Friday, September 16, 2016

श्रीकृष्ण की जन्मस्थली को किया प्रणाम, हस्तिनापुर में मुश्किल से मिली रुकने की जगह

         केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा

      PART-4 मुगलकालीन शहर आगरा से महाभारतकालीन नगर हस्तिनापुर तक की यात्रा

भाेपाल. 16 सितंबर।

भोपाल से 30 मई को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरी पहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। अब आगे...


1 जून 2016, तीसरा दिन।  रात में देर से सोने के कारण सुबह देर से उठा। सुबह 8 बजे तैयार होकर जैसे ही बाइक पर बैठा तो कुछ गड़बड़ लगी। बाइक पंचर हो चुकी थी। अब कॉलोनी की आधा सड़क गाड़ी को धकाकर दुकान तक लाया। वहां पर पता लगा ट्यूब ही फट गया। नया ट्यूब डलवाकर सुबह 9 बजे आगरा से निकल पाया।
आगरा में अपने दोस्त अजय रावत के रूम पर रुका।

पंचर बाइक को ठीक कराया।
भगवान टॉकिज से निकला तो शहंशाह अकबर के मकबरा सिकंदरा पहुंचा।
शहंशाह अकबर का मकबरा, सिकंदरा, आगरा।
वहां थोड़ी देर रुकने के बाद आगे चला और सवा 10 बजे आगरा से 60 किमी की दूरी पर श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा पहुंचा।
श्रीकृष्ण जन्म स्थल, मथुरा।
इसी जगह पर करीब 5 हजार साल पहले हुआ था भगवान श्रीकृष्ण का जन्म।


श्रीकृष्ण का मंदिर।
रास्ता पूछते-पूछते भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पहुंचा। वहां का मंदिर देखने के बाद 12 बजे मथुरा से निकला और 64 किमी की दूरी पर सवा 2 बजे अलीगढ़ पहुंचा। 
अलीगढ़।

अलीगढ़ में घोड़े की पैर में नाल ठोकता हुआ घोड़ागाड़ी मालिक।

अलीगढ़ शहर।
अलीगढ़ से निकलने के बाद बीच में आधा घंटा थोड़ा आराम किया और फिर 70 किमी दूर बुलंदशहर 5 बजे पहुंचा। यहां पर आम ही आम के बगीचे नजर आए।
धूप तेज और थकान से बेहाल। वहीं किसी घर के आगे खटिया मिली और शुरू हो गया आराम।
बुलंदशहर में चारों तरफ आम ही आम के पेड़ नजर आए।
बुलंदशहर से आगे चला और 32 किमी दूर हापुड़ पौने 6 बजे पहुंचा। यहां मैंने हस्तिनापुर का रास्ता पूछा तो किसी ने गढ़मुक्तेश्वर होकर जाने की सलाह दे दी। यह रास्ता अच्छा था लेकिन लंबा हो गया। एक रास्ता मेरठ होकर भी जाता था। 
हापुड़।
अब शाम हो गई थी और रास्ता भी सनसनाता हुआ था। 30 किमी की दूरी 30 मिनिट में तय कर गढ़ मुक्तेश्वर पहुंचा। फिर यहां से मेरठ जाने वाली सड़क पकड़ी। यहां से किठोर पहुंचा। किठोर से परीक्षितगढ़ होते हुए हस्तिनापुर रात 8 बजे पहुंचा। हस्तिनापुर, गढ़मुक्तेश्वर से 60 किमी दूर पड़ा।

इस रास्ते से एक फायदा ये हुआ कि गढ़मुक्तेश्वर और परीक्षितगढ़ के रास्ते में मिनी पाकिस्तान नजर आया। यह शायद मुस्लिम बहुल एरिया था। रास्ते के साइनबोर्ड में भी हिंदी, अंग्रेजी के साथ उर्दू में लिखा हुआ था।
गढ़मुक्तेश्वर।

गढ़मुक्तेश्वर और हस्तिनापुर के बीच का रास्ता।
 शाम सवा 7 बजे परीक्षितगढ़ पहुंचा। इस जगह का नाम अर्जुन के पुत्र और हस्तिनापुर सिंहासन के उत्तराधिकारी परीक्षित के नाम पर पड़ा। यहां मैनें जब पूछा कि यहां क्या देखने की जगह है तो वे बोले कि सब खत्म हो गया है। अब तो यहां कुछ देखने लायक नहीं बचा है। यहीं पर नारियल से बनी लस्सी पी जो बहुत ही अच्छी लगी।
परीक्षितगढ़ का प्रवेश द्वार।

परीक्षितगढ़ के दर्शनीय स्थल के बारे में पूछा तो इनसे जवाब मिला कि अब तो यहां उस समय का कुछ भी नहीं बचा है।
आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी दूर था।  रात 8 बजे महाभारतकालीन नगर में पहुंच तो गया लेकिन असली जद्दोजहद अब शुरू हुई। यहां रूकने की कोई जगह ही नहीं मिली। यहां कोई परिचित भी नहीं था। न तो कोई लॉज और न कोई होटल लोगों ने बताया। मुझे किसी ने सलाह दी कि 3 किमी आगे जंबूदीप में रूकने की कुछ व्यवस्था हो सकती है तो मैं आगे चल दिया।
हस्तिनापुर।
जंबूदीप में हर जगह जैन मंदिर और धर्मशाला ही नजर आए। यहां पर सिर्फ जैन ही रूक सकते हैं, अन्य किसी धर्म वालों के लिए रूकने की कोई जगह ही नहीं। तीन-चार जगह जाने के बाद कस्बे के अंतिम सिरे पर पहंचा और एक जैन मंदिर में पहुंचा। समय-समय धीरे-धीरे निकलता जा रहा था। फिर  थोड़ा प्रयास किया और बताया कि बाइक से भोपाल से आया हूं। अब इतनी रात को कहां जाउंगा तो थोड़े प्रयास के बाद उन्होंने रात 10 बजे तक एक कमरे की व्यवस्था की। इस तरह मुझे पहली बार यह भी पता चला कि एक समय भारतवर्ष का शक्तिशाली हस्तिनापुर अब कितना छोटा हो गया है।
हस्तिनापुर में समेद शिखर से लिया गया फोटो। इसी कैंपस में मुझे रुकने की जगह मिली थी। 

चौथे दिन की यात्रा में पहाड़ों में हई। महाभारतकालीन नगरी हस्तिनापुर में गंगा स्नान और पांडव और कर्ण से जुड़ी जगह देखने के बाद आगे निकला।  हस्तिनापुर से बिजनौर, कोटद्वार, पौड़ी गड़वाल, श्रीनगर, धारीदेवी होते हुए रुद्रप्रयाग पहुंचा। रास्ते में ही भूस्खलन के लिए बदनाम ये रास्ता में कैसी समस्याएं आईं। 

इस बारे में विस्तृत अनुभव अगले लेख में...







No comments:

Post a Comment