Friday, November 11, 2016

Solo #Biking: रहस्यमय नजर आया मिट्टी का टीला, 5 हजार साल पुरानी बस्ती है यहां दफन

                      केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा


                                         PART-15 भिवानी से अजमेर तक का सफर


11 नवंबर, भोपाल। भोपाल से 30 मई को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरी पहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। 1 जून को आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी की दूरी तय कर पहुंचा। 2 जून को 305 किमी की यात्रा कर हस्तिनापुर से रुद्रप्रयाग पहुंचा। 

3 जून को रुद्रप्रयाग से चला और 77 किमी दूर गौरीकुंड पहुंचा। यहां से केदारनाथ मंदिर की 16 किमी की चढ़ाई शुरू की। 3 जून की शाम केदारनाथ धाम पहुंच गया। 4 जून को वापस केदारनाथ से चला। 16 किमी की पैदल यात्रा के बाद 198 किमी बाइक चलाकर उत्तराखंड के शिवपुरी में आया। यहीं नदी के बीचों-बीच कैंप में ठहरा। 5 जून को शिवपुरी में रिवर राफ्टिंग करने के बाद नीलकंठ महादेव, ऋषिकेश, हरिद्वार होते हुए 198 किमी बाइक चलाकर देहरादून पहुंचा। 6 जून का देहरादून से चला। दोपहर में पावंटा साहिब पहुंचा। फिर वहां से चंडीगढ़ होते हुए कुरुक्षेत्र तक का सफर किया। इस दिन कुल 364 किमी बाइक चलाई। 7 जून को कुरुक्षेत्र देखते हुए पानीपत पहुंचा। यहां पानीपत के युद्धस्थलों को देखने के बाद आगे बढ़ा। पानीपत के बाद जींद, राखीगढ़ी, हांसी होते हुए भिवानी पहुंचा। इस तरह इस दिन 283 किमी की दूरी तय की। अब आगे..

राजस्थान में 50 डिग्री से ज्यादा टेम्प्रेचर और 2 बार गाड़ी पंचर, चलो इसी बहाने भरी दोपहरी में थोड़ा आराम करने का समय तो मिला।

30 मई से 10 जून 2016 के बीच इस तरह अकेले बाइक से की थी 3850 किमी की यात्रा।

8 जून 2016 का दिन:  भिवानी में रात गुजारने के बाद सुबह जल्दी चलने की तैयारी की। रात में जब आसपास के बारे में पता किया तो यहां से 10 किमी की दूरी पर मीतात्थल के बारे में पता लगा। ये हड़प्पा सभ्यता की साइट है। मैंने वहां जाने की तैयारी की।

भिवानी के होटल मौर्या में ठहरा।


सुबह 7 बजे मीतात्थल के लिए निकला। यहां भी जब जगह के बारे में पूछा तो गांव के आधार पर ही पता बताया लेकिन बिल्कुल सटीक। 7.30 बजे मैं मीतात्थल गांव में था। चौड़ी सड़कें और आयताकर बने हुए घर। आज भी हड़प्पा सभ्यता की तरह गांव नजर आया। मैंने यहां हड़प्पा साइट के बारे में गांववालों से पूछा तो कईयों ने तो इसे जानने से ही इनकार कर दिया। फिर मैंने दूसरे तरीके से बात की तो वह बोले कि ऐसी जगह है तो लेकिन उसे 'खेड़ा' कहते हैं। शायद वही जगह होगी। 

मीतात्थल गांव में ग्रामीण, हड़प्पा साइट की जानकारी देते हुए। गांव की चौड़ी सड़कें इसकी प्राचीनता को बताती हैं।



फिर गांव से 3 किमी आगे चला। मुख्य सड़क से जब पगडंडी पकड़ी तो रास्ता बताने वाला कोई नजर ही नहीं आया।  नहर के किनारे आगे चलता गया। एक जगह किसान खेत में हल चलाता मिला तो उससे उस खेड़े की बारे में जानकारी ली। उसने जो जगह बताई वह तो रास्ते में ही छोड़कर आगे बढ़ आया था। फिर वापस गया तो देखा, वहां तो सिर्फ टीला नजर आ रहा था और उस टीले पर मिट्टी के बर्तनों के अवशेष फैले हुए थे। 


