा लगाकर जान दे देते हैं। जिस होटल वाले ने मुझसे ये ज्ञान साझा किया, उसके यहां 6 लोग ऐसे ही अकेलेपन से सुसाइड कर चुके थे।



इस टिप्स से पश्चिम बंगाल में बना काम
खैर, पुलिस स्टेशन पहुंचा तो वहां इस नियम पर झुंझलाहट आने लगी लेकिन पुलिस का भी वही कि अगर कोई मर जाएगा तो हम क्या करेंगे...जब अपनी भारत यात्रा का हवाला दिया तो उन्होंने बीच का रास्ता बताया। वहां बैठे एक सिंगल स्टार पुलिसकर्मी ने सुझाव दिया कि बगल में जो होटल है, उसके पास जाकर बस इतना कहना कि मैं थाने से होकर आया हूं और मुझे कमरा चाहिए। इस छोटी सी टिप्स ने पास के होटल में जादू का काम किया और 350 रुपए में एक सड़ा सा कमरा मुझे मिल गया। होटल मालिक ने कागजी खानापूर्ति कराते-कराते ही मेरी बाइक अंदर चढ़ा ली और कहा कि अब रात में सब बंद हो गया है, सुबह कहीं निकलना और शटर का ताला बंद करवा दिया। मैंने कहा कि सुबह से भूखा हूं, भाई खाने तो जाने दो। तो उसने कहा कि अंदर खाना चल रहा है, जो बना है, खा के सो जाओ। 65 रुपए में अंडा करी, रोटी और चावल के साथ भरपेट खाना मिल गया तो सोने में ही भलाई समझी।

65 रुपए में भरपेट खाना
ये तो बंगाल में घुसने के बाद बंगाल का कानून और उससे बचने की जुगाड़...आगे के खबर में आप देखेंगे मछली पकड़ने का बंगाल में नायाब तरीका और समंदर में जब नदी मिलती है तो कैसा दिखता है नजारा...

(6 सालों में 23,500 किमी की दूरी तय कर 20 राज्यों में मोटरसाइकिल से भारत भ्रमण करने के बाद 'Amazingindia' सीरिज के तहत ये ऑरिजनल कंटेंट है। इसका किसी भी तरह से उपयोग करने पर कॉपीराइट एक्ट के तहत कार्रवाई करने का सर्वाधिकार सुरक्षित)  

Sunday, March 18, 2018

EP 15 | Arichal munai-Rameshwaram | रामसेतु आ बाइक राइडिंग | LoT





भोपाल से 3000 किमी की बाइक राइडिंग के बाद पहुंचे रामेश्वरम। फिर वहां से धनुषकोडि से करीब 6 किमी आगे अरिचलमुनाई जो 'No Mans Land' है। यहां के बाद भारत की सीमा खत्म होती है और आगे श्रीलंका की हद शुरू होती है। धनुषकोडि से 3 किमी पहले ही सारे व्हीकल रोक लिए हैं। इससे आगे सिर्फ कार को एंट्री है, उसके लिए भी कई दिन पहले परमिशन लेनी होती है। बाइक को तो सवाल ही नहीं है। शाम के 6 बजे सारे व्हीकल की एंट्री बंद हो जाती है और मैं पहुंचा। 6 बजने में 15 मिनट पहले। अब क्या करें? कैसे भी उनसे रिक्वेस्ट की और अपनी यात्रा के बारे में समझाया तो सिर्फ 5 मिनट के लिए परमिशन मिली। मैंंने भी देर न करते हुए उस रास्ते पर बाइक दौड़ा दी। अब अगले 8 किमी तक न तो कोई वाहन मिलना था और न बस्ती। बीच की पतली पट्टी और दोनों तरफ समंदर। एक तरफ का शांत तो दूसरी तरफ की लहरें सड़क पर आ रही थी। उस 8 किमी के रास्ते में जो अनुभूति हुई, उसके लिए शब्द नहीं हैं। इस वीडियो में मदुरै से रामेश्वरम के बीच का 8 मिनट का वीडियो है। जब इस खबर को Bhaskar.com पर अपलोड किया था तो 8 घंटे में ही 5 लाख लोगों के पास पहुंच गई थी। अब इसका वीडियो बनाया है। अब आप वहां जा तो सकते नहीं, वीडियो देखकर फील ही कर लीजिए...

