Thursday, September 22, 2016

पहाड़ों ने दिखाया अपना रंग, बारिश और भूस्खलन ने रोक दिया रास्ता

                        केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा

                 PART-6 कोटद्वार(उत्तराखंड) से रुद्र की नगरी रुद्रप्रयाग तक

22 सितंबर, भोपाल।  भोपाल से 30 मई को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरी पहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। 1 जून को आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी की दूरी तय कर पहुंचा। 2 जून को 100 किमी की यात्रा कर हस्तिनापुर से उत्तराखंड में कोटद्वार पहुंचा। अब आगे..


कोट्दवार से रुद्रप्रयाग के बीच पौड़ी गड़वाल।

कोटद्वार से दोपहर 12 बजे चला। थोड़ा सा आगे जाने पर ही इस रास्ते पर चलने का खतरा समझ में आ गया। 6 मिनट बाइक चलाने के बाद कुछ देर पहले ही पहाड़ से पत्थर गिरे थे, जाे सीधे गाड़ी चलाने वाले के ऊपर गिरते हैं। आगे जाने पर एक चेतावनी का बोर्ड दिखा जिसमें लिखा था कि ये हाथी का कॉरीडोर क्षेत्र है। आपके सामने कभी भी जंगली हाथी आ सकते हैं।

 कोटद्वार के बाद पहाड़ शुरू हो जाते हैं। रास्ते में गिरी मिली चट्टानें।
हाथी कॉरीडोर क्षेत्र। यहां हाथियों की बहुतायत है।


पहाड़ी रास्ते पर नैसर्गिक दृश्यों के देखते चले। गर्मी से अब राहत मिलनी शुरू हो गई थी। एक समय तो ठंड का अहसास होने लगा। 1 घंटे  चलने के बाद एक चाय की दुकान मिली तो वहीं डेरा जमा लिया।

इस बाइक से चल रहा है सफर।

खूबसूरत रास्ता।
जंगलों से घिरा रास्ता।
एक सेल्फी तो बनती है।
यहां की लोकल भाषा में बात करते लोग और चाय की दुकान।
15 मिनट आराम करने के बाद फिर चला। तभी रास्ते में सड़क पर ही पत्थर की चट्टानें मिली। ये कुछ समय पहले ही पहाड़ से टूट कर गिरी थी इन्हें हटा दिया गया था।






2 घंटे पहाड़ी रास्ते में चलने के बाद 2 बजे फिर नीचे उतरा। यहां एक नदी की घाटी में सतपुली बसा है।



फिर यहां से चलना शुरू किया तो 2 घंटे बाद पौड़ी गड़वाल जगह आई। यह शहर पहाड़ के ऊपर ही बसा है।

सदाबहार पेड़।

यहां जगह-जगह लगे हैं ऐसे चेतावनी के बोर्ड।


पौड़ी गड़वाल।

पौड़ी गड़वाल शहर।

पहाड़ की गोद में बसा पौड़ी।
 अब इसके बाद अगली मंजिल श्रीनगर थी जो यहां से 30 किमी दूर है। श्रीनगर पर ऋषिकेश वाला रास्ता भी आकर मिलता है। 5 बजे श्रीनगर पहुंच गया। 

श्रीनगर, उत्तराखंड।

श्रीनगर शहर।

क्रिकेट खेलते बच्चे।
शाम के साढ़े पांच बज रहे हैं और बादलों की लुका-छिपी शुरू हो गई। 
श्रीनगर में ज्यादा रुका नहीं और आगे चलता रहा। शहर से 10 किमी आगे चला तो 5 बजकर 35 मिनट पर एक खाने के ढाबे पर रुका। सुबह से कुछ खाया नहीं था तो वहां जल्दी से मैगी का आर्डर दिया। मैगी की प्लेट 60 रुपए की थी। अब पहाड़ों में महंगी चीजें मिलना शुरू हो गईं। 