पगडंडियों पर चलकर पहुंचा मीतात्थल।

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टीले के आसपास खेती हो रही है।
यहां खुदाई का कोई चिन्ह नजर नहीं आ रहा था। पास में ही एक पेड़ था और एक हड्डी डली हुई थी। उस सन्नाटे में बिल्कुल अकेला था। वहीं मुझे कुछ ऐसे पैरों के निशान दिखे जो आम इंसान से काफी बड़े थे। ये सबकुछ बहुत रहस्यमय लग रहा था

टीले पर जगह-जगह बिखरे पड़े हैं मिट्टी के बर्तनों के अवशेष।



पहले मैं इसे किसी इंसान की हड्डी समझा, लेकिन गांववालों ने बताया कि ये जानवर की है। ये पेड़ भी रहस्यमय नजर आ रहा था।

मिट्टी में पैरों के निशान, जो आम आदमियों से बड़े नजर आ रहे हैं।


  • इसकी खुदाई सन् 1968 ई. में की गयी।
  • हड़प्पा नगरों के समान ही यह नगर भी दो भागों में विभाजित था।
  • इस नगर को योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया लगता है।
  • चौपड़ की बिसात के नमूने की सड़कों और गलियों के दोनों ओर घर बसे हुए थे, जिनके बनाने में कच्ची ईंटों का प्रयोग किया गया था।
  • ऐसी ही ईंटें कालीबंगा से प्राप्त हुई हैं।
  • यहाँ से कई प्रकार के मृद्भाण्ड भी प्राप्त हुए हैं।
। 
टीले की खुदाई में इस तरह निकला था मीतात्थल। 

फिर मैंने वहां से वापस लौटना शुरू किया तो खेत में कुछ लोग दिखे। उनसे इस बारे में जानकारी ली तो वह इस खेड़े के बारे में बताने लगे। उनमें से एक व्यक्ति को साथ लेकर मैं वापस खेड़े पर आया और फिर यहां के बारे में पता किया। उन्होंने उस जगह दिखाया जहां तब खुदाई हुई थी, जब बंशीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। इस जगह का नाम खेड़ा पड़ने का कारण उन्होंने बताया कि जो बस्ती जमीन में दफन हो जाती है, उसे खेड़ा कहते हैं।

टीले के बारे में जानकारी देते ग्रामीण।
उन्होंने बताया कि पहले ये टीला बहुत बड़ा था। बरसात में यहां ढेर सारी चूडिया सतह के ऊपर दिखने लगती थी। इस टीले में सोने के सिक्के भी निकले। उसे गाड़ी में भरकर ले जाया गया था।

बरसात में टीले से निकल कर बाहर बहने लगती हैं चूड़िया।

इस जगह पर हुई थी खुदाई। अब आता है ऐसा नजर।


भिवानी शहर में लगी चौधरी देवीलाल की प्रतिमा।

इस जगह के बारे में जानकारी लेकर 8.40 पर वापस भिवानी आ गया। अब यहां से आगे की यात्रा पर निकला।   


आगे की यात्रा अगले लेख में....


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-PART-13  कुरुक्षेत्र से पानीपत तक का सफर:यहां चाय वाला रखता है 45 हजार का मोबाइल, पानीपत की युद्ध भूमि का बना साक्षी



-PART-11 देहरादून से कालसी होते हुए पावंटा साहिब तक का सफर: सम्राट अशोक के कालसी शिलालेख में है राजा और प्रजा का रिलेशन, गुरु गोविंद सिंह से जुड़ा हैं पावंटा साहिब

-PART-10 शिवपुरी (उत्तराखंड) से देहरादून का सफर: जंगल कैंप और रिवर राफ्टिंग का रोमांचक अहसास, भगवान शिव ने पिया था यहीं विष का प्याला








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