मोटरसाइकिल से 6 सालों में 23 हजार 500 किलोमीटर की देशभर में अकेले यात्रा करने का संकल्प पूरा करने के बाद अब कुछ छोटी यात्राओं की ओर मन लगाया। इस बार जगह भी बदली थी और संस्थान भी। हर बार मैं भोपाल से यात्रा शुरू करता था लेकिन इस बार यात्रा दिल्ली से शुरू की। यहां रहते हुए 8 महीने हो गए हैं। कार तो अपने साथ भोपाल से ले आया था लेकिन बाइक भोपाल में ही रखी रही। ऐसे में सबसे पहले बाइक की जुगाड़ की।
30 और 31 मई का ऑफिस में वीक ऑफ था। ऐसे में इन्हीं दो दिन में रिषिकेश की 600 किलोमीटर की यात्रा का प्लान बना डाला। मेरे ऑफिस के साथी ददन विश्वकर्मा के पास बजाज एवेंजर बाइक थी। 29 मई की रात 9 बजे मैंने उनसे बाइक मांगी तो उन्होंने सहर्ष हामी भर दी। फिर मैंने रूम में अपने एक साथी निखिल शर्मा से कहा कि मैं दो दिन के लिए बाइक से रिषिकेश जा रहा हूं, कमरे का ख्याल रखना। उसने दो मिनट सोचा और कहा कि मैं भी चलूंगा। वैसे तो मैं अभी तक बाइकिंग पर अकेले ही गया हूं लेकिन इस बार सोचा कि देखते हैं, साथी के साथ जाने का अनुभव क्या होता है। मैंने भी हां कह दी। सुबह 6 बजे निकलना तय हुआ।
सुबह 6 बजे उठकर तैयार हुए और बाइक के लिए ददन भाई को फोन लगाया लेकिन फोन उठा नहीं। अब यह चिंता होने लगी कि न तो हमने उनका घर देखा है और न कॉन्टेक्ट हो पा रहा है। अब बाइक मिलेगी भी या नहीं। फिर सोचा कि अपनी कार से ही चलें लेकिन कमिटमेंट तो बाइकिंग का था न कि कार का। एटीएम में पैसा निकालने गया तो कार्ड ही ब्लॉक हो चुका था, नया कार्ड एक्टिवेट करने का समय नहीं था। ऐसे में निखिल ने पैसे दिए जो मैंने बाद में लौटाए। 6.30 बजे मोबाइल पर ददन भाई की कॉल आई कि मयूर विहार मेट्रो स्टेशन आ जाओ, वहीं बाइक के साथ मिलते हैं। तब जान में जान आई कि चलो अब तो बाइकिंग का इस साल का शगुन हो ही जाएगा।
सुबह साढ़े सात बजे मयूर विहार मेट्रो स्टेशन से रिषिकेश की यात्रा शुरू की। वैसे तो रिषिकेश का रास्ता गाजियाबाद, मेरठ होते हुए हाइवे से था लेकिन हर बार की तरह इस बार भी मैंने एक ऐेतिहासिक स्थल को इसमें शामिल किया और थोड़ा रूट बदला। दिल्ली से 48 किलोमीटर दूर बागपत पहुंचे और फिर यहां से 27 किलोमीटर आगे सादिकपुर सिनौली। सुबह के 10 बज चुके थे। वहीं, गांव में पहले सिनौली के बारे में जानकारी ली और खेतों के बीच बने घरों के पास पहुंचे।
सादिकपुर सिनौली वह जगह है जहां के खेतों में खुदाई के दौरान एक युद्धस्थल निकला था। इसमें युद्ध में इस्तेमाल होने वाले रथ और तलवारों का जखीरा निकला था। कई कंकाल यहां मिले हैं। यहां निकले एक कंकाल के बारे में कहा जाता है कि वह महाभारतकाल की किसी राजकुमारी का कंकाल है। यहां से निकली सारी चीजों को अब लाल किले के संग्रहालय में पहुंचा दिया गया है।
