Wednesday, September 21, 2016

इस जगह पर किया था कर्ण ने कवच और कुंडल का दान, हस्तिनापुर में हैं महाभारत काल के अवशेष




                                    केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा

                           PART-5 महाभारतकालीन नगर हस्तिनापुर से कोटद्वार(उत्तराखंड) तक का सफर

21 सितंबर, भोपाल।  भोपाल से 30 मई को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरी पहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। 1 मई को आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी की दूरी तय कर पहुंचा। अब आगे..

हस्तिनापुर में रात में मुश्किल से जगह मिली लेकिन मिल गई। 2 मई को सुबह 5 बजे जगा और इस एेतिहासिक और पौराणिक नगरी को देखने के लिए तैयारी की। सुबह 6 बजे बाइक निकाली और निकल पड़े इतिहास को देखने। 
2 मई की सुबह 6 बजे। हस्तिनापुर में उगता सूर्य।
सबसे पहले गंगा स्नान की सोची। यहां से गंगा करीब 12 किमी दूर थी। यह वही गंगा नदी है जो कभी हस्तिनापुर के पास ही बहती थी और जिसके तट पर सूर्यपुत्र कर्ण मुक्त हस्त से दान देते थे।

गंगा नदी का रास्ता पूछते-पूछते आगे बढ़ा। एक जगह पता पूछा तो वह अपने बच्चे के साथ मुझे वहां ले जाने के लिए तैयार हो गया। रास्ते में बातचीत करते हुए आगे बढ़ता जा रहा था। कुछ समय बाद कच्चा रास्ता शुरू हो गया और फिर दिखाई देने लगा गंगा की उपशाखाएं। इसके बाद बाइक एक तरफ खड़ी की। 


कमर तक पानी में की गंगा पार

अब यहां से करीब आधा किमी नदी की उपशाखाओं को पार कर मुख्य गंगा तक पहुंचना था। अकेले होता तो शायद यहीं डुबकी लगा के चला जाता लेकिन एक लोकल आदमी का साथ होने से हिम्मत बंधी। उसने भी अपने कपड़े उतारे, अपने बेटे को कंधे पर बिठाया और अागे रास्ता देखते हुए बढ़ा। मैं भी पीछे-पीछे चला। एक जगह तो कमर से ऊपर तक पानी आ गया लेकिन फिर भी किसी तरह पार किया और पहुंच गए गंगा की मुख्य धारा पर। 

कंधे पर गंगा नदी की उपशाखाओं को पार करता स्थानीय वासी।

गंगा नदी ।

गंगा नदी की मुख्य धारा में किया स्नान।

नदी के बीच में लगे थे खरबूजे।

जल्दी घर पहुंच नहीं तो तेरी बीबी कर देगी कांड

1 घंटे बाद जब उन्हें घर छोड़ा तो गांव में कोहराम मच चुका था। हर जगह इनकी खोज शुरू हो गई थी। गांव में अफवाह फैल गई कोई बाइक वाला इन्हें उठाकर ले गया है। किसी ने उससे कहा कि, भाई तेरी बीबी 1 घंटे से तुझे ढूंढ रही है, जल्दी घर पहुंच नहीं तो कांड हो जाएगा। वह घबराकर जल्दी से घर की ओर बच्चे को लेकर भागा। 


उसके बाद मैं आगे चला। पहला स्थान पड़ा सूर्यपुत्र कर्ण का मंदिर। बताया जाता है कि इसी जगह पर कर्ण ने अपना स्वर्ण कवच दान किया था। जिस शिवलिंग की वह पूजा करते थे वह आज भी है और जहां वह बैठकर दान करते थे, उस जगह पर अब दुर्गा माता की प्रतिमा स्थापित है। 

सूर्य पुत्र कर्ण, सूर्येादय के समय गंगा स्नान के बाद इसी जगह पर दान देते थे। यहीं उन्होंने इंद्र को अपना स्वर्ण कवच और कुंडल दान दिए थे।

कर्ण मंदिर, हस्तिनापुर।

इसके बाद आगे बढ़ा तो फिर प्राचीन पांडवेश्वर महादेव मंदिर पहुंचा। यहां पर उसी समय के दो बरगद और पीपल के वृक्ष हैं जो महाभारतकाल की याद दिलाते हैं। यहीं वह शिवलिंग है जिसकी पूजा पांडव करते थे। 





