Tuesday, January 15, 2019

महेंद्र सिंह #Dhoni को जब पब्लिक के पत्थरों से बचने के लिए बदलना पड़ा था घर

आज हर जगह क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की चर्चा हो रही है कि उसने क्रिकेट के खेल में जबरदस्त वापसी की है. हो भी क्यों नहीं, धोनी है ही ऐसी शख्सियत...अपनी बिहार-बंगाल की यात्रा के दौरान मुझे उसी रांची में जाने का मौका मिला जहां महेंद्र सिंह धोनी का घर है.

महेंद्र सिंह धोनी का रांची में रिंग रोड वाला 7 एकड़ में फैला आलीशान घर (Photo:Life on Travel)
छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार में बाइकिंग करने के बाद 21 अगस्त 2018 की रात 12 बजे रांची पहुंचा. वहां अपने एक साथी ओमप्रकाश सिंह के यहां रुका जो दैनिक भास्कर डिजिटल में सीनियर सब एडिटर हैं और बिहार और झारखंड की खबरों पर पैनी निगाह रखते हैं. रात को भूखा ही सोना पड़ा क्योंकि तब तक वहां के सारे होटल बंद हो चुके थे.

रात को ही प्लान ही बना कि सुबह धोनी का घर देखने जाना है. उस समय रांची मेरे लिए सिर्फ इतना ही था. इसके लिए रात में भास्कर के सीनियर स्पोर्टस रिपोर्टर नईम जी को फोन लगाया जो धोनी की हर खबर रखते हैं लेकिन उनसे उस समय बात नहीं हो सकी. खेर कोई बात नहीं, सोचा सुबह चलकर वहीं से फोन लगा लेंगे.

सुबह 6 बजे सोकर हम दोनों उठ गए. सबसे पहले धोनी के पुराने हरमू रोड के घर पहुंचे जो अब खाली पड़ा है. वहां कोई नहीं रहता. धोनी यहां से करीब 12 किमी दूर एक फॉर्म हाउस पर आलीशान घर बनाकर रहते हैं. जब मैंने अपने साथी से पूछा कि शहर के बीच में ये घर खाली कर क्यों चले गए तो उसने जवाब दिया कि जब भी धोनी कोई मैच हारते थे पूरे शहर की पब्लिक इस घर पर पत्थर फेंकने लगती थी. फैन्स भी यहां पर काफी तादाद में आते थे.
महेंद्र सिंह धोनी का रांची में हरमू रोड वाला पुराना घर (Photo:Life on Travel)
उस घर को देखने के बाद अब धोनी के नए ठिकाने की तलाश की. रांची में रिंग रोड में धोनी का ये फार्म हाउस करीब 7 एकड़ में फैला हुआ है. लोगों से पूछ-पूछकर शहर के बाहर हाइवे पर पहुंचे. वहां देखा कि बिल्कुल सुनसान जगह पर घर बनाया है. अब यहां से कोई पत्थर कितनी ताकत से भी फेंक ले, घर के अंदर नहीं जा सकता.
हम जब वहां पहुंचे तो धोनी अंदर ही थे. वहां से हमने नईम जी को फोन लगाया कि शायद मुलाकात करवा दें लेकिन उस समय ऐसा न हो पाया. गार्ड को भी कन्वेंस करने की कोशिश की भाई इतनी दूर से उसी स्पोर्टस बाइक से यात्रा करके आए हैं जिसका तुम्हारे साहब ने कई सालों तक प्रचार किया है. लेकिन गार्ड तो गार्ड है, उसने कहा कि साहब किसी से नहीं मिलेंगे. वह अभी सोकर उठे हैं.

महेंद्र सिंह धोनी का रांची में रिंग रोड वाला 7 एकड़ में फैला आलीशान घर (Photo:Life on Travel)
अब अपने पास इतना समय तो था नहीं कि पूरे दिन फैन के रूप में इंतजार करते. वैसे भी क्रिकेट में कोई ज्यादा इंटरेस्ट तो था नहीं. वह तो महेंद्र सिंह धोनी फिल्म देखी, उसमें लाइफ के इतने उतार चढ़ाव देखे कि सहज ही उनसे मिलने का मन हुआ. नहीं तो, पूरे देश के भ्रमण में मैंने किसी वीआईपी से मिलने का प्लान ही नहीं बनाया. नहीं तो आधा समय तो इसी की प्लानिंग में निकल जाता. अपने लिए तो आम लोग ही वीआईपी थे जो सहज भाव से अपनेपन से मिल तो लेते हैं.

खैर, उसके बाद वहां से 1 घंटे बाद वापिस हो लिए और अगली मंजिल के लिए निकल दिए. ठीक 10 बजे रांची शहर को नमस्ते कर आगे की राह चल दिए.



Sunday, January 6, 2019

स्कूबा डाइविंग में ऑक्सीजन खत्म, 10 सेकंड में होने वाली थी मौत लेकिन...

6 सालों में भारत (Solo India Trip on Bike) के 20 राज्यों में 23,500 किलोमीटर की बाइक से यात्रा के दौरान कुछ ऐसे पल भी आए जब सीधे मौत ने दस्तक दे दी। कुछ ही सेकंड ही आप मरने वाले हों और फिर उस स्थिति से बाहर आना। ऐसी ही एक घटना 28 मार्च 2017 को महाराष्ट्र के मालवण तट पर स्कूबा डाइविंग के दौरान घटी जिसके पास समुद्री सिंधुदुर्ग किला है।

प्रतीकात्मक फोटो
ये सफर नहीं आसां, बस इतना समझ लीजिए
आग का दरिया है और तैर कर पार करना है...