बहरहाल, हमें वहां सिर्फ खेत दिखाई दिए। खुदाई का कहीं नामोनिशान नहीं था। हमें लगा कि हम कहीं गलत तो नहीं आ गए। ऐसे में वहां से गुजर रहे एक शख्स से खुदाई की जगह के बारे में पूछा तो उसने कहा कि सामने के खेत में ही खुदाई हुई थी लेकिन अब गरमी की वजह से खुदाई बंद है। तेज गर्मी से हम भी बेहाल थे तो हमने उनसे पानी मांगा। वह अपने घर ले गया और न सिर्फ पानी बल्कि गरमा गरम शुद्ध दूध की चाय दी और नाश्ता भी कराया।
बहरहाल, हमें वहां सिर्फ खेत दिखाई दिए। खुदाई का कहीं नामोनिशान नहीं था। हमें लगा कि हम कहीं गलत तो नहीं आ गए। ऐसे में वहां से गुजर रहे एक शख्स से खुदाई की जगह के बारे में पूछा तो उसने कहा कि सामने के खेत में ही खुदाई हुई थी लेकिन अब गरमी की वजह से खुदाई बंद है। तेज गर्मी से हम भी बेहाल थे तो हमने उनसे पानी मांगा। वह अपने घर ले गया और न सिर्फ पानी बल्कि गरमा गरम शुद्ध दूध की चाय दी और नाश्ता भी कराया।
वह फिर हमें खुदाई की साइट पर ले गया। वहां अब खेती हो रही थी। इसी खेत में राजकुमारी का कंकाल निकला था। फिर वह हमें दूसरे खेत में ले गया जहां 2008 में खुदाई हुई थी और तलवार और रथ निकले थे। तब वह 10 साल का था और धुंधली-धुंधली यादों के सहारे बताया कि यहां शायद सोने की तलवार भी निकली थी। कई कंकाल भी निकले थे।
वहां से हम लौटकर आए तो वह खाने की जिद करने लगा लेकिन हमें आगे निकलना भी था। सवा 11 बज चुके थे और अभी हम मंजिल से 200 किलोमीटर दूर थे। यह रास्ता भी कुछ ठीक और कुछ खराब था।
सिनौली से सवा 11 बजे निकलकर सवा 12 बजे 30 किलोमीटर दूर पुसार पहुंचे। वहां थोड़ी देर रुके और फिर 3 बजे 94 किलोमीटर की दूरी तय कर गुरुकुल नरसन पर महादेव ढाबा पर रुके जहां पेट-पूजा की। आराम से खाना खाने और फिर थोड़ा आराम कर फिर बाइक संभाली और 4 बजकर 10 मिनट पर यहां से रवानगी डाली।
सिनौली से सवा 11 बजे निकलकर सवा 12 बजे 30 किलोमीटर दूर पुसार पहुंचे। वहां थोड़ी देर रुके और फिर 3 बजे 94 किलोमीटर की दूरी तय कर गुरुकुल नरसन पर महादेव ढाबा पर रुके जहां पेट-पूजा की। आराम से खाना खाने और फिर थोड़ा आराम कर फिर बाइक संभाली और 4 बजकर 10 मिनट पर यहां से रवानगी डाली।
अब हाइवे का रास्ता था इसलिए बाइक की स्पीड भी मैंटेन हो रही थी। सवा 5 बजे हम हरिद्वार में थे। अभी तक सुबह से 251 किमी बाइकिंग कर चुके थे। पहले सोचा कि यहां रुककर स्नान करते हैं और गंगा आरती देख आगे रिषिकेश जाते हैं। लेकिन ऐसा न करते हुए हम आगे बढ़ दिए।
अब रिषिकेश के रास्ते में हमें जाम मिलना शुरू हो गया। दो जगह भयानक जाम मिला लेकिन बाइक होने की वजह से आड़ी-टेड़ी लहराते हुए उसे निकाल ले गए और 1 घंटे में 24 किलोमीटर की दूरी तय कर आखिर रिषिकेश के त्रिवेणी घाट पहुंच गए।
अभी यहां आरती होने में आधा घंटा बाकी था। ऐसे में हम बैग वहीं एक आदमी की देखरेख में छोड़ पानी में उतर गए और जमकर ठंडे पानी में नहाकर थकान उतारी।
आगे की कहानी जारी है....
Shyam Sundar Goyal
Journalist
Delhi
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great
ReplyDeleteगुड
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