गुमनामी के अंधेरों से गुजरते हुए सफलता की रोशनी की तरफ पहला कदम...अभी बहुत पिक्चर बाकी है दोस्तों....पूरा भारत बाइक से घूमने के बाद दिल्ली का अधूरापन शायद बाकी थी जो आज से 15 दिन पहले पूरा हुआ और इस पूर्णता के अहसास ने अब अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है...आजतक मीडिया हाउस के दिल्ली तक में 4 मिनट 13 सेकंड का पैकेज...आप सभी का धन्यवाद जो इस यात्रा के साक्षी बने.
Friday, October 23, 2020
Sunday, April 26, 2020
हाइवे के इस होटल में एक ही शख्स निभाता है बावर्ची, वेटर, मैनेजर और मालिक का रोल
भोपाल से अपनी 100 सीसी मोटरसाइकिल से बिहार-बंगाल की यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ और ओडिशा होते हुए राह पकड़ी। 16 अगस्त को हम ओडिशा के हुम्मा इलाके में थे और यहां से जगन्नाथ पुरी जाना था।
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हुम्मा शहर, ओडिशा |
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चिल्का लेक का ग्रामीण जनजीवन |
हुम्मा से करीब साढ़े 9 बजे चले और फिर चिल्का लेक और वहां आसपास के ग्रामीण और आत्मनिर्भर जीवनशैली को देखते हुए आगे बढ़े। दोपहर 12.45 पर सादपाड़ा जगह पर पहुंचे जहां से एक फेरी में बाइक रख दी गई और फिर अगले 45 मिनट चिल्का लेक में होते हुए दूसरे किनारे पर पहुंचे। दूसरे किनारे पर उतरकर आगे चलते रहे।
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सादपाड़ा, यहां बोट से 45 मिनट का सफर कर दूसरे पार जाना होता है। |
दोपहर में धूप भी तीखी हो रही थी और भूख भी लग रही थी। ऐसे में पुरी से पहले रास्ते में एक खाने के होटल दिखा। अब आगे का रास्ता तय करने से पहले वहीं रुककर पेट पूजा करने की सोची।
उस होटल में खाने की दो ही रेट थी। चिकन के साथ मील या मछली के साथ मील। चिकन के साथ 50 रुपये और मछली के साथ 60 रुपये। मील का मतलब होता है पेट भर खाना। यानी आपने चिकन की प्लेट ली तो सब्जी, चिकन और चावल इतना मिलता है कि आपका पेट भर सके।
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जगन्नाथ पुरी से पहले खाने का होटल, ओडिशा |
हमने भी वहां चिकन मील का ऑर्डर किया। सारा होटल हाउसफुल था। एक व्यक्ति सब को नंगे पैर, बदन पर सिर्फ एक तौलिया लपेटे हुए खाना सर्व कर रहा था। हमें भी केले के पत्ते पर खाना सर्व हुआ और भर पेट खाना खाया। खाना खाने के बाद जब अंदर हाथ धोने गया तो देखा कि वह और उसकी पत्नी ही खाना लगातार बना रहे हैं। हमारा दिमाग घूमने लगा कि यह वेटर है या बावर्ची।
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होटल में वेटर, बावर्ची, मैनेजर और मालिक |
खैर, हम खाने खाने के बाद जब पैसे देने के लिए काउंटर पर बैठे शख्स को तलाशने लगे तो वही शख्स आकर काउंटर पर बैठ गया और पैसे लिए। उसे कुछ सामान लाना था तो अपनी साइकिल उठाई और कुछ ही समय में सामान भी लेकर आ गया। उस शख्स की भाषा समझ में तो नहीं आ रही थी तो बगल वाली दुकान से पूछा कि यहां ऐसे ही दुकान चलती है जिसमें एक ही आदमी काम सभी काम करता है, इसका होटल पर मालिक नहीं बैठता क्या? तब उसने जवाब दिया कि यही तो होटल का मालिक है...
