Monday, April 8, 2019

दिल्ली-ऋषिकेश-दिल्ली के वह रोमांचपूर्ण 20 घंटे

ऋषिकेश जाने का मन तो दिल्ली में शिफ्ट होते ही कर रहा था लेकिन कभी भोपाल तो कभी ऑफिस के चक्कर में जाना नहीं हो पा रहा था। इस बार पक्का मन बना लिया था कि कैसे भी हो जाना ही है लेकिन फिर भोपाल से एक दोस्त आ गए छुट्टी के दिन। अब फिर से संकट कि उनके साथ समय गुजारें या फिर चले ऋषिकेश। जब दोस्त ने हामी भरी कि एक दिन रुक कर साथ चलेंगे तो हमने भी कहा ठीक है, कम से कम किसी का साथ तो हो जाएगा। हमने अपने वादे के अनुसार गुरुवार का दिन उनके साथ गुजार लिया लेकिन शुक्रवार को वह बोले कि यहां काम है, नहीं जा पाएंगे। अब हम फिर से संकट में अब आगे की छुट्टी भी चुनाव और घर के चक्कर में दांव पर हैं, जो करना है, अभी करना है। 

यही सोचकर 5 अप्रैल 2019 शुक्रवार को सुबह 11 बजे निकले ऋषिकेश जाने के लिए। 12 बजे कश्मीरी गेट बस अड्डे पहुंचे और वहां एक साधारण किराए की बस में बैठ गए। किराया था 286 रुपये। नाश्ता और खाना हुआ नहीं था, सोचा कि जहां बस रुकेगी, खा लेंगे। दोपहर 3 बजे बस खतौली पहुंची और वहीं 70 रुपये के पुलाव और 20 रुपये की फेमस शिकंजी पी। अब पेट को थोड़ी राहत मिली। इसके बाद बस ने तेजी पकड़ी और शाम साढ़े 5 बजे हरिद्वार पहुंच गए। एक मन किया कि यहीं उतरकर गंगा आरती देखी जाए तो दूसरे मन ने कहा कि ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट पर पहुंचकर वहां की गंगा आरती देखें। आखिर शाम 7 बजे पहुंच गए त्रिवेणी घाट।


वहां गंगा आरती अपने अंतिम चरणों में थी। अगले दिन से भारतीय नववर्ष भी शुरू हो रहा था इसलिए सजावट भी अच्छी थी। बस, वहीं बैठ गए गंगा में पैर डालकर और आंखे बंद कर लीं। गंगाजल का स्पर्श पाकर शरीर की थकान कहां उड़ गई, पता ही नहीं चला। इसके बाद वहीं 2 घंटे गुजारे। कभी इस घाट पर, तो कभी उस घाट पर। वहां कुछ बच्चे भी गंगा को पार कर दूसरी तरफ जा रहे थे और वहां से रेत भरकर इस तरफ ला रहे थे। इस रेत में नवरात्र के ज्वारे लगाने की परंपरा है। इस खतरनाक काम के एवज में बच्चे 20 रुपये ले रहे थे। 
फिर चाय की एक चुस्की लेकर चल दिए रामझूला की तरफ। समय रात के सवा नौ बजे। अब बाजार भी धीरे-धीरे बंद हो रहा था लेकिन अपने लिए तो यही सबसे अच्छा था। पास से ही एक ऑटो मिली जिसने 10 रुपये लेकर रामझूला के करीब उतार दिया। 

रात में रामझूला ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने रोशनी की लड़ी से गंगा का अभिषेक कर दिया हो। बाजार बंद हो चुके थे। रामझूला पर इक्का दुक्का लोग ही नजर आ रहे थे। जैसे ही पुल के बीच में पहुंचा तो ठंडी हवा के झोंके ने आत्मा को तृप्त कर दिया। लगा कि शायद इसी पल के लिए इतनी लंबी और यात्रा करके आया था। राम झूला का पार कर दूसरे किनारे पर पहुंचा। वहां कुछ लोग प्री वेडिंग शूट के लिए तैयारी कर रहे थे। अब यहां से एक तरीका तो यह था कि रामझूला से वापस जाकर बस से दिल्ली निकल लिया जाए या फिर दूसरे किनारे पर सुनसान इलाके में 2 किमी की पैदल यात्रा कर लक्ष्मण झूला जाया जाए। तब तक रात के 10 बज चुके थे।

