केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा
PART-1 भोपाल से चंदेरी तक का सफर
भोपाल. 12 सितंबर. एक साल से जिस यात्रा की तैयारी हो रही थी, वह दिन आ गया। हालांकि यात्रा शुरू
करने की डेट और समय को लेकर तब तक संशय रहा, जब तक कि बाइक लेकर घर से निकल नहीं गया।
30 मई 2016 को दोपहर 3 बजे यात्रा शुरू की। बैग में 4 जोड़ी कपड़े और 7 टीशर्ट। क्योंकि यात्रा के दौरान कपड़ों की ऐसी हालत हो जाती है कि दूसरे दिन उसको पहना ही नहीं जा सकता।
भोपाल से विदिशा होते हुए चंदेरी पहुंचना था जो 230 किमी की दूरी पर था। पहले लगा कि आधे दिन से ज्यादा निकल चुका है, पहुंच भी पाएंगे या नहीं। लेकिन रात 9 बजे मैं चंदेरी में था।
भोपाल से निकलते ही करीब 30 किमी के बाद कर्क रेखा पड़ी। ये वह रेखा है जहां पर 21 जून को सूर्य सबसे उत्तर में होता है। इस दिन दोपहर में यहां आदमी की परछाई गायब हो जाती है।
यहां से आगे बढ़े तो शाम 5 बजे तक सांची में प्रविष्ट हुआ। चूंकि सांची कई बार आ चुका था इसलिए यहां रुका नहीं और विदिशा की तरफ बढ़ गया। अब यहां से मुंगावली होते हुए चंदेरी पहुंचना था।
रात सवा 8 बजे अशोकनगर जिले के मुंगावली पहुंचा। यहां आकर सोचा कि लव गेम्स के हीरो गौरव अरोरा के घर जाया जाए, लेकिन समय ज्यादा हो गया था। वहां के युवा इसी फिल्म के गाने गुनगुनाते मिले। यहां से चंदेरी करीब 30 किमी की दूरी पर थी। वहां रहने का कोई ठिकाना भी तय नहीं था। वहीं से मैनें भास्कर के अशोकनगर रिपोर्टर को फोन लगाया और अपनी समस्या बताई। उन्होंने 5 मिनिट बाद फोन करके कहा कि चंदेरी के रेस्ट हाउस में रुकने की व्यवस्था हो गई है।
इसके बाद निश्चिंत होकर रात सवा 9 बजे चंदेरी के सरकारी रेस्ट हुाउस पहुंचा। वहां रूम मेरे नाम से बुक हो चुका था। रात को 11 बजे घूमने निकला और खाना खाकर वापस आया। वहीं पर मैंने जानकारी लेकर अगले दिन चंदेरी में घूमने की प्लानिंग बनाई।
चंदेरी एक ऐतिहासिक नगरी है। मध्यकाल में यह एक सामरिक जगह थी। यहां कई महल हैं जो अपने स्थापत्य कला के लिए फेमस हैं। यहां की चंदेरी साड़ियां दुनिया में फेमस हैं। इन साड़ियों को रात में तैयार किया जाता है।
इस दिन का सबक- यदि अापकी नियत सही हो तो सब काम आसानी से हो जाते हैं। मुंगावली पहुंचने के बाद जिस तरह 5 मिनट में ही चंदेरी जैसे पर्यटक स्थल पर अच्छी व्यवस्था हुई, वह एक अच्छा सबक थी। चलना शुरू करो तो रास्ते खुद ब खुद बनते चले जाते हैं।
पहले दिन की यात्रा यहीं खत्म हुई। इसके बाद का लेख अगले अंक में....
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