Sunday, September 25, 2016

कभी खाई में गिरते-गिरते बचा, तो कहीं बाइक पर चढ़ गई थी बस

                केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा


                                PART-9 केदारनाथ से शिवपुरी (उत्तराखंड) का सफर

25 सितंबर, भोपाल।  भोपाल से 30 मई को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरीपहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। 1 जून को आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी की दूरी तय कर पहुंचा। 2 जून को 305 किमी की यात्रा कर हस्तिनापुर से रुद्रप्रयाग पहुंचा। 3 जून को रुद्रप्रयाग से चला और 77 किमी दूर गौरीकुंड पहुंचा। यहां से केदारनाथ मंदिर की 16 किमी की चढ़ाई शुरू की। 3 जून की शाम केदारनाथ धाम पहुंच गया। अब आगे..


देवप्रयाग। यहां पर अलकनंदा और भागीरथी मिलकर गंगा नदी का रूप लेती हैं। हरा पानी भागीरथी और मटमैला पानी अलकनंदा नदी का है जो गंगोत्री और बद्रीनाथ से आती हैं। 

3 जून की रात में केदारनाथ मंदिर के दर्शन कर वापस डेढ़ किमी चलकर अपने कैंप में आया। मंदिर रात 8 बजे बंद हो जाता है। यहां मैंने चाय की एक दुकान पर चाय पीते-पीते केदारनाथ त्रासदी की चर्चा शुरू की तो चाय पिलाने वाला खुद इसका भुक्तभोगी निकला। उसका छोटा भाई इस त्रासदी में मारा गया था। वह इसलिए बच गया कि उस समय वह ननिहाल में था। उसने ये भी बताया कि त्रासदी बहुत भयानक थी। इस त्रासदी के बाद 2 साल तक यहां सन्नाटा छाया रहा। इस बार रास्ता बनने और सुविधाओं के कारण लोग आ रहे हैं। 

इस स्लीपिंग बैग से काटी हिमालय की ठंड में रात।
रात में स्लीपिंग बैग में सोया लेकिन टैंट में हवा आ रही थी। ठंड बहुत ज्यादा थी। किसी तरह रात कटी। 

सुबह साढ़े 4 बजे जग गया और सुबह मंदिर के दर्शन के लिए निकल गया। डेढ़ किमी चलकर फिर मंदाकिनी नदी के तट पर पहुंचा। नदी के पानी को जब हाथ लगाया तो करंट सा लगा। बिल्कुल बर्फ की तरह। लेकिन जब जुनून हो तो ये सब कोई मायने नहीं रखता। पड़ोसी का लोटा लेकर नहा ही लिया। नहाने के बाद शरीर से जैसे ठंड का नामोनिशान ही मिट गया। थकान पूरी गायब हो चुकी थी। 

4 जून 2016 को सुबह पौने 5 बजे। 

अलकनंदा नदी में स्नान।
नहा कर फिर मंदिर की लाइन में लगा। सवा 5 बजे ही सूर्य की किरणें हिमालय की चोटियों पर पड़ने लगी थी। मैं भी लाइन में लग गया। 
सवा पांच बजे ही हिमालय की चोटी पर दिखने लगी थी सूर्य की किरणें।

मंदिर के दर्शन के लिए लगी लाइन।

केदारनाथ मंदिर।

त्रासदी पर भारी आस्था, भक्तों की लगी भीड़।
मेरा नंबर करीब 1 घंटे बाद। बहुत भीड़ हो गई थी। अंदर जाकर शिवलिंग के दर्शन किए जो रात में नहीं हो पाए थे। 15 मिनट बाद ही मैं मंदिर परिसर से बाहर था। 


केदारनाथ ज्योर्तिलिंग।

केदारनाथ ज्योर्तिलिंग।

2013 की त्रासदी के बाद जब वहां मीडिया पहुंची तो इस हालत में था शिवलिंग। 

फिर मंदिर के आसपास घूमना शुरू किया। त्रासदी से पहले मंदाकिनी नदी का रूट दूसरा था लेकिन अब रूट बदल गया है। जिस बड़ी चट्टान की वजह से मंदिर ध्वस्त होने से बचा, उसकी लोग अब पूजा करने लगे हैं। चारों पीठों के संस्थापक आदि शंकराचार्य की समाधि का नामो-निशान मिट चुका है। अब यहां पक्का निर्माण नहीं हो रहा, टेंट और अस्थाई भवन ही बनाए जा रहे हैं। सुबह-सुबह हेलिकॉप्टर सेवा भी शुरू हो चुकी थी। इसी तरह घूमते-घूमते एक घंटा निकल गया। 8 बजे वापसी की यात्रा शुरू की। मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई थी, इसलिए आने के फोटो नहीं खींच पाया। 
केदारनाथ मंदिर।

