Friday, December 30, 2016

Solo #Biking: यहां आग में कूदकर रानी पद्मनी ने किया था 'जौहर', एक दिन में की 668 KM बाइकिंग

                   केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा


                                         PART-19 उदयपुर से भोपाल तक का सफर

30 दिसंबर, भोपाल। भोपाल से 30 मई 2016 को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरी पहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। 1 जून को आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी की दूरी तय कर पहुंचा। 2 जून को 305 किमी की यात्रा कर हस्तिनापुर से रुद्रप्रयाग पहुंचा। 

3 जून को रुद्रप्रयाग से चला और 77 किमी दूर गौरीकुंड पहुंचा। यहां से केदारनाथ मंदिर की 16 किमी की चढ़ाई शुरू की। 3 जून की शाम केदारनाथ धाम पहुंच गया। 4 जून को वापस केदारनाथ से चला। 16 किमी की पैदल यात्रा के बाद 198 किमी बाइक चलाकर उत्तराखंड के शिवपुरी में आया। यहीं नदी के बीचों-बीच कैंप में ठहरा। 5 जून को शिवपुरी में रिवर राफ्टिंग करने के बाद नीलकंठ महादेव, ऋषिकेश, हरिद्वार होते हुए 198 किमी बाइक चलाकर देहरादून पहुंचा। 6 जून को देहरादून से चला। दोपहर में पावंटा साहिब पहुंचा। फिर वहां से चंडीगढ़ होते हुए कुरुक्षेत्र तक का सफर किया। इस दिन कुल 364 किमी बाइक चलाई। 7 जून को कुरुक्षेत्र देखते हुए पानीपत पहुंचा। यहां पानीपत के युद्धस्थलों को देखने के बाद आगे बढ़ा। पानीपत के बाद जींद, राखीगढ़ी, हांसी होते हुए भिवानी पहुंचा। इस तरह इस दिन 283 किमी की दूरी तय की। 8 जून को भिवानी के पास हड़प्पा सभ्यता का स्थल मीतात्थल देखा। मीतात्थल के बाद भिवानी वापस आया। फिर लोहारु, झुंझनू, खंडेला, खाटूश्यामजी, जयपुर, किशनगढ़ होता हुआ अजमेर पहुंचा। सफर के 10 वें दिन सुबह 7 बजे से रात 12 बजे तक 506 किमी बाइकिंग की। 9 जून को 11 वें दिन सुबह 6 बजे अजमेर से पुष्कर के लिए निकला। फिर पुष्कर से अजमेर, मेवा का मथार, कुंभलगढ़ फोर्ट होते हुए हल्दी घाटी पहुंचा। हल्दी घाटी से नाथद्वारा होते हुए उदयपुर पहुंचा। इस दिन 385 किमी बाइकिंग की। अब 12 दिन चलने वाली इस यात्रा का अंतिम भाग...



रात को देर से सोने के बावजूद सुबह 4 बजे उठ गया। आज मुझे किसी भी तरह भोपाल पहुंचना था। हालांकि भोपाल यहां से 670 किमी था और अभी तक मैंने एक दिन में 506 किमी ही बाइक चलाई है। ऐसे में ये असंभव था लेकिन इसको संभव करना था। रात को ऑफिस ज्वाइन कर नौकरी भी करनी थी। 



इसलिए जल्दी तैयार हो गए। सुबह 5 बजे नहाकर तैयार हुआ और फिर अभी तक की सबसे लंबी बाइकिंग के लिए तैयार हुआ। सड़क पर जब आया तो बाहर अंधेरा पसरा हुआ था। अब आगे का सफर शुरु किया। 





ढाई घंटे की बाइकिंग के बाद सुबह 7.30 बजे चित्तौड़गढ़ पहुंचा। ये एक ऐतिहासिक नगर है। यहीं रानी पद्मनी ने जौहर किया था। उदयपुर से चित्तौड़गढ़ के बीच की दूरी 120 किमी है।









यही रास्ता पूछते-पूछते सबसे पहले चित्तौड़गढ़ के लिए पर पहुंचा। किले के नीचे द्वार पर ही एक लेख दिखा। उसे पढ़कर देखा तो यहां का 400 साल का इतिहास सामने आया। 



