Friday, September 23, 2016

यहां मिला था नारद को रुद्र से संगीत का ज्ञान, वहां कुछ ही घंटो में बन गई थी 7 हजार लोगों की श्मशान भूमि

                        केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा

                      PART-7 रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड और फिर केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की चढ़ाई

23 सितंबर, भोपाल।  भोपाल से 30 मई को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरी पहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। 1 जून को आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी की दूरी तय कर पहुंचा। 2 जून को 305 किमी की यात्रा कर हस्तिनापुर से रुद्रप्रयाग पहुंचा। अब आगे..


पांचवे दिन बाइक से रुदप्रयाग से केदारनाथ के बीच 
2 जून को रात में देरी से सोया। रात भर अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के संगम की तेज गर्जना सुनाई देती रही। फिर भी मन प्रसन्न था। सोमनाथ, काशी विश्वनाथ, महाकालेश्वर, ओमकारेश्वर, घृष्णेश्वर, त्रयंबेश्वर, भीमाशंकर की बाइक से यात्रा करने के बाद सबसे दुर्गम केदारनाथ ज्योर्तिलिंग से बस 93 किमी दूर था। 

4 जून 2016 की सुबह, केदारनाथ मंदिर।

3 जून को सुबह 4 बजे जग गया। नहा कर तैयार तैयार हुआ और पौने पांच बजे यहां से आगे के सफर के लिए तैयार था। 

रुद्रप्रयाग की इस लॉज में रुका। सुबह के पौने पांच बजे आगे चलने के लिए तैयार।
बाइक बाहर ही सड़क पर खड़ी करनी पड़ी थी इसलिए पहले इसे चेक किया। भगवान रुद्र की तपस्थली इस समय सोई हुई थी और मैं आगे जाने के लिए तैयार था।


शांत रुद्रप्रयाग।
15 मिनट के सफर के बाद मैं मंदाकिनी और अलकनंदा के संगम पर था। यहां शिव के अवतार रुद्र का मंदिर है, जहां उन्होंने तपस्या की थी। यहीं पर नारद का संगीत का ज्ञान रुद्र ने दिया था जिसकी प्रतिमा यहां स्थापित है। यहां मैनें एक आश्चर्य भी देखा। एक शिवलिंग के सामने दो नंदी बने थे। इस बात का राज बताने वाला भी वहां कोई नहीं था। यहां संगम पर एक माता का मंदिर भी बना है जो केदारनाथ त्रासदी के बाद डैमेज हो गया है। 

रुद्रप्रयाग से बद्रीनाथ और केदारनाथ जाने के रास्ते अलग होते हैं।

भगवान रुद्र की तपस्थली। यहां एक शिवलिंग के सामने दो नंदी बने हुए हैं।

अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम पर बना शिव मंदिर।

तपोभूमि।

मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों का मिलन।

अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों का संगम। आगे जाकर यह अलकनंदा कहलाती है और देवप्रयाग में भागीरथी नदी से मिलकर गंगा कहलाने लगती है।

रुद्र से नारद संगीत की शिक्षा लेते हुए, रुद्रप्रयाग।


साढ़े पांच बजे यहां से आगे बढा। रात को जो रास्ता बंद था वह खुल गया था। लेकिन आगे बड़ा तो देखा कि सड़क का काफी हिस्सा टूट गया था। सुबह 6 बजे फिर से मौसम खराब होने लगा। मुझे लगा कि यदि बारिश हो गई तो बाइक से तो मुश्किल हो जाएगी। कब कौन सी चट्टान सिर पर आकर गिरे और लाइफ खत्म।  यहां रास्ता भी संकरा था और डेंजर भी। यहां कभी भी भूस्खलन हो जाता था जिसके प्रमाण आगे मिले।


रास्ते में मिली टूटी सड़कें। रात के भूस्खलन के बाद बनी थी स्थिति।


सुबह से ही मौसम बदलने लगा।


सुबह 6 बजकर 5 मिनट पर सूर्योदय हुआ। अब केदारनाथ 75 किमी बचा था। 




आगे की नैसर्गिक सौंदर्य को निहारते हुए आगे बढ़ा। सुबह पौने 7 बजे अगस्त मुनि पर था जहां अगस्त मुनि ने तमस्या की थी। फिर आगे ऊखीमठ का रास्ता मिला लेकिेन वह केदारनाथ के रास्ते से अलग था, इसलिए वहां नहीं गया। सवा 7 बजे गुप्त काशी पहुंच गया। यहां रुककर नाश्ता किया। 




