Wednesday, November 14, 2018

विधानसभा चुनाव 2018 में किस करवट बैठेगा जीत का 'ऊंट', पढ़ें ग्राउंड रियलिटी

मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में किसकी बनेगी सरकार? नवंबर-दिसंबर 2018 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इन विधानसभा चुनावों में सरकार बनाने को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। पिछले 6 सालों में बाइक से 23,500 किमी की देशभर में यात्रा की जिनमें ये 4 राज्य भी शामिल हैं। यात्रा में दूर-दराज के इलाकों में भी जाना हुआ। उन्हीं अनुभवों के आधार पर ये बताने की कोशिश की जा रही है कि मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में किसकी सरकार बन सकती है...

छत्तीसगढ़ में किसकी बन सकती है सरकार?

अगस्त 2018 में छत्तीसगढ़ के कवर्धा, रायपुर, महासमुंद, जशपुर, सरगुजा, कोरबा, बिलासपुर के इलाके से गुजरा। वहां कई लोगों से बात की, वहां की लाइफ स्टाइल को समझा और वहां के लोगों की मूल भावना तक पहुंचने की कोशिश की। चूंकि राजनीति को लेकर मेरा कोई एजेंडा नहीं था इसलिए जो भी समझा, मूल को समझा।
विधानसभा चुनाव 2018: छत्तीसगढ़ की बसना जगह पर बाइक खराब, यहां दिखा राजनीति पर लोकल नजरिया। 
उसके अनुसार, इस बार भी छत्तीसगढ़ में रमन सरकार बन रही है। इसका कारण भी है...बसना में एक जगह बाइक खराब हो गई तो वहां करीब 2 घंटे तक राजनीतिक बातें सुनी। मुस्लिम स्वाभाविक रूप से बदलाव चाह रहे हैं लेकिन बीजेपी और रमन सरकार समर्थक उनकी हर बात को विकास और सोशल इंजीनियरिंग की ग्राउंड रियलिटी बताकर चुप कर देते हैं। ये सच भी है क्योंकि इसका लाभ तो सभी तबकों को मिला है, इसलिए इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता। हां, इतना जरूर है कि कांग्रेस शासन में इनका जो दबदबा रहता था, वह नहीं है।
विधानसभा चुनाव 2018: छत्तीसगढ़ का जशपुरनगर, ये कभी नक्सली इलाका था लेकिन अब कहा जाता है कि यहां शांति है।
वहीं, जशपुर, सरगुजा से जब निकला तो वहां हर जगह रमन सरकार की योजनाओं की आड़ में पोस्टर लगे हैं। ये पोस्टर यहां की जनता को इमोशनली अटैच करते हैं। यहां की जनता को लगता है कि गरीबी के बावजूद यदि वह अपने इलाके में सम्मान के साथ रह रहे हैं तो उसके पीछे रमन सरकार है। इस वजह से वहां बदलाव की बात तो हो रही है लेकिन एंटीइनकंबेंसी इतनी मजबूत नहीं है कि वह सरकार को बदल दे। ग्रामीण इलाकों में जोगी कांग्रेस का फैक्टर भी दिखाई दिया लेकिन वह सब बाहुबली उम्मीदवारों के भरोसे है। उनका अपना प्रभाव लोकल लेवल पर है। वह नतीजों को बदल भी सकते हैं लेकिन इमोशनली अटैचमेंट के लेवल पर रमन सरकार के नजदीक ये नहीं पहुंच पा रहे। इतिहास गवाह रहा है चुनाव में तर्क पर हमेशा भावना भारी रही है और इस बार भी ये रमन सरकार के साथ नजर आती है।

मध्यप्रदेश में किसकी बन सकती है सरकार?

6 सालों में हर यात्रा भोपाल से शुरू हुई और वहीं खत्म। इस नाते मध्यप्रदेश के चंबल, मालवा, महाकोशल, बघेलखंड, मध्यभारत के क्षेत्रों से गुजरना हुआ। इन सबका चरित्र अलग-अलग और एक दूसरे से विपरीत है। इसलिए यहां के बारे में कोई भी बात करना थोड़ा टेढ़ी खीर है लेकिन फिर भी कोशिश करते हैं...
विधानसभा चुनाव 2018: मध्यप्रदेश में रायसेन जिला, बीजेपी के बारे में यहां के लोग कह रहे हैं कि वह दंभी हो गए हैं।
इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन रही है। इसका कारण है...मध्यप्रदेश में कांग्रेस हमेशा से ही मजबूत स्थिति में रही है। 2003 में जब कांग्रेस की सरकार थी तब कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि वह इतनी बुरी तरह से हारेगी लेकिन वह हारी और उसका कारण बना था दिग्विजय का वह दंभ कि सरकार तो मैनेजमेंट से जीती जाती है। नतीजा भयानक हार और ऐसी हार कि 15 साल बाद भी वह लड़ने की स्थिति में नहीं आ पाई। इस बार फिर से वही सीन है बस पार्टी चेंज है। इस बार बीजेपी को शुरू से ही लग रहा था कि सामने तो कोई विपक्षी दल है ही नहीं। इस वजह से उसने हर स्तर पर मनमानी की। जिसको चाहा उपकृत किया और जिसे चाहा उसे छोड़ दिया। ये ठीक उसी तरह के चिह्न थे जो 2003 में बने थे। कांग्रेस भी इस बार छिपकर अपनी तैयारी करती रही और बीजेपी के सामने ऐसे दिखाया जैसे सामने खाली मैदान हो। अंदर ही अंदर दिग्विजय सिंह नर्मदा यात्रा पूरी कर आए, ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र में राहुल गांधी का भरोसा साथ लाए, कमलनाथ वित्तीय साधन के साथ मध्यप्रदेश के मैदान में उतरे और सुरेश पचौरी और अजय सिंह इनकी छाया में अपने क्षेत्र में ही सीमित कर दिए गए। अब बीजेपी का वास्ता एक ऐसी टीम से पड़ा है जो साम-दाम-दंड-भेद में सक्षम है और उसका असर भी दो महीनों में दिखना शुरू हो गया। वोटिंग के समय अभी कई छिपे हुए शस्त्र निकलेंगे और उन सबका एक ही उद्देश्य होगा कि मध्यप्रदेश में बीजेपी का खात्मा। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी पता है कि यदि वह जीत भी गए तो उनका मुख्यमंत्री पद जाना तय है इसलिए वह भी वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं। उधर, इस चुनाव में यदि शिवराज सरकार हारती है तो केंद्र में वनवास झेल रहे कैलाश विजयवर्गीय को भी ठंडक मिलेगी कि जिसके कारण वह निजी रूप से परेशान हुए, उसका फल उन्हें मिल गया। यहां की जनता का मानस भी बदलाव के पक्ष में है। ये बदलाव और तेज होता यदि शिवराज अहं भरी बातें कर देते लेकिन उनकी छवि समरसता की है इसलिए उतना पतन नहीं होगा, जितना कि 2003 में कांग्रेस का हुआ था।

अगले लेख में आप पढ़ेंगे राजस्थान और तेलंगाना के बारे में...