यह लेख था गाड़ी लौहारों का चित्रकूट(चित्तौड़गढ़) में प्रवेश। इसके अनुसार, 400 साल पहले जब चित्तौड़गढ़ पराधीन हो गया था तब यहां के वीर योद्धाओं ने दुर्ग छोड़ते समय ये प्रतिज्ञा की थी जब तक चित्रकूट स्वतंत्र न हो जाए तब तक वे इस दुर्ग पर नहीं चढ़ेंगे, घर बनाकर नहीं रहेंगे, खाट पर नहीं सोएंगे, दीपक नहीं जलाएंगे, पीने के लिए पानी खींचने का रस्सा नहीं रखेंगे।


तब से ये स्वतंत्रता प्रेमी बैलगाड़ियों में ही घर बनाकर देश के कोने-कोने में भटकते रहे हैं। इन्हें आम भाषा में लोह-पीटा कहा जाता है। देश की स्वतंत्रता के बाद भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 6 अप्रैल 1955 के दिन इनको किले में प्रवेश करा कर इस जाति की प्रतिज्ञा पूरी की। उस समय बंबई, मध्यप्रदेश, मध्यभारत,  पंजाब, हिमाचल, अजमेर, भोपाल तथा राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने द्वार पर इनका अभिवादन किया और भारत के रक्षामंत्री डाॅ.कैलाशनाथ काटजू ने इनका सम्मान किया था। 




इसके बाद किले पर पहुंचा। किले में प्रवेश करते ही एक गाइड कर लिया जिसने किला घुमाने के 50 रुपए मांगे। उस गाइड ने किले के बारे में जो जानकारी दी वह बहुत ही शानदार थी तो 50 की जगह 100 रुपए दिए। 






किले पर राणा कुंभा का महल, मीराबाई का महल, जौहर स्मारक, कीर्ति स्तंभ, विजय स्तंभ, पद्मावती का महल देखा। बाइक से 2 घंटे में पूरा किला देख लिया और यहां के बारे में रोचक जानकारी भी प्राप्त की। 
























इस किले पर तीन बार आक्रमण हुआ और तीनों बार विशाल पैमाने पर जौहर हुआ। जौहर यानि जीते-जी अग्नि में कूद कर जान दे देना। ये एक राजपूती प्रथा है।





किले पर घूमते हुए गाइड ने बताया कि यहां खूशबू और औषधी वाले कपड़े भी मिलते हैं। मैंने भी इन कपड़ों को ट्राइ किया। करीब 5 हजार रुपए में रजाई, सलवार सूट, साड़ी, टीशर्ट और जैकेट लिया। इसमें उस समय तो खुशबू रही लेकिन जब इसे धोया तो ये साधारण कपड़ों में बदल गए। इस तरह हम कर्रे तरीके से मूर्ख बन गए। बाद में जब दुकानदार को फोन लगाया तो उसने कहा कि कोई बात नहीं कपड़े वापस भिजवा दीजिए, हम दूसरे दे देंगे। अब कौन हाथी मारे और उसके दांत उखाड़े, इसलिए फिर यही सोचकर मन बना लिया है कि भाई कपड़े तो हैं और अच्छे हैं। 





सुबह 10 बजे से चित्तौड़गढ़ को छोड़ दिया और फिर ढाई घंटे तक बाइकिंग कर 125 किमी की दूरी तय की। अब गर्मी तेज हो गई और थकान भी। तो वहीं पास में एक चाय की दुकान पर गाड़ी लगा ली। थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर यात्रा शुरु की और दोपहर 1.30 बजे कोटा शहर में प्रवेश किया। वहीं पहुंचकर मैंने विजय सर को फोन लगाया लेकिन मोबाइल बंद जा रहा था। अब मैंने सोचा कि जिनसे मिलने के लिए कोटा का रास्ता पकड़ा, उनसे ही बात नहीं हो पा रही। फिर भी ये सोचकर कि पहले भास्कर ऑफिस तो पहुंचा जाए, फिर देखते हैं। संयोग से वहां विजय सर से मुलाकात हो गई। वह बस घर ही निकलने वाले थे। 