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कम संसाधनों में भी सुखी जीवन जीने की ललक |
(16 अगस्त 2018, समय दोपहर 2 से 3.30 के बीच। मध्य प्रदेश के भोपाल से छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और वापस भोपाल की बाइक यात्रा के दौरान का वाकया। इस ट्रिप में 14 दिन में 4500 किलोमीटर की दूरी तय की गई।)
(भारत में 25 हजार किलोमीटर 100 सीसी बाइक से सफर पर एक किताब भी लिखी गई है जिसका नाम '100 सीसी' है। इसमें उत्तर भारत के 40 से ज्यादा घूमने की जगह के बारे में उसके इतिहास के साथ रोचक तरीके से बताया गया है। यह किताब प्रभात पब्लिकेशन से 12 फरवरी 2020 को प्रकाशित हुई है। यह किताब ऑनलाइन भी है और किंडल एडिशन पर भी है। )
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Shyam Sundar Goyal
Delhi
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Whatsapp : 9827319747
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Sunday, January 12, 2020
हेरिटेज वॉक: फिरोजशाह कोटला में दिखा जब 'रुहानी ताकतों' का असर, यहां गड़ा है 'अशोका पिलर'
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला किले में सम्राट अशोक के प्रस्तर स्तम्भ को कई सालों से देखने की इच्छा थी वह इस शनिवार 11 जनवरी 2019 को पूरी हुई। साथ ही इस किले में कई चौंकाने वाली बातों और घटनाओं से भी सामना हुआ। इस किले में कई 'जिनों' का वास बताया जाता है, इसी वजह से यह एक 'हॉन्टेड प्लेस' है। 'जिन' उन रुहानी ताकतों को कहते हैं जो अदृश्य रूप में यहां वास करती हैं। यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती लेकिन इनके कायदों को किसी ने तोड़ा तो दंड भी 'ऑन द स्पॉट' मिलता है, जो हमें भी देखने को मिला। इसी किले में एक ऐसी जगह भी है जिसे 'लाट वाले बाबा' कहा जाता है। यहां लोगों का मानना है कि वहां लगे लोहे के गेट पर यदि ताला लगा दिया जाए तो शादीशुदा लोगों के अफेयर से भी छुटकारा मिल जाता है। इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो ताला लगाने वाले ही जानें...
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दिल्ली के फिरोजशाह कोटला किले में सम्राट अशोक का प्रस्तर स्तंभ (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
तो इस शनिवार दोपहर ठीक 3 बजे हम दिल्ली में आईटीओ के पास फिरोजशाह कोटला किले के टिकट काउंटर पर थे। पहले तो वहां नोएडा सेक्टर 19 ए से मेट्रो से जाने का इरादा था लेकिन दोपहर के ढाई तो घर पर ही बज गए। तब जल्दी से कार निकाली और हम 30 मिनट में नोएडा से 15 किलोमीटर दूर फिरोजशाह कोटला के मेन गेट पर थे।
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फिरोजशाह कोटला किले का टिकटघर (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
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फिरोजशाह कोटला में हेरिटेज वॉक (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
किले में ही घुसते ही हमें जगह-जगह आले बने हुए दिखे जहां दिन में ही दीपक जल रहे थे। इस बारे में अमन ने ही बताया कि इस किले में 'जिनों' का वास है। यहां मुख्य रूप से तीन 'जिनों' को लोग ज्यादा मानते हैं। यह पहले 'जिन' हैं जिनका नाम 'नन्हें मियां जिन' हैं। यहां लोग अपनी मन्नत एक कागज पर लिखकर रख जाते हैं और दीपक जला देते हैं।
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किले में जगह-जगह बने हैं 'जिनों' के आले (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