हिमालय की गोद में है केदारनाथ मंदिर।

मंदिर के आसपास का एरिया।

इस चट्टान की वजह से मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ।

इस चट्टान की लोग करते हैं पूजा।

केदारनाथ धाम में बना भोपाल भवन।
केदारनाथ मंदिर पर हेलिकॉप्टर सेवा।


इस तरह बने हैं रहने के लिए हट।


गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक आने में 8 घंटे लगे लेकिन वापसी 4 घंटे में ही हो गई। इन 16 किमी में कहीं ब्रेक नहीं लिया और 12 बजे गौरीकुंड में आकर ही चैन लिया। 

गौरीकुंड।

गौरीकुड में पार्वती मंदिर, कहते हैं यही पर भगवान गणेश का सिर काटा गया था।

यहां पर आकर उस गर्म पानी से स्नान किया जो गौरीकुंड से निकलता है। यहां पार्वती देवी का मंदिर बना हुआ है। त्रासदी में यहां भी काफी नुकसान हुआ। यहां जब एक दुकानवाले से बात की तो उसने बताया कि दुकान में पूरा पानी और मलबा भर गया था।

16 किमी की दूरी पैदल तय करने के बाद सोचा कि कुछ आराम कर लूं, क्योंकि बाइक चलाना है। लेकिन मन नहीं माना और पौने 1 बजे वहां से निकलने की लिए बाइक निकाली। 

गौरीकुंड।

बाइक उठाकर आगे चलने की तैयारी।



जब जान जाते -जाते बची
तभी एक दुर्घटना होते-होते बच गई। मुझसे एक लड़के ने 6 किमी आगे सोनप्रयाग तक लिफ्ट मांगी। मैं इस पहाड़ी रास्ते पर किसी को साथ नहीं लेना चाहता था क्योंकि इससे गाड़ी के बैलेंस बिगड़ने का खतरा था। लेकिन जब उसने थोड़ी लाचारी दिखाई तो मैंने उसे बिठा लिया। यहीं गड़बड़ी हो गई। करीब 1 किमी आगे जाते ही बड़ा से ब्रेकर आया। कम स्पीड करता, उससे पहले ही ब्रेकर पर गाड़ी लहरा गई। उससे किसी तरह संभला भी नहीं था कि उससे भी खतरनाक ब्रेकर पर गाड़ी चढ़ गई। 10 फीट चौड़ी सड़क के एक तरफ पहाड़ तो दूसरी तरफ खाई थी। ब्रेकर से निकलते ही गाड़ी लहराते हुए पहाड़ में घुसने लगी, पीछे वजन हल्का हो गया। पीछे मुड़कर देखा तो लिफ्ट लेने वाला लड़का 100 मीटर दूर पड़ा था। बैग लटकाने की डोरी टूट चुकी थी। कुल मिलाकर जान जाते-जाते बची। मेरी और उस लड़के की। 

मैंने उसे बहुत डांटा लेकिन वह तो हाथ झाड़कर खड़ा हो गया और फिर साथ चलने की जिद करने लगा। मैंने भी उसे साथ ले लिया कि कहीं बैग की डोरी जुड़वा दे। बैग अब आगे रखना पड़ रहा था जो कि पहाड़ पर बहुत खतरनाक स्थिति थी। क्योंकि यहां तुरंत-तुरंत गाड़ी के गियर बदलना पड़ते हैं। लेकिन अब कर क्या सकते हैं। इस रिस्क के साथ ही आगे का सफर करना था। तीन बार इसी वजह से गाड़ी अनबैलेंस हुई। 
सोनप्रयाग।
साढ़े तीन बजे रुद्रप्रयाग पहुंच गया। यहां पर पहाड़ चढ़ते वक्त एक ट्रक से टकराते बचा। थोड़े आगे जाने पर आगे चलने वाली बस अचानक रूक गई, मैं भी उसके पीछे करीब 10 फीट की दूरी पर रुक गया। मैं सामने से वाहन निकलने का इंतजार करने लगा लेकिन कुछ निकला ही नहीं। मैं यह सोचने लगा कि बस रुकी क्यों है। तभी बस पीछे होने लगी। मेरे हाथ-पांव फूल गए क्योंकि मैं ढलान पर था, बैग आगे रखा था और गाड़ी गियर में खड़ी थी। जल्दी-जल्दी गियर बदलकर गाड़ी पीछे करने की कोशिश की लेकिन हो नहीं पा रही थी। तब तक बस बाइक के अगले टायर के कवर को दबा चुकी थी। बस का एक झटका और काम तमाम। मैं जोर जोर से आवाज लगा रहा था लेकिन कोई सुन ही नहीं रहा था। बस जब फंसी तो फिर पीछे से उतरकर कंडक्टर आया। उसने आवाज लगाकर बस रुकवाई। सब लोगों ने भीड़ लगा ली। मैंने गाड़ी वहां से निकाली तो देखा कि सड़क बनाने वाला रोलर को निकलना था और सड़क पर जगह नहीं थी, इसलिए बस को पीछे  किया जा रहा था। 