कुछ इसी तरह के अनुभव भारत यात्रा (Journey of India) में हुए हैं। आज मैं आपको बताने जा रहा हूं 28 मार्च 2017 की उस घटना के बारे में जब मैं साउथ इंडिया (Journey of South India) की 7214 किमी की यात्रा पर था।गोवा (Journey of Goa) से लौटते हुए समुद्री किले सिंधुदुर्ग को देखने की इच्छा हुई। सिंधुदुर्ग किला (Sindhudurg Fort)  महाराष्ट्र के मालवण तट पर है। मालवण से वहां जाने लिए स्टीमर चलते हैं।


मैं मालवण गया तो था किला देखने लेकिन वहां जब देखा कि 800 रुपए में स्कूबा डाइविंग हो रही है तो मैंने पहले स्कूबा डाइविंग (5 best places to go scuba diving in India) की सोची, उसके बाद किला घूमने की। अपनी बाइक (Bike Trip)  वहीं किनारे खड़े की और काउंटर पर जाकर 800 रुपए की रसीद कटाई। उस स्टीमर पर और भी लोग सवार थे जो स्कूबा डाइविंग के लिए ही बैठे थे।



मेरे समुद्र में उतरने से पहले तीन लोग स्कूबा डाइविंग करके आ चुके थे। उनके समंदर की तलहटी में रंगीन मछलियों और चट्टानों के साथ बेहतरीन फोटो आए थे। समंदर के अंदर वीडियो और फोटोग्राफी टिकट में ही शामिल थी।

मेरा भी नंबर आया तो कमर में लोहे का भारी बेल्ट बांध दिया गया। पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंडर और नाक को मास्क से पैक कर दिया गया। अब सिर्फ मुंह से सांस लेनी और छोड़नी थी। मुझे तैरना नहीं आता था लेकिन स्कूबा डाइविंग में ये कोई बाधा नहीं थी। 5 मिनट की प्रैक्टिस के बाद पहली बार गहरे समंदर में उतर गया। मैंने स्टीमर के पास ही गोता लगा लिया और पानी के नीचे गोता लगाने लगा।

\महाराष्ट्र के मालवण में सिंधुदुर्ग समुद्री किले के पास स्कूबा डाइविंग Scuba diving.
पहले तो सामने धुंधला पानी दिखा लेकिन जैसे ही तलहटी पर पहुंचा तो दुनिया ही बदल गई। आसपास ढेर सारी रंगीन मछलियां और साफ पानी। ऐसा लगा कि स्वर्ग में आ गए। सामने इंस्ट्रक्टर फोटो खींचने के लिए कैमरा सेट करने लगा। मैं भी एक समुद्री चट्टान पकड़कर इस बेहतरीन पल को एन्जॉय कर रहा था कि अचानक सबकुछ बदलने लगा।

मुझे अचानक लगा कि जैसे ऑक्सीजन खत्म हो गई। सांस लेने में तकलीफ होने लगी। ऊपर से समंदर के पानी का प्रेशर। मुझे लगा कि शायद मुंह से आक्सीजन की नॉब निकल गई है। मैंने उसे बाहर निकालकर फिर से आक्सीजन अंदर खींची तो समंदर का नमकीन पानी फुल प्रेशर से मुंह के अंदर घुस गया और सीधा दिमाग पर अटैक करने लगा। कानों के अंदर ऐसा लगने लगा जैसे वे फट जाएंगे।

फिर नॉब बाहर निकाली और सांस खींची, तब भी वही स्थिति। सिर्फ 5 सेकंड में ऐसा लगा कि कुछ ही सेकंड में मौत होने वाली है। सामने मेरे इंस्ट्रक्टर थे लेकिन उसे कुछ कह नहीं पा रहा था और न ही उस समय वह इशारा याद आ रहा था जो खतरे के समय करने से इंस्ट्रक्टर मुझे बचा सकता था। दिमाग धीरे-धीरे शून्य होने लगा।



ऐसे में मेरी विल पॉवर (Will Power)  काम में आई। मैंने तुरंत फैसला लिया कि अभी मुझे ही कुछ करना पड़ेगा लेकिन क्या, ये समझने में मैंने ज्यादा देर नहीं की। मुझे ये भी नहीं पता था कि मैं समंदर में कितनी गहराई पर हूं, लेकिन फैसला किया तलहटी में मरने से अच्छा है कुछ प्रयास करके मरना... और मैंने सीधा ऊपर की तरफ उठना शुरू कर दिया। 10 सेकंड में तेजी से ऊपर चढ़ते हुए सतह की तरफ बढ़ने लगा और जब ऊपर आया तो पेट के अंदर खारा पानी भर चुका था।

इंस्ट्रक्टर ने ऊपर पूछा कि क्या हुआ था। फोटो नहीं खिंच पाए हैं फिर से नीचे जाना पड़ेगा लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं बची थी। जल्दी से बोट पर आया और पेट से पानी निकाला। करीब आधा घंटे बाद दिमाग कुछ सोचने-समझने लायक हो पाया। खारे पानी ने सबसे पहले दिमाग पर ही अटैक किया था जिससे आपके निर्णय की क्षमता खत्म हो जाती है। समंदर में फोटो न खिंचने का मलाल रहा लेकिन ये भी सत्य था कि इसी समंदर में मेरी कब्र भी बन सकती थी। खैर कोई बात नहीं, उसके बाद आगे की यात्रा पर चल दिए...

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