उसके बाद किले में 'दीवान-ए-आम' और 'दीवान-ए-खास' के स्ट्रक्चर को देखा। अब वहां ध्वस्त स्ट्रक्चर के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता लेकिन वहां पर खड़े होकर जब फील करते हैं तो आज से करीब 650 साल पहले के सल्तनत दौर का नजारा आंखों के सामने आ जाता है। एक समय यहां से उस समय के दुनिया में सबसे शक्तिशाली सुल्तान फिरोज शाह तुगलक का शासन चलता था। फिरोज शाह तुगलक ने सन् 1351 से 1388 तक हिंदुस्तान पर शासन किया था। फिरोज शाह तुगलक ने ही यह किला बनवाया था जहां उस समय एक से सवा लाख की आबादी रहती थी। दिल्ली की यह फिरोजाबाद नगरी यमुना नदी के किनारे बसी थी, लेकिन अब यमुना नदी यहां से काफी दूर बहती है।
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दीवान-ए-खास के ध्वस्त अवशेष (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक दिल्ली सात बार बसी है। सबसे पहली दिल्ली महरौली-लालकोट, दूसरी सीरी, तीसरी तुगलकाबाद, चौथी जहांपनाह, पांचवी फिरोजाबाद, छठवीं दीनपनाह और सातवीं शाहजहानांबाद है। शाहजहांनाबाद को हम पुरानी दिल्ली कहते हैं लेकिन वह सबसे नई बसी हुई दिल्ली है। आज हम पांचवी बार बसी दिल्ली के फिरोजाबाद इलाके में थे।
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इस तरह बसाई गई थी सात बार दिल्ली (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
खैर, यहां के इतिहास को समझ आगे बढ़े। अमन यहां से जुड़ी इंटरेस्टिंग कहानियों और किस्सों को बताते हुए आगे बढ़् रहे थे। वहीं किले से अलग हटकर एक मजार भी दिखी। कहा जाता है कि किले में जितने भी 'जिन' हैं, यह सब इन्हीं के बसाए हुए हैं। पहले किले से ही एक सीढ़ी इस मजार तक जाती थी लेकिन अब इसे बंद कर दिया गया है। यहां भी 'जिन' होने की निशानी के रूप में जलते दिए और बिखरे कागज दिखे।
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फिरोजशाह कोटला से लगी मजार (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
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यहां से नीचे मजार तक सीढ़ियां जाती हैं जिन्हें अब बंद कर दिया गया है (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
यहीं यह बात भी अमन ने बताई कि इमरजेंसी के बाद यहां जिनों के बारे में ज्यादा जानकारी मिलती है। दरअसल, देश में इमरजेंसी लगने के बाद पुरानी दिल्ली में कई घर तोड़े गए। इन घरों में लोग पहले 'आले' बनाते थे जिनमें पूर्वजों की याद में रोज दिए लगाए जाते थे। जब वह मकान टूटे तो वह रुहानी ताकतें जिन के रूप में इस किले में आकर बस गईं। यहां के जिनों के बारे में दिल्ली के एक शख्स ने पूरी किताब लिखी है।
इसके बाद एक और जगह आई जिसे 'घेर वाले जिन' कहते हैं। यहां भी दीपक और सुंगधित अगरबत्ती जलती हुई दिखाई दीं और कुछ आंवले भी वहां रखे थे। इन आंवलों को वहां एक कुत्ता को खाते देखा। कहते हैं यहां जिन किसी भी रूप में आ सकता है, इसलिए कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यह 'जिन' का ही कोई रूप होगा।
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घेर वाले जिन (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
जब हम यहां यह देख ही रहे थे कि तभी अचानक से आवाज आई कि एक लड़की ऊपर मस्जिद से नीचे गिर गईहै। उस लड़की को कुछ देर पहले वहां बैठे हुए सभी ने देखा था, लिहाजा सभी तेजी से भागकर वहां पहुंचे। वहां देखा तो नीचे एक 16 साल की लड़की 15 फीट ऊंची दीवार से गिरकर नीचे गिरी पड़ी है। उसकी कमर की हड्डी में चोट लगी थी और वह उठ नहीं पा रही थी। तभी वहां मस्जिद से कुछ लोग नीचे आए और कहने लगे कि हम इसे हाथ नहीं लगा सकते। इनकी अम्मीजान, मस्जिद में ऊपर कुछ दरख्वास्त लगा रही थीं। लड़की को किनारे पर बैठने के लिए मना किया था तब भी वह बैठ गई और नीचे गिर गई।