Friday, February 23, 2018

VLOG: Chennai To Puducherry- तमिल फैमिली के साथ ऐसे थे एक्सपीरियंस





चेन्नई से पुदुच्चेरी वैसे तो 115 किमी है लेकिन पहुंचे 405 किमी की दूरी तय कर। रूट मैप कुछ इस तरह बनाया कि चेन्नई से पहले महाबलीपुरम फिर कांचीपुरम, तिरुवन्नमलई होते हुए पुदुच्चेरी। सुबह 7 बजे सफर शुरू हुआ जो रात 12 बजे तक चला। महाबलीपुरम में विश्व विरासत में शामिल शोर टेंपल और पंच रथ ऐतिहासिक जगह थी तो वहीं एक जगह अर्जुन ने वनवास के समय तपस्या की थी। इसके बाद जाना था कांचीपुरम लेकिन पहुंच गए सेंगनमाल। तिरुपति में एक शख्स से मुलाकात हुई तो दोस्ती हो गई थी। उनका घर सेंगनमाल में था। फोन लगाया तो उन्होंने घर बुला लिया। वहां उनकी फैमिली से मिला। उनकी पत्नी को न तो अंग्रेजी आती थी और न हिंदी। उनके पति ने शब्दो को ट्रांसलेट किया। आधा घंटा वहां गुजारने के बाद फिर कांचीपुरम पहुंचा। वहां फेमस वरदराज टेंपल और कामाक्षी मंदिर को देखा। पंच महाभूत लिंगम में से एक पृथ्वी तत्व को समर्पित शिवलिंग एकेम्बरेशवर मंदिर में देखा। वहीं एक दुकानदार से कांजीवरम की साड़ी ली तो पता लगा कि यहां दुकानदार हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु, मलयालम और मराठी भाषा पर समान अधिकार रखते हैं। वहां कस्टमर को देख उसी की भाषा में बात करते हैं। यहां से फिर पंच महाभूत में से अग्नि लिंगम के लिए तिरुवन्नमलई के लिए निकला। वहां अच्छे से दर्शन हुए। रात को साढ़े 9 बज चुके थे और अभी रात को ठिकाना भी तय नहीं था। हिम्मत करके रात में ही पुदुच्चेरी के लिए निकला जो 120 किमी की दूरी पर था। रात को 12 बजे जिंजी होता हुए पुदुच्चेरी पहुंचा। वहां तीन जगह रूम के लिए ट्राई किया तो निराशा हाथ लगी। फिर सोचा कि बस स्टैंड पर रात गुजारी जाए। तभी एक जगह लॉज में रात साढ़े 12 बजे जगह मिली तब जाकर चैन मिला। रात को सोते-सोते 2 बज गए। 17 मार्च 2017 को सुबह 7 से रात 12 के बीच 405 किमी की बाइकिंग हुई। इस रोमांचक यात्रा का वीडियो अपलोड कर दिया है जिसकी लिंक नीचे दी गई है। तो 15 मिनट में साउथ इंडिया के 4 फेमस जगहों का आनंद लीजिए.

Tuesday, January 30, 2018

Solo Biking For Epic Trip || श्रीसेलम के जंगलों की अंधेरी रात | | Life...





2013 से 2017 तक 5 सालों में बाइक से अकेले 19 हजार किमी भारत घूमा है। इस दौरान कई आश्चर्यजनक चीजें, रीति रिवाज, कल्चर और लोगों के व्यवहार को नजदीक से देखा है। इन्हीं सब अनुभवों को वीडियो के माध्यम से अब यूट्यूब पर एक सीरिज की तरह अपलोड कर रहा हूं जिससे लोगों के मन में डर खत्म हो और वह घर के बाहर निकल कर दुनिया देखे कि वह कितनी बेहतरीन है।


South India's Journey completed from Bhopal in 21 days. The journey of 7240 km was done from the bike of 100cc tvs sports alone, from 12 March to 1 April 2017. I am sharing the Real Experience of this journey. This video has experience with Hyderabad To Sriselam. 

भोपाल से साउथ इंडिया की जर्नी 21 दिन में पूरी की। 7240 किमी की ये यात्रा अकेले 100 सीसी की बाइक से 12 मार्च से 1 अप्रेल 2017 के बीच की गई थी। इसी यात्रा के रीयल एक्सपीरियंस शेयर कर रहा हूं। इस वीडियो में हैदराबाद से श्रीसेलम में मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग के बीच के अनुभव हैं। ये यात्रा खौफ और रोमांच से भरपूर थी।

Saturday, January 27, 2018

India Epic Trip | हैदराबाद निजाम के पास थी दुनिया की नायाब चीजें | Life ...

2013 से 2017 तक 5 सालों में बाइक से अकेले 19 हजार किमी भारत घूमा है। इस दौरान कई आश्चर्यजनक चीजें, रीति रिवाज, कल्चर और लोगों के व्यवहार को नजदीक से देखा है। इन्हीं सब अनुभवों को वीडियो के माध्यम से अब यूट्यूब पर एक सीरिज की तरह अपलोड कर रहा हूं जिससे लोगों के मन में डर खत्म हो और वह घर के बाहर निकल कर दुनिया देखे कि वह कितनी बेहतरीन है। तो दोस्तों इस चैनल को सब्सक्राइब कर बेल आइकन को दबाएं और घर बैठे भारत के रीयल एक्सपीरियंस को सबसे पहले एन्जॉय करें...



South India's Journey completed from Bhopal in 21 days. The journey of 7240 km was done from the bike of 100cc tvs sports alone, from 12 March to 1 April 2017. I am sharing the Real Experience of this journey. This video has experience with Hyderabad city.



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भोपाल से साउथ इंडिया की जर्नी 21 दिन में पूरी की। 7240 किमी की ये यात्रा अकेले 100 सीसी की बाइक से 12 मार्च से 1 अप्रेल 2017 के बीच की गई थी। इसी यात्रा के रीयल एक्सपीरियंस शेयर कर रहा हूं। इस वीडियो में हैदराबाद सिटी के अनुभव हैं।