Saturday, October 22, 2016

जब शुरु हुआ अचानक और अनजाना सफर, न मंजिल का पता न रास्ते का




                                            किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल।
                                           कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा।।




भोपाल/22 अक्टूबर 2016


कुछ दिनों से फैमिली प्रॉब्लम से मन में लावा उबल रहा था जिसका विस्फोट हुआ 17 अक्टूबर को। 16 तारीख को रात में आफिस में काम करने के बाद सीधा रेलवे स्टेशन गया। वहां पार्किंग में बाइक खड़ी और निकल पड़ा एक अनजाने सफर पर। 


न कोई बैग न कोई तैयारी। जो कपड़े पहने हुआ था उसी में चल दिया। भोपाल रेलवे स्टेशन पहुंचकर सुबह साढ़े 8 बजे पहुंच गया। पहले कन्याकुमारी जाने के लिए सोचा लेकिन वहां के लिए कोई ट्रेन नहीं थी। फिर मन बनाया कि चलो आगरा चलते हैं। आगरा जाने का टिकट लिया और फिर स्टेशन पर इंतजार करने लगे। पंजाब मेल, झेलम सामने से निकल गई लेकिन बैठा नहीं। फिर सुबह साढ़े 10 बजे आई अंडमान एक्सप्रेस।  उसी में सवार होकर आगे के सफर पर चल दिया। न कोई खाना न कोई पानी की बॉटल। जहां गाड़ी रुकी वहीं पानी पिया, जो मिला खा लिया। और हां मोबाइल बंद। 2 लोगों के अलावा किसी को खबर नहीं कि मैं कहां हूं। 

शाम को 7 बजे ट्रेन आगरा पहुंची। स्टेशन से बाहर निकलकर जमकर भूख लग रही थी लेकिन खाना खाने की इच्छा नहीं हुई। बस फुल्की खाकर पेट को थोड़ा आराम दिया। 

स्टेशन से ऑटो पकड़कर बिजली घर और वहां फिर नीलकंठ घटिया पहुंचा। वहां मेरे रिश्तेदार रहते थे। वहीं रात में रात में रुका। वह भी आश्चर्यचकित थे कि अचानक से बिना सूचना के मैं कहां से आ गया। 

सुबह 10 बजे खाना खाकर यहां से निकला और फिर सीधे स्टेशन पहुंचा। अब अगला पड़ाव दिल्ली का था। सुबह साढ़े 11 बजे कोंगु एक्सप्रेस मिली जिससे दिल्ली का सफर हुआ। ट्रेन में आराम से जगह मिल गई थी। 
3 बजे निजामुद्दीन स्टेशन पर था। वहीं अपनी पुरानी को फेंका और नई सैंडिल ली। वहीं मैंने मोबाइल चालू किया और अपने दोस्त विजय से बात की। वह आईबीएन 7 के आफिस में ही थे। 4 बजे तक वहां पहुंच गया। वह भी अचानक आने से चौंक गए थे। फिर कुछ देर बातचीत कर खाया पिया। उन्हें ऑफिस में काम करना था। अब टाइम पास के लिए पास में ही डीएलएफ मॉल चला गया। वहां फिल्म देखी और फिर 9 बजे तक वापस फिल्मसिटी आ गया। 

वहां से फिर विजय के साथ ही उनके घर साहिबाबाद गया जो 22 किमी दूर था। रात को 10 बजे घर पहुंच गए। मुझे अब नींद आने लगी थी इसलिए खाना खाकर सो गया। 

सुबह करवा चौथ का दिन था। पत्नी भोपाल में और मैं दिल्ली में। अब यहां से हरिद्वार जाना था जिसकी ट्रेन 10 बजे थी। लेकिन विजय से वृंदावन के बारे में सुना तो वहां का रास्ता पकड़ लिया। वैसे भी मैं श्रीकृष्ण से जुड़ी लगभग सभी जगह घूम चुका था जिनमें मथुरा(जहां श्रीकृष्णजी का जन्म हुआ), हस्तिनापुर, कुरुक्षेत्र, उज्जैन, चित्तौड़गढ़, खाटूश्याम जी, श्रीनाथजी, डाकोर, सोमनाथ, फालका तीर्थ (यहीं श्रीकृष्ण जी के पैर में तीर लगा था जिसके बाद उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया), द़वारा, बेट द्वारका। वृंदावन ही बचा रह गया था। 