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इस मस्जिद के ऊपर से नीचे गिरी थी लड़की (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
अब सभी असमजंस में थे कि क्या करें? कोई भी उसे हाथ लगाने को तैयार नहीं था। सब मूकदर्शक से बन गए थे, उधर वह लड़की दर्द से तड़प रही थी। हमने कहा कि ऐसे तो यह मर जाएगी। तब मैं और गाइड तुरंत बाहर ऑटो लाने के लिए दौड़े, इतने में हमारे साथ ही वॉक का हिस्सा बने चंद्रशेखर जी और दीपिका जी ने 102 नंबर पर एंबुलेंस के लिए फोन लगा दिया। हम ऑटो लेकर अंदर तक आ गए और किसी तरह लड़की को उठाकर कुछ ही कदम चले कि उसे हो रहे दर्द के कारण उसे फिर से नीचे रखना पड़ा। अब एंबुलेंस का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं थ। सिर्फ 15 मिनट में ही एंबुलेंस अंदर आ गई और फिर उसे लेकर चली गई। इस पूरी कवायद में करीब 45 मिनट इस वॉक में कम हो गए लेकिन खुशी भी थी कि चलो यहां एक आकर एक नेक काम में सहभागी तो बने।
तो इस तरह हमने 'जिन' की करामात साक्षात अपने सामने ही देख ली। यूसुफ भाई ने कहा कि हम यहां कई हेरिटेज वॉक करा चुके हैं लेकिन इस तरह का वाकया हमारे सामने पहली बार हुआ है।
यहीं पर खड़े होकर हमारे अमन ने बताया कि सामने इस किले के तीसरे जिन 'लाट वाले बाबा' का स्थान है जिस पर ताले लगे हुए हैं। यहां लोगों का मानना है कि शादी के बाद जिन लोगों के अफेयर हैं, उनसे यहां मन्नत मांगकर छुटकारा पाया जा सकता है। इसके लिए लोग यहां जालियों पर ताला लगाकर जाते हैं। यहां की सिक्योरिटी वाले इन तालों को तोड़कर हटाते रहते हैं। बहरहाल, हम जब पहुंचे तो वहां दो ताले लटके मिले।
इस तरह फिरोजशाह किले में 'जिनों' के बारे में जानकारी पूरी हुई और हम चले उस पिरामिडीय आकार की इमारत के ऊपर, जहां 13 मीटर ऊंचा सम्राट अशोक का चिकने बलुआ पत्थर से बना स्तंभ गड़ा हुआ था। सम्राट अशोक का शासनकाल ईसा पूर्व 273 से ईसा पूर्व 232 तक था। मूल रूप से यह स्तंभ हरियाणा में टोपरा कलां में लगा था जहां से इसे लाकर बादशाह फिरोज शाह ने अपने महल में लगवाया था। ऐसा ही एक और सम्राट अशोक का प्रस्तर स्तंभ दिल्ली के सिविल लाइन में है, जो बादशाह फिरोजशाह मेरठ से लाया गया था।
सन् 1353 ईसवी में फिरोजशाह तुगलक जब टोपरा कलां में शिकार के लिए गया तब उसकी नजर इस स्तंभ पर पड़ी। पहले वह इसे तोड़ना चाहता था, लेकिन बाद में इसे अपने साथ दिल्ली ले जाने का मन बनाया। इस बात का वर्णन इतिहासकार शम्स-ए-सिराज ने तारीख-ए-फिरोजशाही में किया है।
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इमारत से गिरी लड़की को किसी तरह एंबुलेंस बुलाकर हॉस्पिटल पहुंचाया (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
खैर, अब इस प्रसंग को भुलाकर आगे बढ़ते हुए ऊपर से जामी मस्जिद को देखा। इस जामी मस्जिद को फिरोजशाह ने अपनी निजी इबादतगाह के रूप में बनवाया था। जब तैमूर लंग ने 1398 ईसवी में दिल्ली पर आक्रमण किया था तो वह इस मस्जिद को देखकर इतना प्रभावित हुआ कि उसके ऊपर के स्ट्रक्चर को निकालकर अपने साथ ले गया और ठीक ऐसी ही मस्जिद उजबेकिस्तान में बनवाई।
इसी मस्जिद के नीचे एक सुरंग भी दिखी जो इस जगह को लाल किले से जोड़ती है। इस सुरंग में मुगल बादशाह आलमगीर द्वतीय की हत्या हुई थी जिन्होंने 1754 से 1759 ईसवी तक हिंदुस्तान पर शासन किया था। यह सुरंग फिलहाल बंद कर दी गई है।