यहां 15 मिनट रुकने के बाद आगे चला। यहीं मुझे जानकारी मिली कि आगे मौसम खराब हो रहा है। नरकोटा में जाकर रुकने की व्यवस्था करनी थी जो यहां से सिर्फ 7 किमी था लेकिन अब बदलते मौसम के साथ ये रास्ता भी रिस्की हो गया।  थोड़ा आगे जाने पर धारीदेवी का मंदिर मिला जिसे पार्वती माता का रूप कहा जाता है। ये चार धामों की रक्षक देवी है। 2013 में केदारनाथ में जो तबाही मची थी, वह इसी प्रतिमा को हटाने के कारण मची थी।
अलकनंदा नदी के बीच में धारीदेवी का मंदिर।

धारी देवी की प्रतिमा, जिसे काटकर ऊपर स्थापित किया गया है।

इसके नीचे है वह जगह जहां प्रतिमा स्थापित थी। श्रीनगर में जो डेम में पानी भरने से पहले ये प्रतिमा नदी से 20 फीट ऊपर थी जो पूरी डूब चुकी है। 
धारी देवी मंदिर।
शाम के 7 बजने वाले हैं और मौसम बदलने लगा।

शाम को 7 बजे नरकोटा पहुंचा तो पता लगा कि आगे रास्ता बंद है। यहां से रुद्रप्रयाग सिर्फ 3 किमी दूर है लेकिन  रास्ता तीन जगह से बंद हो चुका था। अब यहीं रुकने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। जब यहां खाने की व्यवस्था देखी तो यात्रियों के कारण खाना ही खत्म हो गया था। रुकने के लिए भी जगह नहीं थी। फिर घनघोर बारिश शुरू हो गई। 



नरकोटा से आगे रास्ता बंद हो चुका था। यहीं पर सारे यात्री रुके हुए थे।

शुरू हो चुकी थी बारिश।
रात 8 बजे पता चला कि रास्ता से पत्थर हटा दिए गए हैं और रुद्रप्रयाग तक का रास्ता खुल चुका है। 
8 बजे चलना शुरू किया तो 3 किमी के सफर में 1 घंटा लग गया। गाड़ियों की लंबी लाइन लगी थी। एक-एक तरफ से गाड़ियां निकल रही थी। ऊपर से बारिश भी हो रही थी। रास्ते में रुकने की जगह देखी लेकिन सब जगह हाउसफुल ही सुनने को मिला। किसी तरह 9 बजे रुद्रप्रयाग पहुंचा लेकिन समस्या अभी खत्म नहीं हुई थी।


यहां सड़क पर टूटकर गिरा था पहाड़।
वाहनों की लगी कतार।

9 बजे रुद्रप्रयाग पहुंचा।

अब यहां रुकने की जगह ढूंढ़ने की जद्दोजहद शुरू हुई। आगे बद्रीनाथ-केदारनाथ का रास्ता बंद था इसलिए यात्री यहीं रुके हुए थे। यहां रुकने के लिए कई जगह भटका लेकिन जगह नहीं मिली। इसी में रात के 11 बज गए। अब यह भी चिंता होने लगी कि मोबाइल और बैटरी चार्ज करनी है। एक जगह तो मैंने लॉज वाले से कहा कि एक बिस्तर लगाकर जमीन पर ही सोने दो  तो उसने इसके लिए भी मना कर दिया। अब मैंने अंतिम प्रयास किया और फिर एक जगह लॉज 500 रुपए में मिली। इसी में रात के 12 बज चुके थे। आज रात का खाना भी नहीं खा पाया था। 

अब आगे की यात्रा अगले लेख में...



1 comment:

  1. आपके ब्लॉग के जरिए उत्तराखंड वाले श्रीनगर के बारे में जानकारी मिली। अब तक केवल जम्मू-कश्मीर वाले श्रीनगर के बारे में जानते थे।

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