पहले ट्रेन से जाने का इरादा था लेकिन फिर नोयडा-आगरा एक्सप्रेस वे से चलने की तैयारी की। रिक्शा, टेम्पो से वैशाली। यहां से मेट्रो यमुना बैंक तक मेट्रो ट्रेन पकड़ी। यहां से फिर नोयडा सिटी सेंटर के पास बस स्टैंड। बस स्टैंड पर मथुरा जाने के लिए दो बस खड़ी थी लेकिन गर्मी बहुत ज्यादा हो रही थी। वहीं से 12 बजे एसी बस पकड़ी और एक्सप्रेस वे पर चलते हुए  3 बजे वृंदावन मोड़ पर पहुंच गया। 




यहां से वृंदावन 7 किमी था लेकिन ऑटो वाला 150 रुपए से कम लेने को तैयार नहीं था। मैं करीब 1 किमी पैदल चला तो वहां ऑटो तो मिले लेकिन सवारी ही नहीं थी। फिर एक बाइक वाले से लिफ्ट ली। उसने 2 किमी आगे जाकर छोड़ दिया। फिर एक बाइक वाले से लिफ्ट ली तो उसने वृंदावन में ले जाकर छोड़ा। उसने यहां के फेमस बांके बिहारी मंदिर और प्रेम मंदिर के बारे में जानकारी भी दे दी। 

इस चश्मे को यहीं से खरीदा और 1 घंटे बाद वृंदावन में बंदर मेरी आंखाे से उतार कर ले गया।




फिर पैदल चलना शु्रु किया। थोड़ा आगे जाने पर रिक्शा मिला तो 4 बजे बांके बिहारी मंदिर पहुंचा। मंदिर बंद था और साढ़े पांच बजे खुलना था। फिर वहीं से निधि वन के बारे में जानकारी जमा की जो यहां से 1 किमी की दूरी पर था। वहां फिर पैदल ही चलकर गया। 

रास्ते में चलते-चलते ही मुझे अचानक लगा कि किसी ने मुझपर हमला कर दिया। मैं कुछ सेकेंड तक शॉक्ड रह गया कि इस भरे बाजार में इस तरह कौन हमला कर सकता है। मेरी आंखों से चश्मा गायब हो चुका था। पीछे मुड़कर देखा तो कुछ नजर नहीं आया। तभी किसी ने कहा कि बंदर तुम्हारा चश्मा ले गया। देखा तो एक छोटा बंदर नए-नवेले चश्मे के साथ प्रेक्टिकल कर रहा था। तभी वहां से कुछ अंग्रेज निकले और मुझे सलाह दी कहीं से केले लेकर इनको दो तो ये चश्मा दे देंगे। अब वहां केले कहां रखे। तब तक बंदर चश्में की एक डंडी मोड़ चुका था। हमने भी चश्मे का मोह त्यागा और फिर आगे चल दिए। 






निधिवन, वह जगह है जहां के बारे में कहा जाता है श्याम और राधा आज भी रात में रास रचाते हैं। इस जगह पर रात में कोई रुक नहीं सकता। निधि वन की लताएं कच्ची मिट्टी के साथ अनोखा भाव पैदा कर रही थीं। वहीं पास में एक कुंड है जिसमें से बांके बिहारी की प्रतिमा निकली थी। 





निधि वन में रंगमहल बना हैं जिसमें श्याम और राधा की सेज बनी हुई है। जब मैं वहां पहुंचा तो अकेला था। ऐसे ही पंडितजी से बातचीत हुई तो वह इस जगह के बारे में बताने लगे। उन्होंने कहा कि अभी जो श्रृंगार का सामान देख रहे हो, वह सुबह सब अस्त व्यस्त हो जाएगा। मैंने कहा कि एक फोटो ले लूं तो मना कर दिया। उन्होंने कहा कि एक बार यहां टीवी चैनल वाले आए थे और सब जगह कैमरे फिट कर दिए। रात को बाहर से ताला लगाकर चले गए। सुबह आकर देखा तो श्रृंगार सामग्री अस्त व्यस्त थी और कैमरे में सिर्फ एक लकीर रिकार्ड हुई। 


अब इस बात में कुछ सच्चाई हो या न हो, लेकिन सुबह यहां आने का कारण जरुर मिल गया।

यहां से पैदल चलकर यमुना किनारे गया जहां कदंब का पेड़ और कालिया नाग मर्दन जगह आज भी इस पौराणिक स्थान की महत्ता के बारे में बताती हैं। यहां से फिर बांके बिहारी मंदिर गया। वहां श्रीकृष्णजी की अद्भुत प्रतिमा के दर्शन किए जिससे मन में थोड़ा सकून मिला। 