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यहीं से नीचे गिरी थी लड़की। उनकी अम्मीजान यहां मन्नत मांगने आई थी (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
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जामी मस्जिद (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
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इसी सुरंग में हुआ था मुगल बादशाह आलमगीर द्वितीय का कत्ल (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
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लाट वाले बाबा, फिरोजशाह कोटला किला, दिल्ली (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
टोपरा कलां-दिल्ली के नाम से फेमस अशोक स्तम्भ https://en.wikipedia.org/wiki/Pillars_of_Ashoka। वैसे तो भारत में ईसा पूर्व तीसरी सदी के महान सम्राट अशोक के 11 अशोक स्तम्भ हैं जिनमें से 10 में लेख खुदे हुए हैं। उनमें से एक यह भी है। यह स्तंभ मूल रूप से हरियाणा राज्य में यमुनानगर जिले के टोपरा कलां में स्थापित था लेकिन फिरोजशाह तुगलक के काल में इसे वहां से दिल्ली लाया गया था।
फिरोजशाह कोटला में जो अशोक स्तंभ लगा हुआ है, वह गांव टोपरा कलां से ही ले जाया गया था। इतिहासकारों के अनुसार, सम्राट अशोक ने गुजरात की गिरनार की पहाड़ियों में इस स्तंभ को बनवाया था, जिसकी लंबाई 42 फीट (13 मीटर) और चौड़ाई 2.5 फीट है। इस स्तंभ पर प्राचीन ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में लिखी गई उनकी सात राजाज्ञाएं खुदी हुई हैं। यह देश का एकमात्र स्तंभ है, जिस पर सात राजाज्ञाएं खुदी हुई हैं।
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पिलर पर ब्राह्मी लिपि में लिखी गईं सम्राट अशोक की राजआज्ञाएं (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
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पिलर पर खुदा हुआ सम्राट अशोक का राजचिह्न हाथी (Photo: Shyam Sundar Goyal) |
यमुना के रास्ते इस स्तंभ को दिल्ली ले जाने के लिए एक बड़ी नाव तैयार की गई थी। इस स्तंभ पर कोई खरोंच न पड़े, इसके लिए उसे रेशम व रुई में लपेट कर ले जाया गया। टोपरा से यमुना नदी तक इसे लाने के लिए 42 पहियों की गाड़ी तैयार की गई थी, जिसे 8 हजार लोगों ने खींचा था। 18वीं शताब्दी में सबसे पहले अलेक्जेंडर कनिंघम ने साबित किया था कि यह स्तंभ टोपरा कलां से लाया गया थ। उनके साथ काम करने वाले जेम्स प्रिंसेप ने पहली बार ब्राह्मी लिपि में लिखे संदेश को पढ़ा था।
फिरोजशाह कोटला किले में एक बावड़ी भी है जिसे अब बंद कर दिया गया है। इस बावड़ी में एक बच्चा डूब गय था जिसके बाद इसे बंद किया गया।
यह सब देखने में सूर्यास्त हो गया तो गार्ड ने सीटी बजाकर सबको बाहर निकलने का इशारा किया। एएसआई के अंतर्गत आने वाले इस मॉन्यूमेंट्स में सूर्यास्त के बाद सबको बाहर निकलना होता है। इसके बाद यहां कोई नहीं रुक सकता। जो लोग पैरानॉर्मल एक्टिविटी पर रिसर्च करते हैं, वह स्पेशल परमिशन लेकर रात में यहां आते हैं.
तो इस तरह यह हेरिटेज वॉक दोपहर 3 से 6 बजे तक चली। 125 रुपये का कार में पेट्रोल, 25 रुपये का टिकट और 250 रुपये हेरिटेज वॉक की फीस। इस तरह 400 रुपये में यह हेरिटेज वॉक संपन्न हुई।
लेख- श्याम सुंदर गोयल (Shyam Sundar Goyal)
लेख- श्याम सुंदर गोयल (Shyam Sundar Goyal)
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