अब पैदल ही लक्ष्मण झूला के लिए चल दिए। एक जगह तो बिल्कुल घुप्प अंधेरा था तो मोबाइल की रोशनी से रास्ते देखते हुए आगे बढ़ा। रास्ते में हर तरफ विदेशी युवा नजर आ रहे थे जो मोटर बाइक पर फर्राटे भरते हुए निकल रहे थे। जैसे ही लक्ष्मण झूला के नजदीक पहुंचे तो वहां इनकी संख्या तेजी से बढ़ गई। भारतीय तो वहां इक्के दुक्के ही नजर आ रहे थे, हर जगह विदेशी ही विदेशी युवा।


लक्ष्मण झूला पहुंचते-पहुंचते साढ़े 10 बज गए। वहां से लक्ष्मण झूला भी शानदार नजर आ रहा था। बीच पुल पर जाकर हवा के झोंको ने मन को प्रफुल्लित कर दिया। अब ऐसे ही दो चक्कर लक्ष्मण झूला के लगाए और फिर बीच में बैठ गए। वहां कई युवा इसी पल को जीने के लिए आए हुए थे। ऐसे ही 11 बज गए। अब ये फैसला करना था कि ऋषिकेश में रुककर सुबह जल्दी निकलें या फिर रात में ही निकल कर सुबह दिल्ली और 10 बजे ऑफिस पहुंचे। इसका फैसला समय पर ही छोड़ दिया और वहां से निकलकर पैदल दूसरी तरफ से राम झूला के लिए निकल दिए। इस समय तक सभी वाहन बंद हो चुके थे। अब जहां भी जाना था, पैदल ही जाना था।

आधा घंटे पैदल चलने के बाद एक बाइक सवार पास में आया और पूछा कि कहां जाना है, छोड़ देता हूं। मैंने कहा राम झूला तो उसने बैठा लिया। अब पहाड़ी क्षेत्र में बाइक का सफर तो अच्छा लगा। उसने राम झूले पर आकर छोड़ दिया। अभी झूले पर जाने से मन नहीं भरा था तो फिर एक बार रात को साढ़े 11 बजे राम झूले पर चहलकदमी करने निकल पड़े। अब यहां काफी सन्नाटा था लेकिन फिर भी इक्के-दुक्के लोग नजर आ रहे थे। थोड़ी देर चहलकदमी करने के बाद वापस दिल्ली आने के लिए सड़क पर आए तो यहां कोई वाहन ही नजर नहीं आया। बस स्टैंड भी करीब 5 किमी दूर था। ऐसे में फिर एक बाइक सवार को रोका तो उसने त्रिवेणी घाट के पास छोड़ दिया। मैं फिर से उसी जगह था जहां से यात्रा शुरू की थी लेकिन तब तक 5 घंटे गुजर चुके थे। अब त्रिवेणी घाट पर सिर्फ 3 लोग ही जागते मिले, बाकी घाटों पर सो रहे थे। मैंने भी नववर्ष की बेला पर गंगाजल लेकर नहाने जैसी रस्म अदायगी की और फिर दिल्ली वापस आने के लिए सड़क पर आ गया।

वहां चाय की एक दुकान खुली थी तो पीने की इच्छा हुई। उसी से बातों बातों में दिल्ली के लिए बस के बारे में पूछा तो उसने कहा कि रात 8 बजे से सुबह 8 बजे दिल्ली की सारी बसें यहीं से होकर जाती हैं। इतने में ही एक बस हरिद्वार के लिए आती हुई दिखी, वह लास्ट बस थी। मैनें भी चाय का मोह छोड़ा और बस में अंदर। रात 1 बजे हरिद्वार में दिल्ली जाने के लिए बस तैयार मिली। रात में बस काफी खाली थी इसलिए सीटों पर ही बैग का तकिया बनाया और कुछ सोकर और कुछ जागकर सफर पूरा किया। सुबह 7 बजे दिल्ली के कश्मीरी गेट पर बस पहुंच चुकी थी। मैं भी वहां से मेट्रो पकड़कर नोएडा पहुंचा और फिर तैयार होकर सुबह 10 बजे एक अच्छे कर्मचारी की तरह ऑफिस पहुंच गया। इस पूरी यात्रा में खर्च हुए 800 रुपये और 20 घंटे। 

Shyam Sundar Goyal
Journalist
Delhi

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