अगस्तमुनि कस्बा।





गुप्तकाशी।

गुप्तकाशी में किया सुबह का नाश्ता।


आगे का रास्ता तय करते हुए साढ़े 8 बजे फाटा पहुंचा। यहां मैंने अपना मेडिकल फिटनेस का कार्ड बनवाया। केदारनाथ जाने के लिए ये एक आवश्यक दस्तावेज है। यहीं से हेलिकॉप्टर सेवा भी मिलती है जो डेढ़ घंटे में केदारनाथ मंदिर के दर्शन कराती है। इसके 7 हजार रुपए लगते हैं और बुकिंग पहले से करानी होती है। यहां कई हेलिपेड बने थे और हेलिकॉप्टर आसमान में चक्कर लगा रहे थे। 
यहां से केदारनाथ की हेलिकॉप्टर उड़ानें शुरू हो जाती हैं।

हेलिकॉप्टर सेवा।

फाटा। यहां पर बायोमैट्रिक्स प्रणाली से कार्ड बना।





फाटा से आगे चला और 9 बजे सोनप्रयाग पहुंच गया। बड़ी बस ऋषिकेश से सोनप्रयाग तक ही आती है। यहां से गौरीकुंड तक की 6 किमी की यात्रा या तो पैदल या फिर घोड़े से करनी होती है। मेरे पास बाइक थी , इसलिए सीधे गौरीकुंड के लिए आगे चल दिया। रास्ते में पैदल और घोड़े पर बैठे तीर्थयात्री मिलने लगे जो सैंकड़ों किमी की यात्रा कर केदारनाथ के दर्शन करने आए हैं।

सोनप्रयाग। 


सोनप्रयाग। यहां पर बसों का टर्मिनल बना है।


सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक पहुंचने में 15 मिनट लगे। यहीं पर अब बाइक रखना थी। इससे आगे की 16 किमी की चढ़ाई पैदल ही तय करनी थी जिसमें 8 घंटे लगने थे। अभी तक 1300 किमी से बाइक का सफर हो चुका था जिसमें 300 किमी का रास्ता पहाड़ों के बीच ही था।


सोनप्रयाग से गौरीकुंड का रास्ता।

गौरीकुंड।



गौरीकुड। अब यहां बाइक रखकर 16 किमी की चढ़ाई चढ़नी थी।

गौरीकुंड।

गौरीकुंड की ऊंचाई समुद्रतल से करीब 9000 फीट की ऊंचाई पर था। अब यहां से 13500 फीट की ऊंचाई तक चढ़ना था। वहां आक्सीजन का लेवल भी कम हो जाता है और गर्मी भी पड़ रही थी। ऐसे में मैनें बैग वहीं जमा किया और पानी की एक बॉटल लेकर पौने 10 बजे आगे चला। एक पैंट शर्ट में वहां जा रहा था जो जिसके चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी। मैंने सोचा कि रास्ते में ही कुछ ठंड के लिए ले लेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।


गौरीकुंड।

इस तरह की डोली में भी जाते हैं लोग।


बैग यहीं रखकर आगे खाली हाथ शुरू की यात्रा।
पहला पढ़ाव था 6 किमी की दूरी पर भीमबली, जो 6 किमी की दूरी पर था। यहां तक पहुंचने में ढाई घंटे लग गए। रास्ता बहुत ही रोमांचक था। यहां पर खाने पीने के लिए हर जगह व्यवस्था नहीं थी। कुछ निश्चित दूरी पर ही खाने-पीने की दुकाने बनी थी। चाय अब 15 रुपए की हो गई थी और खाना महंगा। 

रास्ते में घोड़े ही घोड़े।

गौरीकुड से केदारनाथ का रास्ता।


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15 मिनट के सफर के बाद मैं वहां पहुंचा जहां कभी भरा-पूरा बाजार था लेकिन 2013 की त्रासदी में श्मशान बन गया। रामबाड़ा, जहां एक रात में ही 7 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। भीषण जल प्रलय ने इसका नामोनिशान मिटा दिया। अब यहां कोई बस्ती नहीं है सिर्फ एक स्मारक बना है जो 2013 की त्रासदी की याद दिलाता है। इसके आगे का रास्ता 2013 में ध्वस्त हो गया था, इसलिए नया रास्ता बनाया गया है जिससे 4 किमी की दूरी ज्यादा हो गई है। पहले गौरीकुड से केदारनाथ 12 किमी था लेकिन अब 16 किमी की यात्रा है। 



इस जगह पहले बाजार था। 2013 की त्रासदी में यहां 7 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। फिर कभी नहीं बसी ये जगह।





इस जगह पहले रामबाड़ा बाजार था, अब सिर्फ पत्थर ही पत्थर नजर आते हैँ।
17 जून 2013 से पहले ऐसा नजर आता था रामबाड़ा।

यहां रुकने के लिए बने थे बड़े-बड़े होटल।
2 बजे के करीब वह स्थान आया जहां पहली बार जमी बर्फ दिखाई दी। सर्दियों में यह रास्ता पूरा बर्फ से ढक जाता है।






रास्ते में मिली जमी हुई बर्फ।


बर्फ के पहाड़ के नीचे से बहता पानी।


इससे आगे की यात्रा अगले लेख में... 





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