रुद्रप्रयाग।


रुद्रप्रयाग से आगे बढ़ा तो सवा 4 बजे श्रीनगर पहुंचा। यहां उसी ढाबे पर रुका, जहां पहले रुका था। वह भी पहचान गया था। वहां थोड़ा सा नाश्ता किया। 

जब वहां से चलने लगा तो उन्होंने अपने एक साथी को साथ लगा दिया कि इसे आगे तक छोड़ देना। उन्हें साथ लेकर आगे चला। अब रास्ता नदी के साथ-साथ चलना था इसलिए कोई समस्या नहीं थी। 
श्रीनगर।

इन शख्स को दी 50 किमी की लिफ्ट। नींबू पानी भी अपनी जेब से पिलाया।




शाम साढ़े 6 बजे देवप्रयाग पहुंचा। यहीं बद्रीनाथ-केदारनाथ से आने वाली अलकनंदा और गंगोत्री से अाने वाली भागीरथी नदी का संगम हाेता है। इसके बाद ये गंगा कहलाती है। यहीं एक सज्जन मिल गए जिन्हें थोड़ा आगे तक जाना था। उन्हें साथ लिया और यहां के बारे में बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। 
देवप्रयाग।






देवप्रयाग में मिले बद्रीनाथ मंदिर के पुजारी।
ये सज्जन ब्रदीनाथ मंदिर में ढिबरी थे। वहां की पूजापाठ सदियों से उनके पूर्वज ही करते आ रहे थे।उन्होंने कुछ बेहतरीन फोटो भी खींचे।





देवप्रयाग।
आदि शंकराचार्य के समय एक व्यवस्था शुरू हुई थी कि उत्तर भारत के मंदिर में मुख्य पुजारी दक्षिण भारत का होगा और उत्तर भारतीय सहायक होगा।  ये सहायक ही ढिबरी कहलाते हैं। दक्षिण भारत के मंदिरों में उत्तर भारतीय पुजारी मुख्य होता है और दक्षिण भारतीय सहायक। उत्तर-दक्षिण के भेद को मिटाने के लिए ये व्यवस्था बनाई गई थी। 





7 बजे यहां से चला और 80 किमी दूर ऋषिकेश के लिए यात्रा शुरू की। यहां पर सड़कें बहुत चौड़ी हो गई थी और 70 किमी प्रतिघंटा पर बाइक चल रही थी। पहाड़ों के बीच ये अविश्वसनीय रफ्तार है। 

8 बजे ब्यासी पहुंचा। वहां से अाधा घंटे बाद चलने के बाद  मैंने देखा कि राफ्ट गाड़ियों पर रखी हुई थी। मुझे इस जगह के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वहां रुककर एक ऑफिस से जानकारी लेनी चाही। तब पता चला कि यह उत्तराखंड में शिवपुरी जगह है। यहां से नदी में राफ्टिंग है और गंगा नदी के किनारे कैंप लगते हैं। 

अब मैनें सोचा कि जैसा ऋषिकेष वैसी ये जगह। मैंने 700 रुपए में सुबह के लिए राफ्ट बुक कर ली। अब रुकने की जगह आसपास पूछी तो पता लगा कि 2 हजार रुपए से कम का कमरा ही खाली नहीं है। बड़ी अजीब स्थिति थी, इतने पैसे रुकने के लिए खर्च नहीं कर सकता था। लेकिन इसका भी समाधान निकल गया। मैं जब वापस ऑफिस पहुंचा तो उसने बताया कि एक कैंपिंग साइट पर एक हट खाली है। वैसे तो उसका किराया तीन लोगों का 2500 रुपए है लेकिन आपसे सिर्फ 700 रुपए ही लूंगा। उसमें खाना भी था। जो मैं चाहता था, वह अपने आप हो गया था। 






शिवपुरी का एडवेंचर कैंप।

रात में बाइक चलाते ही 2 किमी नदी के अंदर कैंपिंग साइट पहुंचा। यहां करीब 60 हट बनी थी जहां दिल्ली और आसपास से काफी यंगस्टर और बिजनेसमेन छुट्टी माने आए थे। शनिवार और रविवार को यहां बहुत भीड़ रहती है। अपनी हट में बैग डालकर मैं एक ग्रुप में बैठ  गया। ये 6 लोगों का ग्रुप  था जो दिल्ली से आया था। उन्होंने जब मेरी बाइक यात्रा के बारे में सुना था तो वह काफी इंप्रेस हुए। वहीं पर शराब का दौर भी चला जो उन्होंने ही ऑफर की थी। वहां गर्मी ज्यादा थी इसलिए बिस्तर, हट के  बाहर ही लगाया। रात के 12 सोना हुआ। आज 16 किमी की पैदल यात्रा के साथ 200 किमी बाइक चलाकर गौरीकुंड से शिवपुरी पहुंचा।

आगे की लेख में पढ़ें, गंगा नदी में 12 किमी की रिवर राफ्टिंग के अनुभव, ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव, हरिद्वार और देहरादून का सफर...