हस्तिनापुर में प्राचीन समय की कम ही जगह बची हैं लेकिन जो भी हैं, वह उस काल की याद दिलाने के लिए काफी लगी। खासकर जब भारत के इतिहास और उसके गौरव को ही समूल नष्ट करने के प्रयास निरंतर हुए हों। 

हस्तिनापुर का जंबूदीप।

सुबह 8 बजे तक इन स्थानों पर घूमने के बाद वापस जैन मंदिर आ गया जहां मैं ठहरा था। यहां एक 101 फीट ऊंचा सुमेरू टावर बना है। यहां से हस्तिनापुर का विंहगम नजारा दिखाई देता है। 

यहां बने हैं कई जैन मंदिर
सन् 1974 से अब तक जम्बूद्वीप रचना के अतिरिक्त अनेक जिन मंदिरों का निर्माण हुआ है-कमल मंदिर, तीन मूर्ति मंदिर, ध्यान मंदिर, शांतिनाथ मंदिर, वासुपूज्य मंदिर, ॐ मंदिर, सहस्रकूट मंदिर, विद्यमान बीस तीर्थंकर मंदिर, आदिनाथ मंदिर, अष्टापद मंदिर, ऋषभदेव कीर्तिस्तंभ, स्वर्णिम तेरहद्वीप रचना, तीन लोक रचना, नवग्रहशांति जिनमंदिर, चौबीस तीर्थंकर मंदिर एवं श्री शांतिनाथ-कुंथुनाथ-अरहनाथ की 31-31 फुट उत्तुंग प्रतिमाओं की स्थापना ।

समेद शिखर तक जाने वाली सीढ़ी।

101फुट ऊंचे सुमेरू शिखर के ऊपर से लिया गया फोटो।

भव्य जैन मंदिर कैंपस।

हस्तिनापुर का जंबूदीप।

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101 फुट ऊंचा सुमेरू पर्वत टाॅवर।
जैन मंदिर में इस जगह ठहरा।
सुबह 9 बजे हस्तिनापुर से निकला और नाश्ता करने के बाद सुबह 10 बजे बिजनौर पहुंच गया। वहां थोडी देर चाय पी और आगे की रास्ता समझा। 
बिजनौर पहुंचने से पहले मिला गंगा नदी पर पुल।

बिजनौर।

बिजनौर, उत्तरप्रदेश।

बिजनौर बस स्टैंड से निकलते ही एक शख्स से कोटद्वार का पता पूछा तो वह भी साथ चलने को तैयार हो गया। यहां से कोटद्वार डेढ़ घंटे का रास्ता था। वह इस इलाके के बारे में जानकारी देने लगा। दोपहर 12 बजे हम नजीबाबाद होते हुए कोटद्वार पहुंच गए। यहां से अब अागे 300 किमी केदारनाथ तक सिर्फ पहाड़ ही पहाड़ हैं। मंजिल थी 13500 फीट पर हिमालय की गोद में विराजे केदारनाथ। 

बिजनौर से कोट्दवार तक  इन्हें दी लिफ्ट।

नजीबाबाद।

कोट्दवार, उत्तराखंड।

कोट्दवार का बाजार।

यहां से जाता है केदारनाथ और बद्रीनाथ का रास्ता।
अब यहां से आगे जिंदगी और मौत का सफर शुरू होता है। केदारनाथ जाने के लिए ये खतरनाक रास्ता है। यहां पर पहाड़ फटकर नीचे गिरते हैं तो कहीं हाथियों का डर है कि वह सड़क पर न मिल जाएं। इस रास्ते पर पहले पहाड़ के टॉप पर जाना होता है तो फिर एक एकदम नीचे नदी के लेवल पर। फिर पहाड़ चढ़ना और फिर उतरना। हर दो मिनट बाद मोड़ आ जाता है। बाइक का क्लिच दबाते-दबाते हाथ की नसें दर्द करने लगी। लगातार चलने के बाद भी 1 घंटे में सिर्फ 15 से 20 किमी का सफर ही तय हो पा रहा था।

इस यात्रा के बारे में बात करेंगे, अगले लेख में...उसमें बात होगी उस भूस्खलन और बारिश की जिसने रास्ता ही रोक दिया। रात बिताने के लिए जगह के लिए जद्दोजहद। धारीदेवी के उस मंदिर के बारे में जिसे हटाने के बाद 2013 में केदारनाथ घाटी में जलजला आया था...

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