इस मंदिर में आरती साढ़े 9 बजे होती है। मन में भाव था कि आरती देखनी है लेकिन अभी तो 6 ही बजे थे। ऐसे में यहां से प्रेम मंदिर चला गया। ये मंदिर संगमरमर का बना हैं और बहुत ही भव्य है। इसे कृपालु महाराज ने बनवाया है। रात में रोशनी में नहाया ये मंदिर अलग-अलग रंग की छटा बिखरेता है। मंदिर की दीवारों पर कृष्णलीला को उकेरा गया। यहीं पर फिर शाम 7 से साढ़े 7 बजे का लाइट एंड साउंड शो देखा जो काफी अच्छा लगा। 












यहां से फिर इस्कॉन मंदिर गया जहां विदेशियों को तांता लगा था। वहां कीर्तन और भजन चल रहे थे। मैंने भी दीया लेकर आरती की और फिर कीर्तन सुनने लगा। काेलाहल में अद्भुत शांति। 





यहां से फिर बांके बिहारी मंदिर आया और रात की आरती देखी। रात 10 बजे करह आश्रम में पहुंचा तो मेरे गुरुजी का था। वहीं एक खटिया मिली जिसपर रात बिताई। 




सुबह 5 बजे उठकर तैयार हुआ और पैदल ही निधिवन के लिए चल दिया। 1 किमी चलने के बाद एक टिमटिम मिली जिसने 40 रुपए लेकर निधि वन पर छोड़ दिया। 

निधि वन अभी खुला नहीं था। वहीं थोड़ी देर इंतजार किया और गेट खुलने पर अंदर पहुंचा। मंदिर के सामने काफी लोगों की भीड़ लग गई थी। आधा घंटे बाद पुजारी और केयर टेकर आए और 2 गेट और चार तालों को खोला। मंदिर खोलने के बाद पुजारी ने 2 चबी हुई दातुन, 4 में से 2 लड्डू कुचले हुए, बेड अस्त व्यस्त बताया। हमने भी आस्था से श्रीकृष्ण की जय जयकार लगाई और और फिर वहां से वापस चल दिए। 



मंदिर से बाहर निकलते ही एक व्यक्ति गले में माला धारण किए कृष्ण की भाव भंगिमा में नाच रहा था। जैसे ही मैंने उन्हें देखा तो वह वहां से भागते हुए चले गए कि लोेग मुझे पागल समझते हैं, यदि समझते हैं तो समझते रहें। जब तक मैं फोटो लेता वह कैंपस से बाहर निकल गया। 



जैसे ही मैं वहां से निकला तो कुछ विदेशियों को ऑटो से एक ही दिशा में जाते हुए देखा। मैं उनके पीछे-पीछे गया तो वह सभी गोकुलानंद मंदिर के अंदर जा रहे थे। करीब 50 लोगों में अकेला मैं ही भारतीय नजर आ रहा था बाकी सब विदेशी। वहां कीर्तन शुरू होने वाला था लेकिन मुझे अब वापस लौटना था इसलिए वहां रुका नहीं।








अब यहां से गुरुजी रामजी महाराज से मिलने गया जिनसे मेरी मुलाकात चित्रकूट की भगवद्कथा में हुई थी। उनसे मिलने के बाद फिर मथुरा रेलवे स्टेशन पहुंचा। 











 यहां ताज एक्सप्रेस पकड़ी जिससे झांसी तक गया। फिर झांसी से समता एक्सप्रेस पकड़कर भोपाल साढ़े 8 बजे पहुंच गया।

4 दिन में मैंने 7 या 8 बार ही मोबाइल कनेक्टिंग में रखा था। वह भी तब जब नेट से कुछ जानकारी लेनी होती थी या कोई अर्जेंट कॉल लगाना था। इस दौरान सिर्फ 3 कॉल अटैंड किए। 

                                  मुझे ख़बर थी मेरा इंतजार घर में रहा।

                                   ये हादसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा।।

चूंकि आने से पहले मैंने पत्नी को एसएमएस कर दिया था इसलिए उसने ज्यादा हंगामा नहीं किया। लेकिन इन 4 दिनों में काफी कोहराम मचा कि मैं बिना बताए कहां चला गया। तो ये थी उन 4 दिनों की दास्तान जिसकी पटकथा अचानक लिखी गई। फिर 10 बजे ऑफिस पहुंच गया और फिर से वही दिनचर्या शुरू हो गई। 


                                    ये बद-नसीबी नहीं है तो और फिर क्या है।

                                    सफ़र अकेले किया हम-सफ़र के होते हुए।।

इस तरह 4 दिन का अनजाना और अचानक सफर खत्म हुआ। इस दौरान 3 हजार रुपए खर्च रुपए खर्च हुए।