उन्होंने फिर वहां मैनेजर से ये कहते हुए मेरा परिचय कराया कि इसको देखकर लगता है कि जुनून क्या होता है। तब मैनेजर मुझसे एक ही सवाल करते हैं कि भास्कर की नौकरी में इतना टाइम मिल जाता है कि ये सब कर सको। मैंने जवाब दिया कि मैं तो 4 सालों से कर रहा हूं और आगे भी करुंगा। लोग शादी के लिए, फैमिली के साथ घूमने और घर जाने के लिए छुट्टी लेते ही हैं, मैं बस इसके लेता हूं। बाकी सब कैंसिल। 







दैनिक भास्कर  कोटा एडिशन में स्थानीय संपादक विजय सिंह चौहान जी, वर्तमान में ग्वालियर के स्थानीय संपादक । मेरी जीवटता के प्रेरणा स्त्रोत। 

यहां करीब 1 घंटा रुका और तीन बजे यहां से निकल गया। कोटा मैं पहले भी आ चुका था, इसलिए यहां ज्यादा रुकना नहीं था। 

अब यहां से शाम 6 बजे झालारपाटन के सूर्य मंदिर पहुंचा। यहां 11वीं शदी में सूर्य मंदिर बना था।

पुराणों में भगवान सूर्य देव की उपासना चतुर्भुज नारायण के रूप में की गई है। 'राजस्थान गजेटियर' झालावाड़ के अनुसार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभागभारत सरकार द्वारा यहाँ के संरक्षित महत्वपूर्ण स्मारकों की सूची में सूर्य (पद्मनाथ) मंदिर का प्रथम स्थान है।सूर्य मंदिर को 'पद्मनाथ' तथा 'सात सहेलियों का मंदिर' कहा गया है। 












अभी तक की यात्रा तो सही चल रही थी। अब यहां से भोपाल 235 किमी दूर था। शाम को 7.30 बजे राजस्थान और मध्यप्रदेश के बार्डर 'बनकर ' पर पहुंच गया।





वैसे देखा जाए तो अब भोपाल का रास्ता 3 घंटे का था लेकिन सड़क खराब होने की वजह से रात को 12 बजे साढ़े 4 घटें में भोपाल आ पाया। इस तरह एक दिन में 668 किमी की बाइकिंग करके उदयपुर से भोपाल आया, वह भी साधारण टीवीएस स्पोर्टस की 100 सीसी बाइक से। इस यात्रा में 11 हजार रुपए खर्च हुए। 



इतनी थकान होने के बावजूद आफिस गया। यहां मेरी नाइट ड्यूटी चल रही थी। भास्कर डिजीटल में मध्यप्रदेश की खबरों को प्लेस करने की जिम्मेदारी थी। सो पहुंच गए ऑफिस। रात को 12 से सुबह 7 बजे तक काम किया और फिर अगले दिन जमकर सोए। 

इस तरह 12 दिन का सफर सफलता पूर्वक पूरा हुआ। जब मैंने इसका प्लान बनाया था तो ये सफर 2500 किमी का था लेकिन पूरा हुआ 3850 किमी में। भरी गर्मी में जब लोग घर से नहीं निकल रहे थे, उस समय बाइक पर राजस्थान जैसे इलाके में घूम रहा था जहां गर्मी को लेकर रेड अलर्ट जारी किया गया था।  

2012 में गुजरात की 3450 किमी की यात्रा से शुरु हुआ सफर, उत्तरप्रदेश, बुंदेलखंड, महाराष्ट्र होते हुए उत्तर भारत के 7 राज्यों में खत्म हुआ। 


अब आगे की ब्लॉग में लिखूंगा मेरी पहली बाइक यात्रा गुजरात के बारे में जो मई 2012 में की गई थी। इस सफर में 5वें दिन एक भीषण एक्सीडेंट हुआ जिसमें मेरे हाथ और पैरों से खून की धार बहने लगी थी। बाइक के ब्रेक खत्म हो गए थे। जूते और चप्पल पहनने पर घाव दर्द करते थे, इसलिए नंगे पैर सफर किया। लेकिन उसके बाद भी तय प्लान के मुताबिक सफर कंपलीट किया। ... 

  

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